देश में 75 फीसदी से अधिक डॉक्टर काम के दौरान सहते हैं हिंसा
पिछले पांच साल के आंकड़ों के अनुसार हिंसा का यह प्रतिशत 68.33 रहा जो मरीजों के साथ आए लोगों ने की
नई दिल्ली। जो चिकित्सक हमारी जान की हिफाजत करते हैं, वे ही अपने काम के दौरान हिंसा के शिकार होते हैं। पूरे देश में 75 फीसदी से अधिक चिकित्सक इस तरह की हिंसा सहते हैं। यह हिंसा मरीजों के परिजनों, मित्रों और सम्बंधियों द्वारा की जाती है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन द्वारा कराए गए एक अध्ययन में यही बात सामने आई है। अध्ययन में यह भी खुलासा हुआ है कि चिकित्सक मरीज के परिजनों की मनोस्थिति समझते हुए ऎसा मामलों की रिपोर्ट दर्ज नहीं कराते।
अध्ययन में एक चौंकाने वाला खुलासा यह भी हुआ है कि इस तरह की ज्यादातर हिंसा आपात चिकित्सा सेवा के दौरान होती हैं-या तो आईसीयू में अथवा ऑपरेशन के लिए मरीज को जब ले जाया जाता है। पिछले पांच साल के आंकड़ों के अनुसार हिंसा का यह प्रतिशत 68.33 रहा जो मरीजों के साथ आए लोगों ने की।
विशेषज्ञों ने कहा कि वास्तविक स्थिति पता नहीं चल सकी है क्योंकि अधिकांश मामलों में इसकी रिपोर्ट दर्ज नहीं होती। आईएमए के महासचिव डॉ. के. के. अग्रवाल मानते हैं कि अधिकांश मामलों की चिकित्सक तभी रिपोर्ट दर्ज कराते हैं जब उन्हें मरीजों के परिजनों से ज्यादा खतरा महसूस होता है और वे इसे सहने को मजबूर होते हैं।
अध्ययन से यह भी पता चला है कि ज्यादातर घटनाएं चिकित्सक के निरीक्षण के समय अथवा पीक ऑवर में होती हैं जब परिजन भी मरीज के पास होते हैं। गम्भीर रूप से बीमार लोगों को जब अस्पताल लाया जाता है, तब भी चिकित्सक और पैरामेडिरल स्टाफ इस तरह की हिंसा सहने को मजूर होता है। आईएमए के अध्ययन के अनुसार 50 फीसदी हिंसक घटनाएं आईसीयू अथवा आपरेशन के लिए मरीज को ले जाते समय हुई। उधर, कुछ चिकित्सक यह मानते हैं कि हम तो सिर्फ अपना कर्म करते जाते हैं। बस इतना ही पर्याप्त है।
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