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आत्मसुधार की अनोखी गुणवत्ता
यहां समारोह के मुख्य अतिथि सत्यार्थी ने कहा कि ये हीनभावना हमारे भाषा, परंपरा, संस्कृति, पहनावे, खान-पान और शिक्षा के क्षेत्र में अवमानना की बढ़ती भावना के रुप में परिलक्षित होती है। उन्होंने कहा कि लोगों को निश्चिय ही उन मूल्यों को अपनाना चाहिए जो भारतीय संस्कृति के हृदय में है। सत्यार्थी ने आरएसएस के समारोह में कहा कि हमारी संस्कृति ठहरे हुए जल का तालाब नहीं है, बल्कि यह लगातार बहने वाली नदी है जो झरनों और सहायक नदियों को जन्म देती है। हम भारतीय एक विशेष निरंतर आत्मसुधार की अनोखी गुणवत्ता के साथ जन्में हैं और हमें निश्चिय ही इसपर गर्व होना चाहिए।
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आत्मसम्मान प्राप्त करना चाहिए
उन्होंने वहां उपस्थित युवाओं से कहा कि दूसरों की नकल करने या उनका पीछा करने के बजाए आपको अपनी सहज सांस्कृतिक ताकत को पहचानना चाहिए और इससे आत्मसम्मान प्राप्त करना चाहिए। आपको बता दें कि हजारों बच्चों को बाल श्रम से मुक्त करा चुके कैलाश सत्यार्थी इस बार संघ के विजयदशमी कार्यक्रम का हिस्सा बने हैं। संघ की ओर से हर साल विजयादशमी को अपने स्थापना दिवस कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। इसके पीछे एक बड़ा कारण यह भी है कि आरएसएस की शुरुआत साल 1925 में विजयादशमी के ही दिन ही हुई थी।