दरअसल, जब देश आजाद हुआ तो उसे व्यवस्थित रूप देने, उसका संचालन करने और और एक बेहतर भारत के निर्माण के लिए 6 दिसंबर, 1946 को भारत का संविधान तैयार करने के लिए संविधान सभा का गठन हुआ था। संविधान सभा के सामने नए राष्ट्र की आधिकारिक भाषा का मुद्दा भी अहम था।
सियासी घमासामन के बीच Uddhav Thackeray बोले- महाराष्ट्र को बदनाम करने की रची जा रही है साजिश हिंदी को आधिकारिक भाषा का दर्जा 14 सितंबर को मिला हिंदी आधिकारिक भाष अहम इसलिए कि भारत में सैकड़ों भाषाएं और हजारों बोलियां अस्तित्व में पहले से थी और आज भी है। इन मुद्दों पर बहस के बाद हिंदी और अंग्रेजी को आजाद भारत के लिए आधिकारिक तौर पर भाषा चुना गया। 14 सितंबर, 1949 को संविधान सभा ने देवनागरी लिपि में लिखी हिंदी को अंग्रेजी के साथ राष्ट्र की आधिकारिक भाषा के तौर पर स्वीकार किया।
नेहरू ने लिया हिंदी दिवस मनाने का फैसला संविधान सभा द्वारा हिंदी को आधिकारिक भाषा स्वीकार करने के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 14 सितंबर के दिन के ऐतिहासिक अहमियत को देखते हुए हर साल ‘हिन्दी दिवस’ के रूप में मनाने का फैसला किया। उसके बाद पहला आधिकारिक हिंदी दिवस 14 सितंबर 1953 को मनाया गया। उसके बाद हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है। साथ ही इसी महीने में हिंदी सप्ताह, पखवाड़ा व माह भी मनाया जाता है।
अक्षय की चुप्पी पर Sanjay Raut ने उठाए सवाल, पूछा – मुंबई का अपमान होने पर सभी गर्दन झुकाकर क्यों बैठ जाते हैं? 68 साल बाद भी हिंदी का संघर्ष जारी है लेकिन अहम यह है कि हिंदी का आधिकारिक भाषा का दर्जा मिले 68 साल हो गया लेकिन सरकारी कामकाज में इसे जो स्थान मिलना चाहिए था वो अभी तक नहीं मिला। आज भारत में शिक्षा, विज्ञान, तकनीक और रोजगार की भाषा अंग्रेजी है।
अंग्रेजी का वर्चस्व पहले से ज्यादा संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा भी हिंदी इंग्लिश के असर को समाप्त नहीं कर पाई। यूपीएससी की हर साल परीक्षा में चयनित विद्यार्थियों में अधिकांंश का परीक्षा का माध्यम अंग्रेजी होता है। कुछ गिने-चुने ही छात्र होते हैं जो अपनी मातृभाषा और हिंदी भाषा के जरिए इस पद तक पहुंंच पाते हैं।
मसूरी स्थित लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासनिक अकादमी की वेबसाइट के मुताबिक, 2013 से 2019 तक आते-आते हिंदी माध्यम में चयनित होने वाले उम्मीदवारों की औसत संख्या में लगातार गिरावट आई है। हिंदी के समक्ष चुनौतियां
ग्लोबल विलेज दौर में हम हिंदी पर गर्व तो करते हैं लेकिन उसे आत्मविश्वास के साथ परीक्षा का माध्यम बनाने से डरते भी हैं। उनके भीतर का यह डर अंग्रेजी के बढ़ते प्रभाव के कारण है। यही कारण है कि आज भी हिंदी को उसका उचित स्थान दिलाने को लेकर समय-समय पर आवाज उठते रहते हैं।