scriptहिंदी में हू-ब-हू पढ़िए वह पत्र…4 जजों ने चीफ जस्टिस को क्या लिखा | Read Full letter in hindi 4 supreme court judges wrote to CJI | Patrika News
विविध भारत

हिंदी में हू-ब-हू पढ़िए वह पत्र…4 जजों ने चीफ जस्टिस को क्या लिखा

हिंदी में हू-ब-हू पढ़िए वह 7 पेज का खत, जो सुप्रीम कोर्ट ने 4 जजों ने चीफ जस्टिस को लिखा है।

Jan 12, 2018 / 06:14 pm

Chandra Prakash

Supreme Court letter
आदरणीय मुख्य न्यायाधीश,
बहुत ही पीड़ा और चिंता के साथ हमने ये खत लिखने की जरूरत महसूस की है जिससे हाल के समय में इस अदालत के द्वारा लिए गए कुछ फैसलों पर आपका ध्यान आकृष्ट कर सकें। इन फैसलों ने पूरी न्यायिक प्रणाली और हाईकोर्ट की आजादी पर प्रतिकूल प्रभाव डालने के साथ ही मुख्य न्यायाधीश के कार्यालय की प्रशासनिक कार्यपद्धति पर गहरा असर डाला है।

कलकत्ता, बॉम्बे और मद्रास हाईकोर्ट की स्थापना के बाद से ही न्यायिक प्रणाली की अपनी कुछ परंपराएं और मान्यताएं स्थापित हुई हैं। इन्हीं परंपराओं को इस अदालत ने भी स्वीकार किया जिसकी स्थापना इनके करीब एक सदी बाद हुई। इन परंपराओं का आधार एंग्लो-सैक्सन विधिशास्त्र और व्यवहार रहा है।

मुख्य न्यायाधीश के रॉस्टर या कार्यतालिका बनाने का विशेषाधिकार इन्हीं स्थापित सिद्धांतों में से है। बहुसंख्यक अदालती प्रणाली में कार्य के उचित निष्पादन और विषय की गंभीरता, स्वभाव और जरूरत के अनुसार कौन सा मामला किस सदस्य/कोर्ट के पास जाएगा इसका निर्धारण किया जाता है। मुख्य न्यायाधीश के पास रॉस्टर निर्धारित करने से जुड़ी ये परंपरा इस बात पर निर्धारित की गई थी कि अदालतों में काम का निष्पादन अनुशासित और उचित तरीके से हो। इसका अर्थ सीजेआई की वरिष्ठता को स्वीकार करना नहीं था। इस देश के विधिशास्त्र में ये एक पूरी तरह से स्थापित तथ्य है कि मुख्य न्यायाधीश अपने सहकर्मियों में सिर्फ प्रथम हैं – उनसे ज्यादा या कम नहीं। रॉस्टर के निर्माण में उन्हें निर्देशित करने के लिए पूर्व स्थापित और समय की कसौटी पर परखे गए सिद्धांत हैं। चाहे वो किसी केस या विशेष मामले में जजों की संख्या या संगठन तय करने की बात ही क्यों न हो।

इन सिद्धांतों से ही तय ये दूसरा नियम है कि रॉस्टर में इस अदालत समेत किसी किसी भी न्यायिक इकाई की ओर से हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा, न ही संगठनात्मक या न संख्यात्मक आधार पर।

इन दो नियमों को न मानने से न सिर्फ अप्रिय और अरुचिकर नतीजे आएंगे बल्कि इस संस्थान की निष्ठा और अखंडता पर भी सवालिया निशान खड़े होंगे। इसकी वजह से होने वाले उथल-पुथल की बात तो कल्पना भी नहीं की जा सकती।

हमें बड़े ही दु:ख के साथ ये कहना पड़ रहा है कि पिछले कुछ दिनों से इन दो नियमों का पालन नहीं किया जा रहा। ऐसे कई उदाहरण देखने को मिले हैं जब ऐसे कई मामले जिनका देश और इस अदालत के ऊपर दूरगामी प्रभाव हो सकता है को बिना किसी औचित्य के विशेष कारणों से अपनी पंसद के बेंच को दे दिया गया। इसे किसी भी कीमत पर रोका जाना चाहिए।

