रंग लाई सांसद चंद्रशेखर की पहल
लगभग कबाड़ में पहुंच चुके इस विमान को फिर से वायुसेना का हिस्सा बनाने में राज्यसभा सदस्य राजीव चंद्रशेखर का बहुत बड़ा हाथ है। उन्होंने ने ही इसे वायुसेना को वापस दिलाने में अहम भूमिका निभाई है। उनके ही प्रयास से इसे ब्रिटेन में नए सिरे से तैयार किया गया। मार्च में यह उत्तर प्रदेश के हिंडन एयर बेस पर पहुंचेगा। अब इसे परशुराम का नाम दिया गया है। इसे वीपी 905 के नाम से भी जाना जाएगा। राजीव चंद्रशेखर ने कहा कि उन्हें यह विमान 2011 में मिला था। उनका कहना है कि वायु सेना को इसे फिर से सुपुर्द करना बेहद सम्मान की बात है। हाल ही में बेंगलुरु में हुए समारोह में सांसद ने विमान के दस्तावेज एयर चीफ मार्शल को सौंपे। उनके पिता रिटायर्ड एयर कमाडोर एमके चंद्रशेखर भी समारोह में मौजूद थे। सांसद ने बताया कि उनके पिता इस विमान को उड़ाया करते थे। उनका इससे जुड़ाव युवा अवस्था में भी हो गया था। एमके चंद्रशेखर अब 84 साल के हैं।
लगभग कबाड़ में पहुंच चुके इस विमान को फिर से वायुसेना का हिस्सा बनाने में राज्यसभा सदस्य राजीव चंद्रशेखर का बहुत बड़ा हाथ है। उन्होंने ने ही इसे वायुसेना को वापस दिलाने में अहम भूमिका निभाई है। उनके ही प्रयास से इसे ब्रिटेन में नए सिरे से तैयार किया गया। मार्च में यह उत्तर प्रदेश के हिंडन एयर बेस पर पहुंचेगा। अब इसे परशुराम का नाम दिया गया है। इसे वीपी 905 के नाम से भी जाना जाएगा। राजीव चंद्रशेखर ने कहा कि उन्हें यह विमान 2011 में मिला था। उनका कहना है कि वायु सेना को इसे फिर से सुपुर्द करना बेहद सम्मान की बात है। हाल ही में बेंगलुरु में हुए समारोह में सांसद ने विमान के दस्तावेज एयर चीफ मार्शल को सौंपे। उनके पिता रिटायर्ड एयर कमाडोर एमके चंद्रशेखर भी समारोह में मौजूद थे। सांसद ने बताया कि उनके पिता इस विमान को उड़ाया करते थे। उनका इससे जुड़ाव युवा अवस्था में भी हो गया था। एमके चंद्रशेखर अब 84 साल के हैं।
11 देशों का लगाना पड़ा चक्कर
डकोटा को हिंडन तक पहुंचने से पहले फ्रांस, इटली, ग्रीस, मिस्र, ओमान सहित 11 देशों से गुजरना होगा। ऐसा इसलिए कि इसे भारतीय वायुसेना का हिस्सा बनाने के लिए कानूनी प्रक्रियाओं को पूरा करना पड़ेगा। भारत में उसकी पहली लैडिंग जामनगर हवाई अड्डे पर होगी। उसके बाद यह हिंडन पहुंचेगा। भारतीय वायु सेना ने इसके भारत में पहुंचने के लिए विभिन्न देशों से अनुमति हासिल की। भारतीय सेना में इसे शामिल करने के लिए चंद्रशेखर ने पहली बार यूपीए सरकार को यह प्रस्ताव दिया था, लेकिन सकारात्मक जवाब नहीं मिला। उन्होंने हार नहीं मानी और पीएम मोदी की सराकर से इसे सेना का हिस्सा बनाने की अपील की। तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने उनके इस ऑफर को स्वीकार करते हुए सेना में शामिल करने को लेकर हरी झंडी दे दी। अब यह लंदन से भारत के लिए अपनी उड़ान शुरू करने की प्रतीक्षा कर रहा है।
