scriptMuharram 2021: इमाम हुसैन की शहादत और मुहर्रम | Muharram 2021: Why we celebrate muharram its connection to hajrat imam | Patrika News
विविध भारत

Muharram 2021: इमाम हुसैन की शहादत और मुहर्रम

Muharram 2021: पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब के नवासे हज़रत इमाम हुसैन कर्बला (इराक़ का शहर) में मुहर्रम की 10 तारीख़ (जिसे यौमे आशूरा कहा जाता है) के दिन शहीद हुए।

Aug 19, 2021 / 07:43 am

सुनील शर्मा

muharram.jpg
-पद्मश्री प्रो. अख़्तरुल वासे

Muharram 2021: नई दिल्ली। इस्लामी कैलेण्डर पैगंबर हज़रत मुहम्मद साहब के मक्के से मदीने की ओर हिजरत (गमन) से शुरू होता है। वर्तमान में इस्लामी हिजरी सन् 1443 चल रहा है। यह अजीब इत्तेफ़ाक़ है कि इस्लामी कैलेण्डर (हिजरी सन्) का पहला महीना मुहर्रम और आख़िरी महीना ज़िल्हिज (हज का महीना) दोनों का रिश्ता एक-एक क़ुर्बानी से जुड़ा हुआ है। ज़िल्हिज में हज़रत इब्राहीम के बेटे इस्माईल की क़ुर्बानी को याद किया जाता है और उसका अनुसरण करते हुए दुनिया भर के मुसलमान जानवर की कुर्बानी करते हैं। क्योंकि ईश्वर ने जब बाप-बेटे को इस परीक्षा में कामयाब पाया तो इस्माईल की जगह एक पशु को भेज कर उसकी कुर्बानी करवा दी।
क्या है आशूरा और हिजरी
पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब के नवासे हज़रत इमाम हुसैन कर्बला (इराक़ का शहर) में मुहर्रम की 10 तारीख़ (जिसे यौमे आशूरा कहा जाता है) के दिन शहीद हुए। मुहर्रम का महीना क़ुर्बानी का महीना है। इमाम हुसैन से उस वक़्त का शासक यज़ीद यह चाहता था कि वेउसके स्वामित्व को स्वीकार करें, उसके शासन को सही मानें, लेकिन क्योंकि यज़ीद इस्लाम धर्म में शासक और शासन के लिए निर्धारित मापदण्डों पर पूरा नहीं उतरता था, इसलिए इमाम हुसैन और उनके समर्थक इसके लिए तैयार नहीं थे। वे पहले मदीने से मक्के की तरफ़ चले आए, ताकि मदीना जो उनके नाना का नगर था, वहाँ पर कोई बवाल खड़ा ना हो। इमाम हुसैन को यह विश्वास था कि मक्का, जो शान्ति का प्रतीक नगर था और जहाँ किसी भी जीव-जन्तु को मारना निषेध था, वहाँ पर वे शान्ति से रह सकेंगे, लेकिन मक्का पहुँच कर कुछ दिनों में ही उन्हें आभास हो गया कि सत्ताधारी पक्ष उन्हें सताने के लिए मक्का की गरिमा को भी क्षति पहुँचा सकते हैं। इसके बाद वे वहाँ से भी अपने प्रियजनों और समर्थकों के साथ कूफ़े (इराक़ का एक शहर) की तरफ़ चल दिए, क्योंकि वहाँ से बार-बार बुलावा आ रहा था, लेकिन उन्हें कर्बला नामी जगह के पास यज़ीद की फ़ौजों ने घेर लिया।
इमाम हुसैन ने जंग को टालने के लिए, कहा जाता है कि यह आग्रह भी किया कि उन्हें भारत की तरफ़ जाने दिया जाए, लेकिन दुश्मनों ने एक बात भी ना मानी और इमाम हुसैन और उनके साथियों को जंग करने पर मजबूर कर दिया। यहाँ यह बात स्पष्ट भी रहनी चाहिए कि इमाम हुसैन जंग के लिए घर से नहीं निकले थे। अगर ऐसा होता तो वे पैग़म्बर साहब के घराने की उन बीवियों को लेकर मैदाने जंग में न आते, जिनके पावन शरीर को कभी आसमान ने भी नहीं देखा था। जंग के मैदान में कोई अपने दूध पीते बच्चे और बीमार बेटे को लेकर नहीं आता। यह जंग उन पर ज़बरदस्ती थोपी गई थी और उन पर पानी भी बंद कर दिया गया था। जंग से पहले हज़रत इमाम हुसैन ने जो भाषण दिया, उसमें एक बार फिर जंग को टालने की इच्छा जताई, लेकिन विरोधियों के कान पर जूँ ना रेंगी और मुहर्रम की 10 तारीख़ को इमाम हुसैन को शहीद कर दिया गया। उनसे पहले उनके वंशज से जुड़े लोगों और उनके समर्थकों को भी शहीद किया जा चुका था।
Muharram, Muharram 2021 prof_akshtul_vase.jpg
इमाम हुसैन से मुहर्रम का सम्बन्ध
इमाम हुसैन ने कर्बला के मैदान में अपना सर कटवा दिया, लेकिन बुराई और यज़ीद के शासन का समर्थन करने के लिए उसके हाथ में अपना हाथ नहीं दिया और इस तरह वे अपने उद्देश्य में सफल रहे और यज़ीद नाकाम रहा। हज़रत ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी ने इसी वास्तविकता को काव्य के रूप में यूँ बयान किया है:
शाह हस्त हुसैन, बादशाह हस्त हुसैन,
दीं हस्त हुसैन, दीं पनाह हस्त हुसैन,
सर दाद न दाद, दस्त दर दस्ते यज़ीद,
हक़्क़ा कि बिनाए ला इलाह हस्त हुसैन।

