सांसारिक जीवन त्यागने से पहले भव्य ने अपने परिजनों से अंतिम मुलाकात की थी। भव्य के शौक को देखते हुए उनके पिता दीपेश शाह के दोस्त जयेश देसाई ने एक स्पेशल फरारी भेजी थी। आपको बता दें कि तमाम सुखों को छोड़कर वैराग्य के मार्ग पर जाने वाले भव्य को गाड़ियों और परफ्यूम्स का काफी शौक था। लेकिन दीक्षा ग्रहण करने के बाद उन्हें सिर्फ पैदल ही चलना होगा। दीपेश का कहना है कि भव्य पिछले डेढ़ साल से उनके गुरूजी के पास रह रहा था और उसे पता है वो जिस राह पर जा रहा है वहां कितनी कठिनाइयां हैं।
शाह परिवार में बेटे से पहले बेटी भी इस मार्ग को अपना चुकी है। चार साल पहले भव्य की बहन प्रियांशी ने भी महज 12 साल की उम्र में ही दीक्षा ली थी। अब भव्य ने भी अपनी बहन की तरह सांसारिक मोह को त्याग दिया है। आपको बता दें कि जैन समुदाय में दीक्षा ग्रहण करने के बाद वैराग्य का मार्ग अपनाया जाता है। त्याग, तपस्या और समर्पण का यह मार्ग बेहद कठिनाइयों भरा और मुश्किल परीक्षा लेने वाला होता है। इससे पहले भी छोटी उम्र में संन्यासी बनने के कई मामले सामने आ चुके हैं।