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तीन साल में ट्रेन दौडऩे का दिखाया सपना, पर अधिग्रहण व मुआवजा में अटका

आखिर कब शुरू होगी रेल सुविधा

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Dream of running a train in three years, but stuck in acquisition and

तीन साल में ट्रेन दौडऩे का दिखाया सपना, पर अधिग्रहण व मुआवजा में अटका

मुंगेली. डोंगरगढ़-कवर्धा-मुंगेली-बिलासपुर मार्ग रेल आगामी 3 साल में दौडऩे लगेगी। उम्मीद से लबरेज यह सपना फरवरी 2016 में तत्कालीन रेलवे जीएम सत्येंद्र कुमार ने मुंगेली वालों को दिखाया था। लोगों ने बड़ा उत्साह दिखाया था। मगर तब किसे अनुमान था कि 3 साल की अवधि में रेल लाइन का काम शुरुआती दौर में ही बुरी तरह अटक जाएगा। अभी तो भू अध्रिग्रहण और उसके मुआवजे के स्तर पर ही रेलवाही अटकी पड़ी है।
गौरतलब है कि इस प्रस्तावित रेलमार्ग से पंडरिया को दरकिनार कर देने के कारण पंडरिया क्षेत्र में भारी नाराजगी है। कारण, पूर्व में हुए सभी सर्वेक्षणों मे पंडरिया शामिल रहा था। इसलिए अचानक हुए इस बदलाव का पंडरिया वालों ने जमकर विरोध किया और वहां सभी वर्ग के नागरिकों ने रेलवे संघर्ष समिति बनाकर आंदोलन किया। नागरिकों की इस वाजिब मांग के साथ सभी दलों के जनप्रतिनिधि जुड़े। कांग्रेस नेता और अब कैबिनेट मंत्री मोहम्मद अकबर इस आंदोलन में सक्रियता से जुडे रहे। अब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है और मोहम्मद अकबर पावरफुल कैबिनेट मंत्री हैं। चूंकि इस प्रोजेक्ट में प्रदेश सरकार भी हिस्स्ेदार हैं, इसलिए इस बात की पूरी संभावना है कि प्रदेश शासन नई केद्र सरकार पर पंडरिया को इसमें जोडऩे का प्रस्ताव करे। अगर ऐसा हुआ तो इस प्रोजेक्ट के एक हिस्से का पुन: आंकलन करना होगा। 270 किलोमीटर लम्बी इस लाइन के लिए केंद्र सरकार ने 2500 करोड़ रुपए का बजट आवंटित कर दिया है।
इन सबका का असर ये होगा कि ये इस रेलवे लाइन में देरी-दर-देरी होते जाने की आशंका है। अच्छी बात यह है कि विवाद केवल पंडरिया को छोडऩे पर है। इसके अतिरिक्त कहीं कोई परेशानी अभी तो नहीं है।
अब बात करें तीन साल में काम के पूरा होने की। आज हर जगह हो रहे शासकीय निर्माण कार्य की पूर्णता की क्या स्थिति है इसे हम सभी देख रहे हैं। मुंगेली में आगर नदी पर बना नया पुल अपने निर्धारित अवधि के कई साल बाद पूरा हुआ। शायद ही कोई ऐसा काम हो जो निर्धारित समय में पूरा होता हो। हां यह माना जा सकता है कि यह काम रेलवे का है और उनका काम गति से होगा।
अब तो आशा नहीं है कि बिना पंडरिया को जोड़े यह काम शुरू होगा। मगर यदि रेलवे को प्रस्तावित काम करना पड़े तो 270 किमी इस मार्ग का भूमि अधिग्रहण करने के बाद प्रस्तावित मार्ग पर सैकड़ों की संख्या में नाले और अनेक नदियों पडेंग़ी। जिन पर पुलिया और पुल बनाना होगा। अब देखना यह है कि ये सब काम करेगा कौन, रेलवे इसके लिए अपने इंजीनियर, तो ले आएगी, तकनीकी विशेषज्ञ भी उसके पास हैं, मगर मजदूर कहां से लाएगी...। माना जाता है कि रेलवे को लोकल मजदूरों से ही काम चलाना पड़ेगा और सभी यह जानते हैं कि छत्तीगढ़ में श्रमिकों की उपलब्धता कैसी है। ऐसी स्थिति में नहीं लगता कि अभी सालो-साल मुंगेली में रेल आने का सपना पूरा हो सकेगा।
१९७० में भी हुआ था बिलासपुर से जबलपुर के लिए रेल लाइन का सर्वे
सन 1970 के आसपास बिलासपुर से जबलपुर के लिए रेल लाइन सर्वे का काम प्रारंभ हुआ था। सालों-साल चला यह सर्वे कई बार होकर अस्वीकृत हुआ। 100 साल से भी पहले बिलासपुर-जबलपुर रेल लाइन के नाम पर उसलापुर से पंडरिया तक जमीन अधिगृहीत होकर अर्थ वर्क शुरू हुआ था। पुराने लोग बताते हैं कि विगत शताब्दी के अंतिम समय में भयंकर अकाल पड़ा था जिसके कारण उस समय राहत कार्य के लिए रेलवाही पर अर्थ वर्क प्रारंभ किया गया था। आज भी कागजों में यह जमीन रेलवे की संपत्ति है। लोग इसे रेलवाही के नाम से जानते हैं। आज इस जमीन पर पूरी तरह लोगों का कब्जा हो चुका है। मुंगेली में स्टेशन के लिए जो जगह प्रस्तावित थी, उस पर लोक निर्माण विभाग की पूरी कॉलोनी बस चुकी है। यानी पंडरिया का नाम सर्वप्रथम हुए सर्वे में था। मगर न मालूम किन कारणों से पुराने हुए सभी सर्वे को रिजेक्ट कर जो नया सर्वे किया गया, उसमें बड़ा परिवर्तन यह था कि पंडरिया को इस प्रस्तावित रेलमार्ग से बाहर कर दिया गया और पंडरिया रोड पर ग्राम बांकी के पास स्टेशन बनने की चर्चा है।