डकोटा को हिंडन तक पहुंचने से पहले फ्रांस, इटली, ग्रीस, मिस्र, ओमान सहित 11 देशों से गुजरना होगा। ऐसा इसलिए कि इसे भारतीय वायुसेना का हिस्सा बनाने के लिए कानूनी प्रक्रियाओं को पूरा करना पड़ेगा। भारत में उसकी पहली लैडिंग जामनगर हवाई अड्डे पर होगी। उसके बाद यह हिंडन पहुंचेगा। भारतीय वायु सेना ने इसके भारत में पहुंचने के लिए विभिन्न देशों से अनुमति हासिल की। भारतीय सेना में इसे शामिल करने के लिए चंद्रशेखर ने पहली बार यूपीए सरकार को यह प्रस्ताव दिया था, लेकिन सकारात्मक जवाब नहीं मिला। उन्होंने हार नहीं मानी और पीएम मोदी की सराकर से इसे सेना का हिस्सा बनाने की अपील की। तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने उनके इस ऑफर को स्वीकार करते हुए सेना में शामिल करने को लेकर हरी झंडी दे दी। अब यह लंदन से भारत के लिए अपनी उड़ान शुरू करने की प्रतीक्षा कर रहा है।
बांग्लादेश मुक्ति संग्राम दिखाया था दम
डकोटा को 1930 में रॉयल इंडियन एयर फोर्स के 12वें दस्ते में शामिल किया गया था। भारत-पाक के 1971 के युद्ध में भी इस विमान ने बांग्लादेश की मुक्ति में अहम भूमिका निभाई। इससे पहले आजादी के तत्काल बाद पुंछ सहित जम्मू और कश्मीर को भारत का हिस्सा बनाए रखने में यह निर्णायक साबित हुआ था। उसके बाद ब्रिटेन ने इसे फिर से अत्याधुनिक स्वरूप प्रदान किया है। डगलस डीसी-3 एयरक्राफ्ट के नाम से भी मशहूर इस विमान ने युद्ध के दौरान साजोसामान को पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। सैन्य इतिहासकार पुष्पेंद्र सिंह का कहना है कि विमान का इतिहास भारतीयों को गर्व से ओतप्रोत करने वाला है। जब यह फिर से वायु सेना का हिस्सा बनेगा तो सभी के लिए बेहद फख्र की बात होगी। बात चाहे 1947 की हो या फिर 1971 की। इस विमान ने हमेशा सेना को हर जगह मजबूती प्रदान की।
डकोटा को 1930 में रॉयल इंडियन एयर फोर्स के 12वें दस्ते में शामिल किया गया था। भारत-पाक के 1971 के युद्ध में भी इस विमान ने बांग्लादेश की मुक्ति में अहम भूमिका निभाई। इससे पहले आजादी के तत्काल बाद पुंछ सहित जम्मू और कश्मीर को भारत का हिस्सा बनाए रखने में यह निर्णायक साबित हुआ था। उसके बाद ब्रिटेन ने इसे फिर से अत्याधुनिक स्वरूप प्रदान किया है। डगलस डीसी-3 एयरक्राफ्ट के नाम से भी मशहूर इस विमान ने युद्ध के दौरान साजोसामान को पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। सैन्य इतिहासकार पुष्पेंद्र सिंह का कहना है कि विमान का इतिहास भारतीयों को गर्व से ओतप्रोत करने वाला है। जब यह फिर से वायु सेना का हिस्सा बनेगा तो सभी के लिए बेहद फख्र की बात होगी। बात चाहे 1947 की हो या फिर 1971 की। इस विमान ने हमेशा सेना को हर जगह मजबूती प्रदान की।