(हुसैन शाह हैं, हुसैन बादशाह हैं। हुसैन धर्म हैं और धर्म को शरण देने वाले भी हुसैन हैं। उन्होंने अपना सर कटवा दिया, लेकिन यज़ीद के हाथ पर उसके शासन का अनुमोदन नहीं किया। सच यह है कि ला इलाह (यानी अल्लाह के अलावा कोई सर झुकाने के योग्य नहीं) की नींव की रक्षा करने वाले भी हुसैन हैं।
क्यों मनाते हैं मुहर्रम
दुनिया में इमाम हुसैन और उनके समर्थकों के बलिदान को चौदह सौ साल से दुनिया भर में हर साल मुहर्रम के रूप में मनाया जाता है। हिन्दुस्तान में भी धर्म, क्षेत्र और भाषा से ऊपर उठ कर इमाम हुसैन को याद किया जाता है, उनकी शहादत पर मातम किया जाता है और ख़ुद हिन्दुओं में ब्राह्मणों की एक गोत्र ‘‘दत्त’’ में हुसैनी ब्राह्मण भी पाये जाते हैं। उर्दू काव्य में मर्सिया (शोक-गीत) के अलावा दूसरी भाषाओं और बोलियों में भी एक बड़ा संग्रह मिलता है और उसकी विशेषता यह है कि वह दुखद घटना जो कभी इराक़ में कभी फ़रात नदी के किनारे घटी थी, उसे गोमती नदी के किनारे हिन्दुस्तानी कवियों ने इस तरह दर्शाया है कि भारतीय रीति-रिवाज उसमें समा गए हैं। इमाम हुसैन और उनके सहयोगियों की शहादत हमारे विवेक में इस तरह रम गई है कि सैदानियाँ (सय्यद घराने की औरतें) जब किसी को दुआ भी देती हैं तो यही कहती हैं कि ‘‘ख़ुदा तुम्हें ग़मे-हुसैन के अलावा कोई दूसरा ग़म ना दे।’’
(लेखक मौलाना आज़ाद यूनिवर्सिटी जोधपुर के अध्यक्ष (वाइस चांसलर) और विख्यात इस्लामिक स्काॅलर हैं।)

muharram 2021 date: 20 अगस्त को होगा मुहर्रम का अवकाश, सरकार का फैसला

Muharram 2021: मुहर्रम 2021 Massages, Quotes, Images, Facebook Whatsapp status

Hindi News / Miscellenous India / Muharram 2021: इमाम हुसैन की शहादत और मुहर्रम

ट्रेंडिंग वीडियो