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एक दौर में धूमकेतु की तरह सियासी क्षितिज पर उभरे 3 महारथी, सभी ने बनाई अपनी अलग पहचान

पिछले 3 दशक से ज्यादा समय से सियासी पटल पर छाए हैं तीनों महारथी
वर्तमान में तीनों का स्वास्थ्य सही नहीं हैं और अस्पताल में भर्ती हैं
अलग-अलग विधाओं से राजनीति में कदम रखा और शीर्ष पर छा गए

नई दिल्लीMay 11, 2020 / 01:47 pm

Dhirendra

teen maharathi
नई दिल्ली। देश की राजनीति पर अपनी अलग छाप छोड़ने वाले एक ही दौर के तीन महारथियों का स्वास्थ्य इन दिनों सही नहीं है। देश के पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह का एम्स दिल्ली, यूपी के तीन बार सीएम और देश के रक्षा मंत्री रहे सपा नेता मुलायम सिंह यादव गुड़गांव मेंदांता में तो छत्तीसगढ़ के पहले सीएम अजीत जोगी रायपुर के श्री नारायणा अस्पताल में भर्ती हैं। तीनों का इलाज चल रहा है।
एक ही दौर में अलग-अलग विचारों का पक्षपोषक होने के बावजूद तीनों ने भारतीय राजनीति में अपनी अलग पहचान बनाई। डॉ. मनमोहन सिंह अर्थशास्त्री नौकरशाह से राजनेता बने तो मुलायम सिंह यादव उर्फ नेताजी पहलवानी और शिक्षण का पेशा छोड़कर राजनीति में आए। वहीं अजीत जोगी वर्षों तक मध्य प्रदेश में डीएम की नौकरी करने के बाद राजनीति में कदम रखा। तीनों राष्ट्रीय राजनीति में 1990 के दशक में सक्रिय रूप से उभरकर सामने आए। आज भी तीनों चर्चा में बने हुए हैं।
आइए, हम आपको बताते हैं कि तीनों की भारतीय राजनीति में अहमियत किस बात को लेकर है।

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उदारवादी अर्थव्यवस्था के जनक

डॉ. मनमोहन सिंह भारत के दो बार प्रधानमंत्री रहे। वह कांग्रेस की विचारधारा से जुड़े हैं और एक महान विचारक, विद्वान और बुद्धिमान अर्थशास्त्री हैं। दुनिया के गिने-चुने अर्थशास्त्रियों में उनका नाम शुमार है। वह भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर भी रह चुके हैं। 1991 में पूर्व पीएम नरसिम्हा राव ने देश को दिवालिया होने से बचाने के लिए वित्त मंत्री की जिम्मेदारी सौंपी। वह इस पर खरे उतरे।
उन्होंने पूर्व पीएम नरसिम्हा राव को भरोसे में लेकर निजीकरण, उदारीकरण और वैश्वीकरण की दिशा में भारतीय अर्थव्यस्था को आगे बढ़ाया। सबसे पहले उन्होंने लाइसेंस राज को रद् कर दिया। उनके इस कदम से निजी उद्योगों को बहुत लाभ हुआ जिसके फलस्वरूप सरकारी उद्योगों में विनिवेश और निजीकरण की प्रक्रिया प्रारंभ हुई।
उसके बाद 2004 से लेकर 2014 तक वो देश के दो बार प्रधानमंत्री बने। इस दौरान उन्होंने भारत की आर्थिक मुद्रा स्फीति में एक आमूल परिवर्तन आया। इस काबिल नेता ने अपनी नम्रता, नैतिकता और नीतिमत्ता के लिए काफी सराहना प्राप्त की है। मनमोहन सिंह की क्षमता और नेतृत्व कुशलता को भारतीयों ने स्वीकार किया। मनमोहन सिंह को आधुनिक भारत के उदारवादी आर्थिक व्यवस्था का जनक भी माना जाता है।
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समावेशी राजनीति के पुरोधा

समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव भारतीय राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं। खासकर गठबंधन राजनीति का उन्हें सिरमौर नेता माने जाते हैं। वे 1989 से 1991, 1993 से 1995 और 2003 से 2007 तक तीन अल्प कार्यकालों के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं। 2014 में आजमगढ़ निर्वाचन क्षेत्र के सांसद चुने गए। उन्होंने 1996-1998 में भारत के रक्षा मंत्री के रूप में कार्य किया।
मुलायम सिंह यादव अपने दम पर 1974 से 2007 के बीच सात कार्यकालों के लिए उत्तर प्रदेश के विधायक चुने गए। मुलायम सिंह ने विभिन्न राजनीतिक दलों के साथ गठबंधन किया।

मुलायम सिंह यादव उर्फ नेता जी को समाजवादी चिंतक राम मनोहर लोहिया और भारत में समग्र क्रांति के पुरोधा राज नारायण का उत्तराधिकारी माना जाता है।
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सपनों का सौदागर

छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी (Ajit Jogi) राजनीति के धुरंधरों में गिने जाते रहे हैं। अजीत जोगी को सपनों का सौदागर भी कहा जाता रहा है। 2000 में जब अजीत जोगी ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली तो उन्होंने कहा था कि मैं सपनों का सौदागर हूं। मैं सपने बेचता हूं। लेकिन 2003 में हुए विधानसभा चुनावों में अजीत जोगी को हार का सामना करना पड़ा। 2008 और 2013 में भी वो ‘सपने’ नहीं बेच पाए।
अजीत जोगी 1986 से 1998 के बीच दो बार राज्यसभा के सांसद चुने गए। पूर्व पीएम नरसिम्हा राव ने उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में लाने का काम किया। बादे में 1998 में वे रायगढ़ से सांसद चुने गए। 1998 से 2000 के बीच वे कांग्रेस के प्रवक्ता भी रहे। 2004 से 2008 के बीच वे 14वीं लोकसभा के सांसद रहे।
2008 में वे मरवाही विधानसभा सीट से चुन कर विधानसभा पहुंचे और 2009 के लोकसभा चुनावों में चुने जाने के बाद जोगी ने लोकसभा सदस्य छत्तीसगढ़ के महासामुंद निर्वाचन क्षेत्र के रूप में काम किया। हालांकि जोगी 2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी के चंदू लाल साहू से 133 मतों से हार गए। उसके बाद अजीत जोगी ने कांग्रेस को अलविदा कह दिया और साल 2016 में जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ जोगी (JCCJ) के नाम से अपनी नई पार्टी बनाई। लेकिन प्रदेश के लोगों ने उन्हें विगत विधानसभा चुनाव में भी सपनों का सौदागर नहीं बनाया।

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