इन मामलों का ब्योरा हम यहां नहीं दे रहे हैं क्योंकि ऐसा करने से इस सम्मानित संस्था को शर्मिंदगी उठानी होगी। पर ये ध्यान देना होगा कि इन मामलों से संस्थान की प्रतिष्ठा धूमिल हो चुकी है।

इन प्रकरणों पर विचार के बाद हमें उचित लगा कि आपका ध्यान 27 अक्टूबर, 2017 को आरपी लूथरा बनाम भारत सरकार मामले में आए आदेश की ओर दिलाएं। इस मामले को निष्पादित करने की प्रक्रिया (मेमारेंडम ऑफ प्रोसेजर) तय करने में और देर करना देशहित में नहीं होगा। ये समझना कठिन है कि जब ये प्रक्रिया तय करने का अधिकार इस अदालत के संविधान पीठ (सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन बनाम भारत सरकार को दिया गया था तो कोई और बेंच इसपर सुनवाई कैसे कर सकती है।

उपरोक्त विषय के साथ संविधान पीठ के फैसले पर पांच जजों के कॉलेजियम (जिसमें आप भी हैं) में काफी विस्तार से चर्चा के बाद तय मेमोरेंडम ऑफ प्रोसेजर तय किया गया था। इसके बाद ही मार्च 2017 में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने इसे भारत सरकार को भेजा था। भारत सरकार ने इसपर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और इस चुप्पी के मद्देनजर ऐसा समझा जाना चाहिए कि कॉलेजियम द्वारा तय मेमारेंडम ऑफ प्रोसेजर को सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन पर आदेश को देखते हुए भारत सरकार ने स्वीकार कर लिया है । इसे देखते हुए ऐसा कोई औचित्य या मौका नहीं दिखता है कि इस बेंच को इस मेमोरेंडम ऑफ प्रोसेजर के ऊपर कोई टिप्पणी करनी पड़े या मामले को लटकाया कर रखा जाए।

4 जुलाई 2017 को इस अदालत की सात जजों की खंडपीठ ने जस्टिस कर्णन मामले पर फैसला दिया था। इस निर्णय में (आरपी लूथरा से संबोधित) हममें से ही दो जजों ने ये टिप्पणी की थी कि जजों की नियुक्ति प्रक्रिया पर फिर से विचार करने की जरूरत है और ऐसे मामलों में महाभियोग की बजाए सुधारात्मक प्रक्रिया अपनाए जाने की जरूरत है। मेमोरेंडम ऑफ प्रोसेजर को लेकर इन सातों विद्वान जजों के द्वारा कोई टिप्पणी नहीं की गई थी।

मेमोरेंडम ऑफ प्रोसेजर विषय से संबंधित कोई भी चर्चा पूर्ण पीठ के आगे मुख्य न्यायाधीश के समक्ष ही की जा सकती है। ऐसे गंभीर विषय पर अगर न्यायपालिका को निर्णय लेना पड़े तो भी सिर्फ संविधान पीठ इसके लिए सक्षम है। इस महत्वपूर्ण घटनाक्रम को बहुत ही गंभीरता से देखे जाने की जरूरत है। आदरणीय मुख्य न्यायाधीश अपने कर्तव्यों से बंधे होते हुए इस जटिल परिस्थिति के समाधान को बाध्य हैं। उन्हें कॉलेजियम के सदस्यों से पूरी चर्चा के बाद और बाद में अगर जरूरत हो तो अन्य जजों के साथ भी बात करके सुधारात्मक कदम उठाना चाहिए।

27 अक्टूबर, 2017 को आरपी लूथरा बनाम भारत सरकार मामले में दिए आदेश के मुद्दे को जब आपके द्वारा उचित तरीके से सुलझा लिया जाएगा तो जरूरत हुई तो हम आपको अन्य ऐसे न्यायिक आदेशों के बारे में भी विशेष रूप से बताएंगे जिनपर भी इसी तरह विचार किए जाने की जरूरत है।
सादर
जस्टिस जे चेलमेश्वर
जस्टिस राजन गोगोई
जस्टिस मदन बी लोकुर
जस्टिस कुरियन जोसेफ

Supreme Court letter
Supreme Court letter
Supreme Court letter
Supreme Court letter
Supreme Court letter
Supreme Court letter
Supreme Court letter

Home / Miscellenous India / हिंदी में हू-ब-हू पढ़िए वह पत्र…4 जजों ने चीफ जस्टिस को क्या लिखा

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो