एक बयान के कारण भाजपा से साइड लाइन हो गए लौह पुरुष, इस मौके पर मोदी पलट कर भी नहीं देखा
नई दिल्ली। भाजपा के वरिष्ठ नेता और लौहपुरुष लालकृष्ण आडवाणी का आज जन्मदिन है। वे 91 साल के हो गए। कई वरिष्ठ नेताओं और दिग्गजों ने उन्हें जन्मदिन की शुभकामनाएं दीं। उनका जन्म पाकिस्तान के कराची में 8 नवंबर, 1927 को एक हिंदू सिंधी परिवार में हुआ था। पहले आरएसएस, फिर जनसंघ और बाद में भारतीय जनता पार्टी में इस लौहपुरुष की तूती बोलती थी। देश के कद्दावर नेताओं और वाचकों में आडवाणी की गिनती होती थी। लेकिन, आज परिस्थित बदल चुकी है और आडवाणी करीब-करीब हर जगह से साइड लाइन हो चुके हैं। वर्तमान में वो भाजपा के मार्गदर्शक मंडल में हैं, जिनमें कुल पांच सदस्य शामिल हैं। आडवाणी के अलावा एक और दिग्गज नेता मुरली मनोहर जोशी भी इस मंडल के सदस्य हैं।
आडवाणी का यह बयान, जो शायद भाजपा के वर्तमान नेताओं को चुभी… साल 2014 में लोकसभा चुनाव हुए। नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार को घोषित कर दिया गया। साल 2014 में नई सराकर का गठन हुआ और नरेन्द्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने। भाजपा को पूर्ण बहुमत मिली, इसलिए पूरी भाजपा गदगद थी। लेकिन एक शख्स जो इस खुशी और परिवार से धीरे-धीरे लुप्त होता जा रहा था, वे थे लालकृष्ण आडवाणी। जीत के तुरंत बाद उन्हें संसदीय बोर्ड से हटाकर मार्गदर्शक मंडल का सदस्य बना दिया गया। करीब एक साल बीते और सरकार के कामकाज पर सवाल उठने लगे। इसी बीच आडवाणी ने एक बयान दिया, जिसके कारण हड़कंप मचा। आडवाणी ने जून, 2015 में कहा था कि देश में राजनीतिक नेतृत्व परिपक्व है, लेकिन इसमें कुछ कमियों के कारण वे आश्वस्त नहीं है कि देश में आपातकाल दोबारा नहीं लग सकता। उन्होंने कहा था कि वह देख रहे हैं कि इस पीढ़ी के लोगों में लोकतंत्र और नागरिक स्वतंत्रता के प्रति प्रतिबद्धता कम हो रही है। लौहपुरुष ने कहा था कि मैं आश्वस्त नहीं हूं कि आपातकाल दोबारा नहीं लग सकता। मुझे नहीं लगता कि कोई मुझे यह आश्वासन दे सकता है कि नागरिक अधिकारों को दोबारा से निलंबित या नष्ट नहीं किया जाएगा। बिल्कुल नहीं। आडवाणी के इस बयान से हलचल मच गई थी और सरकार सवालों के घेरे में आ गई। इस बयान के बाद आडवाणी पार्टी से साइड लाइन होते चले गए और केवल नाम के मार्गदर्शक मंडल के सदस्य रह गए हैं।
पीएम मोदी ने पलट तक कर नहीं देखा अाडवाणी का यह बयान पार्टी के नेताओं और दिग्गजों को ऐसे चुभा कि लोग उनसे किनारा करने लगे। मार्च, 2018 में त्रिपुरा में बिप्लव देव का शपथ ग्रहण समारोह था। पार्टी के सभी दिग्गज नेता वहां पहुंचे थे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और आडवाणी भी थे। आडवाणी हाथ जोड़कर मोदी का अभिनंदन करते रहे, लेकिन मोदी ने उन्हें पलट कर नहीं देखा और सीधे आगे निकल गए। हालांकि, यह कोई पहला मौका नहीं था। इससे पहले भी आडवाणी के साथ ऐसा हो चुका है।
राष्ट्रपति के उम्मीदवार से हुए साइड लाइन नई सरकार के गठन के बाद चर्चा यह थी कि आडवाणी को भाजपा की ओर से राष्ट्रपति का उम्मीदवार घोषित किया जाएगा। उनका नाम लगभग तय भी हो चुका। लेकिन, चुनाव से पहले उन्हें साइड लाइन कर दिया गया और रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति का उम्मीदवार घोषित कर दिया गया। इसके अलावा भी कई ऐसे मौके आए जब अाडवाणी पार्टी से काफी अलग-थलग नजर आए। हाल ही में गुजरात में सरदार वल्लभ भाई पटेल की प्रतिमा का अनावरण हुआ, सभी दिग्गज नेता मौजूद रहे लेकिन आडवाणी वहां से भी गायब नजर आए।
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