कुंकुम लेपूं, किसे सुनाऊं
सारे देश पर उन कवियों का ऋण है, जिन्होंने देश भावना को आकार-प्रकार दिया। परिवार चलाने के लिए ब्रिटिश सरकार की नौकरी करते 4 साल में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर को 20 से ज्यादा तबादले झेलने पड़े, लेकिन लेखनी अन्याय, गरीबी, शोषण, गुलामी के खिलाफ गरजती रही। देशभक्ति की कविताएं ऐसी कि जगाकर दौड़ा दें। रसभरी कविताएं भी वे खूब लिखते थे, लेकिन देशप्रेम ही उनका ज्यादा सुना गया। उनसे किसी ने कहा कि आप रस-शृंगार की कविताएं लिखें तो उन्होंने कहा, देश ने हाथों में शंख थमा दिया है, तो वीणा कैसे बजाऊं।
कुंकुम लेपूं, किसे सुनाऊं
किसको कोमल गान
तड़प रहा है आंखों के आगे
भूखा हिन्दुस्तान।
ऐसे कवि से कोरा वादा
रामधारी सिंह दिनकर के सबसे प्रिय पोते अरविंद कुमार सिंह कहते हैं, ‘दादा दिनकर जी से प्रेरणा लेने वाले अटल बिहारी वाजपेयी, लता मंगेशकर और जयप्रकाश नारायण व अन्य विभूतियां भारत रत्न हो गईं, किन्तु दिनकर जी को अभी तक भारत रत्न नहीं दिया गया है।’
नई दिल्ली स्थित रामधारी सिंह दिनकर स्मृति न्यास के अध्यक्ष नीरज कुमार कहते हैं, ‘दिनकर जी को भारत रत्न के लिए हम दो बार प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिले, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मिले, चंद्रशेखर से भी मिले। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सामने ही भाजपा नेता सी.पी. ठाकुर ने दिनकर को भारत रत्न देने की मांग की। सरकार समर्थन में दिखती है, लेकिन भारत रत्न का इंतजार है।’
मनमोहन सिंह सरकार ने वर्ष 2009 में ‘दिनकर’ जन्मशती वर्ष मनाया, तब केन्द्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने भारत रत्न की मांग रखी थी। आज भी प्रधानमंत्री कार्यालय दिनकर न्यास से ‘दिनकर’ की लिखी अच्छी-अच्छी पंक्तियां भाषण के लिए मंगाता रहता है। अनेक अवसरों पर अन्य नेता भी उनकी पंक्तियों को दोहराते हैं, प्रेरणा लेते हैं।
कवि की जाति ना पूछो
राज्यसभा में तीन बार मनोनीत रहे कवि मैथिलीशरण गुप्त के नाती वैभव गुप्त अफसोस जताते हैं, ‘कवि की जाति की चर्चा आखिर क्यों होती है? जो कवि पूरे देश का है, उसे किसी एक प्रांत-जाति का कैसे बताया जा सकता है?’
राजनीति में जाति देखने की गलत परंपरा पड़ गई है। महात्मा गांधी, पंडित नेहरू, राजेन्द्र प्रसाद से लेकर भगवान परशुराम तक की जाति का प्रचार होता है। महापुरुषों के योगदान को जातियों में घटा दिया जाता है। अरविंद कुमार सिंह इस पर नाराजगी जताते हैं, तो नीरज कुमार जातिवाद के विरुद्ध दिनकर की अनेक पंक्तियां सुना देते हैं- जाति-जाति का शोर मचाते केवल कायर क्रूर।