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गौशाला बनाने भूमि को मुक्त कराने की चुनौती

अवैध कब्जा के चलते अब गांवों में नहीं दिख रही गोचर भूमि

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Challenge of filling the Gausha land

गौशाला बनाने भूमि को मुक्त कराने की चुनौती

मुंगेली. प्रदेश की सत्ता पाने के लिए कांग्रेस ने किसानों की फसल बचाने मवेशियों के लिए गौशालाएं बनाने का वादा किया था। वहीं इस घोषणा पर अमल करने के लिए सबसे बड़ी बाधा भूमि की होगी। कारण, ग्रामीण क्षेत्रों में गोषाला के लिए शासकीय भूमि बची ही नहीं है। अधिकतर भूमि पर वहां के नागरिको ने कब्जा जमा लिया है। निजी उपयोग के कारण शासन की आरक्षित गोचर भूमि नक्शे से गायब हो चुकी है।
गौरतलब है कि शासन की खाली पड़ी राजस्व भूमि पर खेती एवं अतिक्रमण कर मकान बनने की वजह से मृतक के शव को जलाने तक के लिए गावों में शासकीय भूमि नहीं बची है। इन हालातों में गो शाला खोलने के लिए शासकीय भूमि को अवैध कब्जे से मुक्त कराना किसी चुनौती से कम नहीं है। राजस्व नियमों के अनुसार हर ग्राम पंचायत मुंगेली जिले के सभी ब्लॉक में शासकीय तथा दान में प्राप्त भूमि अलग से है। मगर गांवों में पड़ी राजस्व भूमि का अनेकों प्रकार के उपयोग होने की वजह से अब जमीन का एक टुकडा भी खाली नहीं मिलता है। इसके कारण गांवों में ग्राम पंचायत कार्यालय तक बनाने के लिए भूमि की कमी एक समस्या है। गोचर भूमि पर भी अवैध कब्जा करके कृषि कार्य करने या आवास बना लेने के कारण मवेशियों के लिए भी बड़ी समस्या हो रही है। आवारा मवेशियों की सर्वव्यापी समस्या किसानों की खेती को नुकसान पहुंचा रही है।
बताते चलें कि गोचर की राजस्व भूमि हर पंचायत में छोड़ी गयी है, जो अधिकांश जगहों पर पूरी तरह से अतिक्रमित हो चुकी है। शायद ही किसी पंचायत में थोडी-बहुत गोचर भूमि खाली बची हो। किसी पर खेती हो रही है तो कहीं पर मकान बना लिए गये हैं। राजस्व विभाग के नक्शे में कुछ और दर्ज है और स्थान पर कुछ और है। ऐसे में जमीन का सीमांकन करना और बेजा कब्जा हटाकर गौषाला बना पाना बहुत ही कष्टसाध्य काम होगा। हालॉकि अनेक गांव वालों ने चर्चा में गौशाला खोलने के इस घोषणा का स्वगत किया है। लेकिन इसके अमल में लाने के लिए जिले के राजस्व रिकार्ड में दर्ज हजारों हेक्टर भूमि का जब तक सीमांकन करके भूमि को खाली नहीं करवाया जाता तब तक गौशला के लिए भूमि उपलब्ध करवाना सबसे बड़ी चुनौती होगी। फिलहाल जिस तरह से लोगों ने गोचर भूमि को निजी उपयोग में शामिल कर लिया है। उसी तरह से आवारा मवेशियों ने भी गांवों में किसानों की खेती में उत्पात मचाना शुुरू कर दिया है। यदि गांव की स्थिति पर गौर करें तो किसान अपनी फसल बचाने के लिए खेतों पर रतजगा करने को मजबूर होता है। खेत से ओझल होते ही जानवरों की टोली खेत में घुसकर फसल को तबाह करने में देर नहीं करती। यह स्थिति इसलिए बन रही है कि गांवों में गोचर भूमि का अभाव हो गया है, जिसकी वजह से जानवर रात में मौका पाकर खेतों में घुसकर फसल को बरबाद कर जाते हैं। अगर गौशाला बनाने के वायदे को पूरा करती है तो गौशाला बनने के साथ ही पर्याप्त गोचर भूमि उपलब्ध होगी, जिससे हर पंचायत में आवारा जानवरों की समस्या में कमी आएगी और अंतत: किसानों को ही इसका फायदा मिलेगा।