आतंक का पर्याय बन चुकी आदमखोर बाघिन अवनी का हुआ अंत, किया था 13 लोगों का शिकार
मुंबई। बाघिन के डर से आतंक के साए में रहने को मजबूर लोगों ने अब राहत की सांस ली है। क्योंकि दहशतगर्दी का दूसरा नाम बन चुकी बाघिन को मार गिराया गया है। नरभक्षी बाघिन को वन विभाग की टीम ने शुक्रवार रात ढेर कर दिया। इसके बाद उसका पोस्टमार्टम भी हुआ। अवनि उर्फ T1 नामक बाघिन ने 13 लोगों को अपना शिकार बनाया था। आदमखोर बाघिन का आतंक यवतमाल जिले में था।
दो शावकों की मां को मारने के लिए 200 लोगों की टीम बनाई गई थी। बता दें कि बाघिन को बचाने के लिए जानवरों के हक की आवाज उठाने वाले लोगों ने अभियान भी चलाया था। सुप्रीम कोर्ट में इस बाबत एक याचिका भी डाली गई थी। अवनि को गोली असगर अली ने मारी। असगर अली विवादित निशानेबाज शफात अली खान के बेटे हैं।
उल्लेखनीय है कि आदमखोर बाघिन के आतंक से निजात दिलाने के लिए वन विभाग ने हैदराबाद से देश के सबसे बड़े शूटर्स में शामिल नबाव शफात अली खान को बुलाया था। अवनि के दो शवकों के बारे में अभी कोई सूचना नहीं है।
तीन महीनों तक चला आंख मिचौली का खेल कहा जाता है कि 2012 में इस मादा टाइगर को पहली बार यवतमाल जिले के पंढारवाड़ा के जंगलों में देखा गया। तभी उसे इंसानी खून मुंह लगा। इसके बाद उसने लोगों को मारना शुरू किया। स्थानीय लोग खौफजदा रहने लगे। बाघिन के आतंक के बाद प्रशासन ने उसे मारने का फैसला किया। इसके बाद आदमखोर बाघिन करीब तीन महीने तक शिकारियों के साथ आंख मिचौली का खेल खेलती रही।
बनाई गई 200 लोगों की टीम बाघिन को पकड़ने के लिए दो सौ कैमरे का भी इस्तेमाल हुआ। उसे मारने के लिए टीम बनाई गई। इस टीम में दो सौ लोग शामिल हुए। अवनी को पकड़ने के लिए वन विभाग ने ड्रोन कमरे, खोजी कुत्ते, हैंड-ग्लाइडर (बिना इंजन वाला जहाज) का इस्तेमाल किया गया।
कैसे हुई पुष्टि आदमखोर होने की पुष्टि? डीएनए जांच, कैमरा ट्रैप्स और पंजों के निशानों के चलते जांचकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे थे कि अवनि अब नरभक्षी हो चुकी है और इंसानी मांस के लिए लोगों का शिकार कर चुकी है।
सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची अवनि की कहानी वन विभाग ने आदमखोर बाघिन को मारने का आदेश दिया था। सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बाघिन को शूट करने के वन विभाग के आदेश को पहले बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच में चुनौती दी थी। इस पर हाईकोर्ट ने मुहर लगा दी थी। फिर इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर में इस दया याचिका को खारिज करते हुए हाईकोर्ट के आदेश को कायम रखा था।
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