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Motivational Story : बॉलीवुड एक्टर बनने से पहले सरकारी विभाग में नौकरी थे Amrish Puri , पढ़ें उनकी संघर्ष की कहानी

बॉलीवुड में अमरीश पुरी को एक ऐसे अभिनेता के तौर पर याद किया जाता है जिन्होंने अपनी कड़क आवाज, रौबदार भाव-भंगिमाओं और दमदार अभिनय के बल पर खलनायकी को एक नई पहचान दी।

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Actor Amrish Puri

AMrish Puri

बॉलीवुड में अमरीश पुरी को एक ऐसे अभिनेता के तौर पर याद किया जाता है जिन्होंने अपनी कड़क आवाज, रौबदार भाव-भंगिमाओं और दमदार अभिनय के बल पर खलनायकी को एक नई पहचान दी। रंगमंच से फिल्मों के रूपहले पर्दे तक पहुंचे अमरीश पुरी ने करीब तीन दशक में लगभग 250 फिल्मों में अभिनय का जौहर दिखाया। आज के दौर में जब कलाकार किसी अभिनय प्रशिक्षण संस्था से प्रशिक्षण लेकर अभिनय जीवन की शुरुआत करते हैं, अमरीश पुरी खुद एक चलते फिरते अभिनय प्रशिक्षण संस्था थे। हालांकि, बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि पंजाब के नौशेरां गांव में 22 जून 1932 में जन्में अमरीश पुरी ने बॉलीवुड में कदम रखने से पहले श्रम विभाग में नौकरी करते थे।

नौकरी के साथ साथ वह उसके साथ ही सत्यदेव दुबे के नाटकों में अपने अभिनय का जौहर दिखाया करते थे। बाद में वह पृथ्वी राज कपूर के 'पृथ्वी थियेटर' में बतौर कलाकार अपनी पहचान बनाने में सफल हुए। पचास के दशक में अमरीश पुरी ने हिमाचल प्रदेश के शिमला से बीए पास करने के बाद मुंबई का रूख किया। उस समय उनके बड़े भाई मदन पुरी हिन्दी फिल्म में बतौर खलनायक अपनी पहचान बना चुके थे। वर्ष 1954 में अपने पहले फिल्मी स्क्रीन टेस्ट में अमरीश पुरी सफल नहीं हुए। उन्होंने अपने जीवन के 40वें वसंत से अपने फिल्मी जीवन की शुरुआत की थी। वर्ष 1971 में बतौर खलनायक उन्होंने फिल्म रेशमा और शेरा से अपने कैरियर की शुरुआत की, लेकिन इस फिल्म से दर्शकों के बीच वह अपनी पहचान नहीं बना सके।

देखने लायक था श्रीदेवी के साथ टकराव
उस जमाने के मशहूर बैनर 'बाम्बे टॉकीज' में कदम रखने बाद उन्हें बड़े-बड़े बैनर की फिल्में मिलनी शुरू हो गई। उन्होंने खलनायकी को ही अपने कॅरियर का आधार बनाया। इन फिल्मों में निशांत, मंथन, भूमिका, कलयुग और मंडी जैसी सुपरहिट फिल्में भी शामिल हैं। इस दौरान यदि अमरीश पुरी की पसंद के किरदार की बात करें तो उन्होंने सबसे पहले अपना मनपसंद और न कभी नहीं भुलाया जा सकने वाला किरदार गोविन्द निहलानी की वर्ष 1983 में प्रदर्शित कलात्मक फिल्म 'अद्र्धसत्य' में निभाया। इस फिल्म में उनके सामने कला फिल्मों के अजेय योद्धा ओमपुरी थे। इसी बीच हरमेश मल्होत्रा की वर्ष 1986 में प्रदर्शित सुपरहिट फिल्म 'नगीना' में उन्होंने एक सपेरे की भूमिका निभाई जो लोगो को बहुत भाई। इच्छाधारी नाग को केन्द्र में रख कर बनी इस फिल्म में श्रीदेवी और उनका टकराव देखने लायक था।

'मोगैम्बो' नाम बना उनकी पहचान
वर्ष 1987 में उनके कैरियर में अभूतपूर्व परिवर्तन हुआ। इस वर्ष अपनी पिछली फिल्म 'मासूम' की सफलता से उत्साहित शेखर कपूर बच्चों पर केन्द्रित एक और फिल्म बनाना चाहते थे जो 'इनविजबल मैन' के ऊपर आधारित थी। इस फिल्म में नायक के रूप में अनिल कपूर का चयन हो चुका था, जबकि कहानी की मांग को देखते हुए खलनायक के रूप में ऐसे कलाकार की मांग थी जो फिल्मी पर्दे पर बहुत ही बुरा लगे। इस किरदार के लिए निर्देशक ने अमरीश पुरी का चुनाव किया जो फिल्म की सफलता के बाद सही साबित हुआ। इस फिल्म में अमरीश पुरी द्वारा निभाए गए किरदार का नाम था 'मोगैम्बो' और यही नाम इस फिल्म के बाद उनकी पहचान बन गया।

हॉलीवुड में भी किया काम
जहां भारतीय मूल के कलाकार को विदेशी फिल्मों में काम करने की जगह नहीं मिल पाती है, वही अमरीश पुरी ने स्टीवन स्पीलबर्ग की मशहूर फिल्म 'इंडियाना जोंस एंड द टेंपल ऑफ डूम' में खलनायक के रूप में काली के भक्त का किरदार निभाया। इसके लिए उन्हें अंतरराष्ट्रीय ख्याति भी प्राप्त हुई। इस फिल्म के पश्चात उन्हें हॉलीवुड से कई प्रस्ताव मिले जिन्हे उन्होनें स्वीकार नहीं किया क्योंकि उनका मानना था कि हॉलीवुड में भारतीय मूल के कलाकारों को नीचा दिखाया जाता है। लगभग चार दशक तक अपने दमदार अभिनय से दर्शकों के दिल में अपनी खास पहचान बनाने वाले अमरीश पुरी ने 12 जनवरी 2005 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया।