
पूजा-अर्चना के लिए आज उमड़ेगी श्रद्धालुओं की भीड़
लोरमी. आपने राम भक्त हनुमान की कथा तो सुनी ही होगी और भगवान की भक्ति भी की होगी, पर क्या कभी किसी हनुमान की भक्ति करते किसी जीवित वृक्ष को देखा है, नही देखा न, तो ऐसे भक्त से मिलने के लिए आपको ले चलते हैं लोरमी के विचारपुर नामक गांव में।
लोरमी-मुंगेली मुख्य मार्ग पर पूर्व की ओर प्रवाहित नहर मार्ग में पूर्व दिशा की ओऱ ही लोरमी शहर से लगभग 7 किमी की दूरी पर विचारपुर नामक गांव बसा है। लोरमी की पवित्र जीवनदायिनी मनियारी नदी के तट पर बसे विचारपुर गांव के एक छोर पर स्थित श्मशान घाट के करीब दक्षिणमुखी हनुमान जी मंदिर है। यहां विराजित हनुमान जी वर्षों से अपने भक्तों के संकट हरकर दूर कर रहे हंै। इलाके के इतिहास के जानकार विचारपुर निवासी निहोरा कश्यप बताते हैं कि विशाल मंदिर का इतिहास तो महज कुछ ही वर्षों का है, पर यहां विराजित मूर्ति 18वीं सदी के पहले की है। इस तरह की मूर्ति शायद ही देश के किसी दूसरे हिस्से में देखने को मिले। अभी तक दक्षिणमुखी हनुमान मंदिरों मे मंदिर की संरचना के हिसाब से हनुमान जी के मुख दक्षिण की ओऱ देखे गये हंै, जबकि लोरमी के विचारपुर हनुमान मंदिर मे मुख्य प्रवेश द्वार पूर्व दिशा की ओऱ स्थित है और हनुमान जी का स्वयं का मुख दक्षिण दिशा की ओऱ है।
वहीं लोरमी के हनुमान भक्त पं. संतोष दुबे बताते हैं कि लगभग 200 वर्ष पूर्व 18 वीं सदी के आसपास जब यहां कल्चुरी वंश का शासन था, जिसकी राजधानी रतनपुर हुआ करती थी। उस समय कल्चुरी शासक रतन सिँह ने अपनी राजधानी रतनपुर मे माँ महामाया के मंदिर का निर्माण कराया। जबकि उनके भाई राजा विजय सिंह ने तखतपुर के समीप अपने नाम पर गांव बसाकर विजयपुर में एक बड़े किले औऱ माता के मंदिर का निर्माण कराया, जिसमे आज भी अतिदुर्लभ प्राचीनतम् प्रतिमा विराजमान है। कल्चुरी शासक देवी-देवताओं के अनन्य भक्त थे औऱ इन्हीं में से एक राजा विजय सिंह लोरमी में भगवान हनुमान की इस मूर्ति को स्थापित करना चाहते थे।
उन्होंने अपने सेवकों को इस मूर्ति को विजयपुर से लोरमी ले जाने का आदेश दिया।सेवक बैलगाड़ी में किसी तरह भारी-भरकम मूर्ति को रखकर लोरमी की ओऱ लेकर निकले। वे किसी तरह दिन भर के सफर को तय कर लोरमी के विचारपुर तक ही पहुंच पाये थे कि रात होने पर विचारपुर के इसी जगह में विश्राम करने को रुक गये औऱ अपने बैलगाड़ी में फंदे बैलो को ढीलकर खाना खाकर सो गये। सुबह जब उनकी नींद खुली तो उन्होंने देखा कि बैलगाड़ी पर जिस जगह हनुमान जी को रखा गया था, उस स्थान से बैलगाड़ी दो टुकड़ों में बंट गयी है और हनुमान जी की मूर्ति सकुशल हाल में सीधी जमीन पर विराजित है। सेवकों घटना की जानकारी विजयपुर पहुंचकर राजा विजय सिंह को दी। इसके बाद राजा ने नई बैलगाड़ी भेजकर मूर्ति को उठवाने की कई बार कोशिश की, लेकिन नाकाम रही। मूर्ति अपनी जगह से जरा सा भी नहीं खिसकी। इसके बाद उसे वहीं पर छोड़ दिया गया। कुछ दिन तक मूर्ति खुले मे ही वहीं पड़ी रही।
