जानकारी के मुताबिक, ईओडब्ल्यू ने महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक (एमएससीबी) के कथित धोखाधड़ी मामले में इस महीने नई क्लोजर रिपोर्ट दायर की। जिसमें अजित दादा और 70 से अधिक अन्य को फिर से क्लीन चिट दे दी गई है।
मालूम हो कि अक्टूबर 2020 में जांच एजेंसी ने एक क्लोजर रिपोर्ट दायर की थी, तब राज्य में महाविकास अघाडी सत्ता में थी। लेकिन दो साल बाद उद्धव ठाकरे की सरकार गिरने के बाद अक्टूबर 2022 में ईओडब्ल्यू ने कहा कि वह अपनी जांच जारी रखना चाहती है।
20 जनवरी को ईओडब्ल्यू की ओर से अदालत को बताया गया कि सारे सबूतों और अन्य पहलुओं की जांच में कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं मिला हिया और इसलिए एक क्लोजर रिपोर्ट दायर की गई।
हालांकि अब अदालत इस पर फैसला करेगी कि क्लोजर रिपोर्ट को स्वीकार किया जाए या एजेंसी को जांच जारी रखने और आरोप पत्र दायर करने का निर्देश दिया जाए। 2020 में दायर पहली क्लोजर रिपोर्ट में ईओडब्ल्यू ने कहा था कि उसे मामले में कोई अनियमितता नहीं मिली और मामला सिविल से जुड़ा लगता है।
कथित तौर पर पवार के रिश्तेदारों से जुड़ी जरंदेश्वर सहकारी साखर कारखाना सहित चीनी सहकारी समितियों की बिक्री में कथित अनियमितताओं का आरोप है। इसकी जांच के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट के निर्देशों के बाद केस दर्ज किया गया था।
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने ईओडब्ल्यू के मामले के आधार पर मनी लॉन्ड्रिंग का मामला दर्ज किया है। हालांकि अब जब ईओडब्ल्यू ने मामले में क्लोजर रिपोर्ट सौंप दी है तो ईडी भी अपनी जांच जारी नहीं रख सकती है। हाल ही में इसी मामले में ईडी ने अजित पवार को तलब भी किया था।
क्या है शिखर बैंक घोटाला?
इस कथित घोटाले से बैंक को कुल 2 हजार 61 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। आरोप है कि शिखर बैंक ने 15 साल पहले राज्य की 23 सहकारी चीनी मिलों को लोन दिया था। हालाँकि, ये फैक्ट्रियाँ घाटे के कारण डूब गईं। इसी बीच इन फैक्ट्रियों को कुछ नेताओं ने खरीद लिया। इसके बाद फिर शिखर बैंक की ओर से इन फैक्ट्रियों को लोन दिया गया। तब अजित पवार इस बैंक के निदेशक बोर्ड में थे। इस मामले में अजित दादा के साथ-साथ अमर सिंह पंडित, माणिकराव कोकाटे, शेखर निकम जैसे नेता भी आरोपी है।