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सुधर रहे भारत-चीन के रिश्ते, दोनों देश करेंगे सालाना युद्धाभ्यास: सेना प्रमुख

जनरल रावत ने कहा कि वह इस मिथक को दूर करना चाहते हैं जिसमें यह माना जाता है कि रक्षा क्षेत्र का सारा बजट सेनाओं पर खर्च होता है।

Mar 13, 2018 / 11:15 pm

Chandra Prakash

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नई दिल्ली: डोकलाम विवाद की वजह से भारत-चीन के रिश्तों के बीच आई खटास अब धीरे धीरे खत्म होने लगी है। मंलगवार को सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत का बयान इस बात की तस्दीक करते हैं। जनरल रावत ने कहा कि भारत और चीन के बीच होने वाला वार्षिक युद्धाभ्यास इस साल हभी होगा। रावत ने ये भी कहा कि अब दोनों देश के रिश्ते काफी हद कर सुधर चुके हैं।
पटरी पर आए भारत-चीन के रिश्ते
सेना प्रमुख ने कहा कि हर साल दोनों देश की सेनाओं के बीच होने वाले हैंड इन हैंड अभ्यास को पिछले साल (डोकलाम विवाद की वजह से) स्थगित किया गया था। लेकिन अब रिश्ते सुधर रहे हैं, यह अभ्यास वापस पटरी पर आ गया है।
राष्ट्र निर्माण में खर्च होता रक्षा बजट का 35 फीसदी हिस्सा
रक्षा बजट को लेकर पूछे गए एक सवाल के जवाब में जनरल रावत ने कहा कि वह इस मिथक को दूर करना चाहते हैं जिसमें यह माना जाता है कि रक्षा क्षेत्र का सारा बजट सेनाओं के रख रखाव पर खर्च होता है। उन्होंने कहा कि रक्षा बजट का लगभग 35 प्रतिशत हिस्सा राष्ट्र निर्माण में खर्च होता है। उन्होंने कहा कि सीमा से लगते दूर दराज के क्षेत्रों में ढांचागत सुविधाओं का विकास लोगों को शेष देश से जोड़ता है और यह राष्ट्र निर्माण में बड़ा योगदान होता है।
आपात खरीदारी के लिए सेना के पास नहीं है पैसा
जनरल रावत ने यह बात ऐसे समय कही है जब संसद की एक समिति ने भी सेनाओं के आधुनिकीकरण तथा रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के लिए बजट को नाकाफी बताया है। बता दें कि रक्षा मंत्रालय से संबद्ध संसद की स्थायी समिति का का मानना है कि रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के लिए से शुरू की गयी मेक इन इंडिया योजना के तहत सेना की 25 परियोजनाएं भी पैसे की कमी के कारण ठंडे बस्ते में जा सकती हैं। स्थायी समिति ने वर्ष 2018-19 के लिए रक्षा मंत्रालय की अनुदान मांगों से संबंधित रिपोर्ट आज लोकसभा में पेश की। हालत यह है कि सेना के पास जरूरत पड़ने पर हथियारों की आपात खरीद और दस दिन के भीषण युद्ध के लिए जरूरी हथियार तथा साजो-सामान तथा आधुनिकीकरण की 125 योजनाओं के लिए भी पर्याप्त पैसा नहीं है। दो मोर्चों पर एक साथ युद्ध की तैयारी के नजरिये से भी सेना के पास हथियारों की कमी है और उसके ज्यादातर हथियार पुराने हैं।

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