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अब कोरोना एंटीबॉडी ही बन रही बच्चों की जान की दुश्मन, जयपुर में 17 बच्चों की मौत

कोविड 19 की संभावित तीसरी लहर से पहले ही बच्चे एसिम्प्टोमेटिक (अलक्षणीय) कोरोना की चपेट में आ रहे हैं। शरीर में बनी एंटीबॉडी या हाई इम्यून सिस्टम के कारण बच्चे मल्टी इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम इन चाइल्ड (एमआईएस-सी) के शिकार भी हो रहे हैं।

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Sunil Sharma

Jul 05, 2021

coronavirus update

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नई दिल्ली। कोरोना की दूसरी लहर में बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक सभी चपेट में आए। बुजुर्गों का उपचार हुआ, उन्हें अस्पताल भी जाना पड़ा, लेकिन इस बीच कई बच्चे भी संक्रमित हुए जिन्हें एसिंप्टोमेटिक कोरोना हुआ। परिजनों को भी उनके संक्रमित होने का पता नहीं चल सका। वे ठीक भी हो गए और उनके शरीर में एंटीबॉडी भी बन गई। अब यह तेज एंटीबॉडी ही बच्चों के बीमार होने का कारण बन रही है। वे मल्टी इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम इन चाइल्ड (एमआइएस-सी) के शिकार हो रहे हैं। इस तरह के मामले जयपुर के जेके लोन में लगातार बढ़ रहे हैं। गंभीर हालत में यहां आए 17 बच्चे दम तोड़ चुके हैं।

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कोविड 19 की संभावित तीसरी लहर से पहले ही बच्चे एसिम्प्टोमेटिक (अलक्षणीय) कोरोना की चपेट में आ रहे हैं। शरीर में बनी एंटीबॉडी या हाई इम्यून सिस्टम के कारण बच्चे मल्टी इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम इन चाइल्ड (एमआईएस-सी) के शिकार भी हो रहे हैं। विशेषज्ञों की मानें तो, जिनमें एंटीबॉडी बन गई वह कोरोना से तो सुरक्षित हो गया लेकिन बच्चों में यह बात उलटी साबित हो रही है।

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बच्चे संक्रमित हुए और बिना अस्पताल गए ठीक भी हो गए लेकिन उनमें जो एंटीबॉडी बनी है, वो उनके लिए ही मुश्किल पैदा कर रही है। एक्सपर्ट्स के अनुसार यह हमारे इम्यून सिस्टम के ओवररिएक्शन के कारण से होने वाली प्रक्रिया है। इसमें कोरोना के बाद शरीर में ऐसे जहरीले तत्व उत्पन्न होने लगते हैं, जो कि शरीर के विभिन्न अंगों को नुकसान पहुंचाते हैं। एमआईएस-सी सिंड्रोम के शिकार बच्चे अस्पताल में इलाज के लिए लाए जा रहे हैं। तीसरी लहर से पहले यह परेशानी बनी हुई है। 3 से 8 साल के बच्चों में ज्यादा केस आ रहे हैं। बीमारी जल्दी पकड़ में आने पर जल्दी ठीक भी हो जाते हैं।

ऐसे समझें बीमारी तथा इसके लक्षणों को
संक्रमित होने के दो से छह सप्ताह बाद तक यह सिंड्रोम हो सकता है। लिवर, किडनी, हार्ट व आहार नाल जैसे अंगों में सूजन आने लगती है। इस बीमारी के 54 प्रतिशत पीड़ित मरीजों में ईसीजी असामान्य होती है। बीमारी पर फिलहाल शोध किया जा रहा है। अभी तक यह बीमारी बच्चों में ही देखने को मिली है। इसमें हार्ट व फेफड़े के आस-पास पानी भरना, 24 घंटे तक तेज बुखार, स्किन रैसेज, चेहरे पर सूजन, पेट दर्द, धड़कन, सांस फूलना, आंखें लाल होना, हाथ, होंठ चेहरे व जीभ पर सूजन, लाल चकते समेत कई लक्षण मिल रहे हैं। इसमें बीपी और हार्ट रेट की मॉनिटरिंग करने की भी जरूरत पड़ रही है। संक्रमित होने के बाद बनने वाली एंटीबॉडी बच्चों के अंगों पर अटैक करने लगती है, समय पर इलाज नहीं मिलने पर स्थिति खतरनाक हो सकती है।

इस तरह सामने आ रही स्थिति
अस्पताल लाए गए ज्यादातर बच्चों में बुखार पाया गया जो सामान्य दवाई से ठीक नहीं होता। पेट दर्द, उल्टी-दस्त, त्वचा में लाल दाने या आंखें आना और खांसी जैसे लक्षण पाए गए। अधिकतर बच्चों के माता-पिता या परिजन संक्रमित थे परन्तु कुछ बच्चों के माता-पिता भी संक्रमित नहीं मिले। कईयों में लक्षण भी नहीं हैं। बच्चें संक्रमित भी हो गए, उस वक्त कुछ नहीं हुआ परन्तु अब इसके परिणाम नजर आ रहे हैं।

ऐसे होता है इलाज
अस्पताल में आने पर सबसे पहले कोरोना एंटीबॉडी टेस्ट करवाया जाता है। पॉजिटिव आने के बाद सीआरपी, सोनोग्राफी, सीटी और डी-डायमर करवाते हैं। सही समय पर इलाज मिलने पर बच्चा एक से दो सप्ताह में ठीक हो जाता है।

जेके लोन अस्पताल में यह कहा
कई बच्चे ऐसे हैं जिनमें 1 प्वाइंट एंटीबॉडी है, वे बीमार हो रहे हैं। कई ऐसे भी हैं जिनमें 200 से 300 प्वाइंट एंटीबॉडी है। वे भी बीमार हैं। जेके लोन अस्पताल में अब तक इससे ग्रस्त 153 बच्चे आए हैं, जिनमें 17 बच्चे दम तोड़ चुके हैं। हॉस्पिटल के एडिशनल सुप्रीडेंट मनीष शर्मा ने कहा कि यह पोस्ट कोविड बीमारी है। यहां अभी तक जितने भी केस आए हैं, उनके माता-पिता को जानकारी ही नहीं है कि बच्चा संक्रमित हो गया। जब तक पता चलता है तब तक बीमारी उग्र हो चुकी होती है। अब तक 153 बच्चे आ चुके हैं, जिनमें 17 की मौत हो चुकी है। इनमें एंटीबॉडी ज्यादा पाई गई थी।