17 दिसंबर 2025,

बुधवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

पढ़ाई में नहीं आर्ट में यूं बनाया कॅरियर, आज लाखों में बिकती है इनकी हर कृति

टीचर की जॉब छोड़ स्टार्ट किया अपना काम

2 min read
Google source verification

जयपुर

image

Sunil Sharma

May 07, 2019

startups,success mantra,start up,Management Mantra,motivational story,career tips in hindi,inspirational story in hindi,motivational story in hindi,business tips in hindi,

startups,success mantra,start up,Management Mantra,motivational story,career tips in hindi,inspirational story in hindi,motivational story in hindi,business tips in hindi,

कंटेम्परेरी स्टाइल में मूर्तियों को रचने में माहिर मूर्तिकार अशोक गौड़ देश-दुनिया में अपनी कलाकृतियों के जरिए विशेष पहचान रखते हैं। देश के शीर्षतम उद्योगपतियों के अलावा बॉलीवुड के नामचीन कलाकारों के पास इनके बनाए मूर्तिशिल्प आज भी सहेज कर रखे हुए हैं। मंडे मोटिवेशन सीरीज के तहत इस बार अशोक गौड़ ने अनुभव शेयर किए।

उन्होंने कहा कि मेरा जन्म गया (उत्तरप्रदेश) में हुआ और मेरे फोरफादर्स मूर्तिकला से जुड़े हुए थे, लेकिन तब हमारे परिवार से कोई भी सदस्य इस काम में नहीं जुड़ा हुआ था। मुझे मूर्तिकला के प्रति बचपन से लगाव था, हमारे घर के सामने एक नदी बहती थी और मुझे उस नदी के बीच में एक इमेजिनेशन नजर आती थी। उस वक्त मेरी उम्र 10 साल की थी, वहां मैं सोचता था कि नदी बहाव के बीच में यदि एक मूर्ति हो तो कैसा लगेगा। इस लगाव के कारण ही मैंने 10वीं क्लास तक आते-आते निर्णय कर लिया कि अब मुझे मूर्तिकला से जुड़ा ही काम करना है।

यह ऐसा आर्ट है, जिसके तहत आप स्कल्पचर को देखने के साथ छू सकते हैं, महसूस कर सकते हैं। पहले यह होता था कि आर्टिस्ट पत्थर की शेप को देखकर आर्ट तैयार करते थे, ऐसे में पत्थर कलाकार पर हावी होता था। पत्थर पर क्या ड्रॉइंग चाहिए, उसे ही तैयार करते थे। ऐसे में पत्थर पर पूरा यूज हो जाता था। मैंने पत्थर पर टेक्स्चर इजाद की, इससे पहचान बनने लगी। लोगों ने इसको कॉपी करना शुरू किया, लेकिन यह भी उनके लिए आसान नहीं रहा। टेक्स्चर ही मेरी पहचान बने और एब्स्टे्रक्ट आर्ट ने मुझे आर्ट जगत में नाम दिलवाया।

जहांगीर गैलेरी में शो
सबसे पहले स्कूल ऑफ आर्ट में एग्जीबिशन लगाई, मेरे काम के लिए मिली प्रशंसा के चलते मुझे महज 22 साल की उम्र में जहांगीर आर्ट गैलेरी में शो करने का मौका मिला। तब उस शो में मेरे 17 स्कल्प्चर बिके थे। लोगों ने न केवल इसे पसंद किया बल्कि खरीदा भी।

स्कूल ऑफ आर्ट से शुरुआत
आर्ट में मेरी रुचि थ्री डाइमेंशनल में थी, ऐसे में यहां भी पैसा बहुत महत्वपूर्ण था। इस दौरान मैं टे्रडिंग का काम करने लगा, हैंडीक्राफ्ट आइटम्स को बेचने लगा। साथ ही जिस घर में शादी होती थी, वहां मैं मकान मालिक से बात करके मांडणे बनाया करता था। इसके लिए मुझे हजार रुपए तक मिलते थे। ये पैसे मेरे आर्ट मैटेरियल्स के लिए बहुत काम आते थे। मेरा बैंक ऑफ बड़ौदा में अकाउंट था, बैंक के बाहर से अक्सर रोज आना-जाना होता था। तब मैनेजर को बातचीत में पता लगा कि मैं आर्टिस्ट हूं, तो उन्होंने दरवाजे के ऊपर कुछ बनाने को कहा, मैंने चार दिन में म्यूरल, ड्रॉइंग जैसा कुछ बनाया। इसके लिए मुझे २ हजार रुपए मिले थे। यह स्ट्रगल हमारे काम को नई ऊर्जा देने वाला होता था। आज जब इसे याद करता हूं, तो यह सब रोमांचक लगता है।

परम्परागत नहीं किया
स्कूल ऑफ आर्ट में टीचर की जॉब छोड़ी थी, तो कुछ दिन लाइफ पोर्टे्रट बनाने लगा। यह काम कुछ समय के लिए किया, लेकिन परम्परागत काम नहीं किया। इसमें बंधकर नहीं रहना चाहता था, मैंने एब्स्ट्रेक्ट पर काम किया और राजस्थान में इस तरह की कला में सबसे अग्रणी रखा जाता है। मैंने पैसे के साथ संतुष्टि का स्ट्रगल किया। जब तक मुझे मेरे काम से संतुष्टि नहीं मिली, तब तक मैं प्रयोग करता रहा। जब आर्टिस्टिक संतुष्टि मिली, तो कभी पीछे मुडक़र नहीं देखा।