अयोध्या स्थित राम जन्मभूमि मामले में फैसला देने से पहले शीर्ष अदालत को ये तय होगा कि संविधान पीठ के 1994 के उस फैसले पर फिर से विचार करने की जरूरत है या नहीं कि मस्जिद में नमाज पढना इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है या नहीं। इसके बाद ही टाइटल सूट पर विचार होगा। 28 सितंबर को इसी मुद्दे पर फैसला आने की उम्मीद है।
आपको बता दें कि 1994 में पांच जजों के पीठ ने राम जन्मभूमि में यथास्थिति बरकरार रखने का निर्देश दिया था। ताकि हिंदू पूजा कर सकें। पीठ ने ये भी कहा था कि मस्जिद में नमाज पढना इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है या नहीं। 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला देते हुए विवादित भूमि को एक तिहाई हिंदू, एक तिहाई मुस्लिम और एक तिहाई राम लला को दिया था।
अयोध्या में राम मंदिर का जल्द निर्माण करने की संघ प्रमुख मोहन भागवत की वकालत के दो दिन बाद शिवसेना ने उनकी प्रतिबद्धता की सराहना की। लेकिन इस मुद्दे को लेकर उनके नेताओं पर सवाल उठाए। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह पर निशाना साधते हुए शिवसेना ने कहा कि वह भाजपा के अगले 50 सालों तक देश पर शासन करने के बारे में पूरे विश्वास से बोलते हैं। जबकि जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाली संविधान की धारा 370 को खत्म करने और राम मंदिर के मुद्दों पर टिप्पणी करने से बचते हैं।