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10 साल की मिलती थी सजा
आज के फैसले से पहले भारतीय दंड संहिता में समलैंगिकता को अपराध समझा जाता था। आईपीसी की धारा 377 के अनुसार जो भी किसी पुरुष, महिला या पशु के साथ प्रकृति की व्यवस्था के खिलाफ सेक्स करता है, तो इस अपराध के लिए उसे 10 साल की सजा या आजीवन कारावास से दंडित किए जाने का प्रावधान था। साथ ही उस पर जुर्माना भी लगाया जाएगा। लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गए फैसले ने इन सभी प्रावधानों को गलत ठहराते हुए 377 को अवैध ठहराया है।
पहले कहां सामने आया था समलैंगिकता का मामला
गौरतलब है कि समलैंगिकता का मामला सबसे पहले 1290 में इंग्लैंड के फ्लेटा से सामने आया था। इसके बाद इसे कानून बनाकर अपराध की श्रेणी में शामिल कर लिया गया था। बाद में ब्रिटेन और इंग्लैंड में 1533 में अप्राकृतिक यौन संबंधों को लेकर बगरी एक्ट बनाया गया। बगरी एक्ट के तहत ऐसे अपराधियों के लिए फांसी का प्रावधान रखा गया था। हालांकि 1817 में बगरी एक्ट से ओरल सेक्स को हटा दिया गया था।
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इन देशों में समलैंगिकता अपराध नहीं
आपकों बता दें कि भारत ऐसा अकेला देश नहीं है, जहां समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर रखा गया है। इससे पहले भी दुनिया के तमाम देश समलैंगिकता को मान्यता दे चुके हैं। इनमें न्यूजीलैंड, उरुग्वे, डेनमार्क, अर्जेंटीना, आयरलैंड, अमेरिका, ग्रीनलैंड, ब्राजील और फ्रांस सहित 26 देश शामिल हैं।