सुनवाई के दौरान न्यायालय ने संकेत दिए कि संविधान से जुड़े इन मामलों को पांच-सदस्यीय संविधान पीठ को सौंपा जा सकता है। इससे पहले केंद्र सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल पीएस नरिसम्हा ने भी कोर्ट से आग्रह किया कि सभी संबंधित याचिकाओं की सुनवाई एक साथ की जाए, तो बेहतर है। न्यायालय ने मामलों की सुनवाई छह सप्ताह तक के लिए स्थगित कर दी।
अनुच्छेद 370 जहां जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देता है, वहीं अनुच्छेद 35(ए) राज्य के स्थायी निवासियों और उनके विशेषाधिकारों को परिभाषित करता है। याचिकाकर्ताओं की दलील है कि अनुच्छेद 370 और 35(ए) संविधान में वर्णित समानता के मौलिक अधिकार का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन है, क्योंकि इन अनुच्छेदों के कारण जम्मू-कश्मीर के बाहर का व्यक्ति न तो वहां प्रॉपर्टी खरीद सकता है, न उसे वहां सरकारी नौकरी मिल सकती है और न ही वह स्थानीय निकाय चुनावों में हिस्सा ले सकता है।
दिल्ली की एक गैर सरकारी संस्था ने सर्वोच्च अदालत में इस अनुच्छेद को चुनौती दी है। इस मामले में केंद्र सरकार ने पिछले महीने कहा था कि इस अनुच्छेद को असंवैधानिक करार देने से पहले इस पर वृहद चर्चा की जरूरत है। याचिकाकर्ता संगठन का कहना है कि 1954 में राष्ट्रपति ने इस अनुच्छेद को शामिल करने के लिए संविधान में संशोधन नहीं किया था, बल्कि यह सिर्फ एक अस्थायी बंदोबस्त था।