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Akshya tritiya 2018: गोल्‍ड के नाम पर आपके साथ तो नहीं हो रहा यह धोखा

बंधेल ज्वैलरी पर सोने का वर्क चढ़ाया जाता है। ये ज्वैलरी पुराने जमाने में हसली होती थी। तांबे और चांदी की हसली पर सोने का वर्क किया जाता था।

Apr 18, 2018 / 02:25 pm

Saurabh Sharma

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Fake Jewellery

नई दिल्‍ली। आज अक्षय तृतीया है। इस दिन सोना खरीदना अच्‍छा माना जाता है। इस लोग सोने की खूब खरीददारी भी करते हैं। सर्राफा व्‍यापारी भी इस लोगों को लुभाने के लिए कई तरह के ऑफर्स देते हैं। लेकिन गोल्‍ड के नाम पर लोगों के साथ काफी धोखा भी किया जा रहा है। इस धोखे का नाम है बंधेल ज्‍वेलरी। ताज्‍जुब की बात तो ये है कि सोने की तरह की तरह दिखने वाली इस ज्‍वेलरी को गोल्ड के भाव में बेचा जा रहा है। आम जनता की गाढ़ी कमाई को किस तरह से लूटा जा रहा है, पढि़ए पत्रिका बिजनेस की इस स्‍पेशल रिपोर्ट में…

जान लीजिये क्‍या होती है बंधेल ज्‍वेलरी
बंधेल ज्वैलरी पर सोने का वर्क चढ़ाया जाता है। ये ज्वैलरी उसी तरह की होती है जैसे पुराने जमाने में हसली होती थी। तांबे और चांदी की हसली पर सोने का वर्क किया जाता था। सबसे पहले इसकी शुरुआत करीब 15 साल पहले उत्‍तर प्रदेश के शहरों से शुरू हुई थी। मौजूदा समय में बंधेल की ज्वैलरी का कारोबार पूरे देश में फैल चुका है। अगर बात आंकड़ों की करें तो देश में महीने कारोबार 100 करोड़ से ऊपर का है। जबकि शहर में 50 हजार से अधिक कारीगर बंधेलल ज्‍वेलरी को बनाने में लगे हुए हैं।

इस तरह होती है पहचान
– सोने और बंधेल की ज्वैलरी में सबसे बड़ा आवाज का अंतर है।
– बंधेल की ज्वैलरी में ज्यादा खनखनाहट होती है।
– प्योर गोल्ड में आवाज नहीं होती है और थोड़ा भारीपन भी रहता है।
– बंधेल की ज्वैलरी मेटल में हल्‍का सा सोने का वर्क चढ़ा होता है।
– बंधेल ज्वैलरी को हॉलमार्क भी डिटेक्ट नहीं कर पाता है।
– हॉलमार्क बंधेल ज्‍वेलरी को 91.6 फीसदी गोल्ड बताता है।
– बंधेल की ज्वैलरी को कसौटी पर ज्यादा भी कसा जाए तो भी पता लगाना मुश्किल है।
– ज्वैलरी पर गहरी रेती लगाने के बाद बंधेल ज्‍वैलरी के बारे में पता चलता है।

किन धातुओं का होता है इस्‍तेमाल
बंधेल की ज्वैलरी अगर 50 ग्राम की है तो उसमें 40 ग्राम मेटल होता है। बंधेल ज्‍वैलरी को बनाने के लिए ब्रास और कॉपर का यूज किया जा रहा है। दोनों ही मेटल काफी सस्ते और सुलभ हैं। जिसका ज्वैलर्स काफी खुलकर उपयोग कर रहे हैं।

आखिर बंधेल पर फेल क्‍यों होता है हॉलमार्क
भारत सरकार ने गोल्ड की गुणवक्ता के लिए ही हॉलमार्क की शुरुआत की थी। अब सवाल ये उठ रहा है कि बंधेल की ज्वैलरी को हॉलमार्क क्यों नहीं डिटेक्ट कर पा रहा है। त्रिपुंड ज्‍वैलर्स के मालिक सर्वेश कुमार अग्रवाल के अनुसार हॉलमार्क मशीन ज्‍वैलरी की ऊपरी परत को ही चेक करती है। बंधेल ज्‍वैलरी के ऊपरी हिस्‍से में सोने का वर्क होता है। ऐसे में हॉलमार्क मशीन उसे गोल्ड ही समझती है।

इस धोखे से इस तरह से बचें
– गोल्ड ज्वैलरी विश्वासपात्र ज्वैलर से ही खरीदें।
– कितना ही विश्वासपात्र ज्वैलर क्यों न हो उससे बिल जरूर लें।
– ज्वैलरी पर हॉलमार्क का निशान हो।
– हॉलमार्क सेंटर का नाम जरूर होना चाहिए।
– ज्वैलरी में ज्वैलर का आईडी नंबर होना चाहिए
– ज्वैलरी पर बीआईएस का निशान होना काफी जरूरी है।
– ज्वैलरी पर मेकर का स्टांप होना भी अनिवार्य है।

लोगों को होता है ज्‍यादा नुकसान
त्रिपुंड ज्वैलर्स के मालिक सर्वेश कुमार अग्रवाल कहते हैं कि बंधेल ज्वैलरी की रिसेल वैल्यू 50 से 70 फीसदी होती है। बिल का काफी इम्पॉर्टेंट रोल होता है। बिना बिल के उसे बेचना काफी मुश्किल है। वहीं प्योर गोल्ड की ज्वैलरी की रिसेल वैल्यू प्रेजेंट डेट की गोल्ड में से 10 परसेंट डिडक्ट कर कीमत अदा कर दी जाती है।

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