इसी बीच बरसात के मौसम में मनियारी नदी में तेज बाढ़ आयी और बाढ़ भी कुछ ऐसा कि पानी नदी से लगभग 40 फीट की ऊंचाई तक पहुंच चुका था और बाढ़ का पानी भगवान की मूर्ति को भीगोकर उन्हें मानो स्नान करा रहा हो। इसी दौरान एक दिन बगैर नाविक के कहीं से एक नाव बहती हुई आकर मूर्ति में फंस गयी। बाढ़ के पानी का जलस्तर कम होने के बाद भी नाव वहीं फंसी रही। बहेरा पेड़ की लकडिय़ों से निर्मित नाव कुछ समय तक मूर्ति के करीब फंसे होने के बाद अचानक ही उसी जगह पर किसी हिस्से से पौधे की शक्ल मे परिवर्तित होने लगी और देखते-देखते विशालकाय वृक्ष मे परिवर्तित होकर हनुमान जी की मूर्ति को छाया प्रदान करने लगी। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण आज भी वहां मौजूद पेड़ और उसमें नाव के आकार का एक बड़ा सुराख मौजूद है। कुछ ही समय में इतना बड़ा चमत्कार होता देख पहले गांव वालों, फिर आसपास के अन्य दूसरे गांवों के लोगों की आस्था इस मूर्ति के प्रति बढ़ती चली गई औऱ देखते ही देखते लोगो ने यहां यज्ञ व पूजा पाठ शुरु कर दिया। कुछ समय बाद समीपस्थ ग्राम सुकली के लोगो ने यहां दशहरे के पर्व पर रावण वध का आयोजन शुरु कर दिया। जो आज तक जारी है। इसी दौरान लोगो ने पाया कि जिस जगह पर नाव पेड़ मे तब्दील होकर बहेरा का विशालकाय पेड़ बन गया है, वो हर वर्ष मौसम में फूलता तो है, पर उसमें कभी फल नहीं लगते हंै। वहीं गांव वाले शुरुआत में इसे चमत्कार न मानकर मौसम का ही असर मानते रहे औऱ उस पेड़ पर साल दर साल नजर रखते रहे।
काफी वक्त बीतने के बाद लोगों ने ये पाया कि गांव में ही अन्य दूसरी जगह स्थित बहेरा के पेड़ पर फल तो लगते हैं, लेकिन मूर्ति के पास स्थित बहेरा के पेड़ में फल नहीं लगने की असल वजह भगवान का चमत्कार है औऱ पेड़ भी भगवान हनुमान की तरह ब्रम्हचर्य का पालन कर रहा है। इसी बीच गांव व के कुछ हनुमान भक्तो ने उसी जगह पेड़ के इर्द-गिर्द चौरे का निर्मांण करा दिया। इसी बीच लोरमी के हनुमान भक्त पं. गोरेलाल पाण्डेय, पं. संतोष दुबे, रामनिहोरा कश्यप ( विचारपुर गौटिया), मनोज राजपूत व निर्मल राजपूत आदि ने मिलकर सन् 2000 में मन्दिर बनाने का बीड़ा उठाया। इस कार्य में विचारपुर, सुकली व लोरमी शहर के हनुमान भक्त पवन अग्रवाल, मुरली अग्रवाल और इन्जीनियर स्व. चौरसिया ने विशेष सहयोग दिया। लोरमी के विचारपुर के इस दक्षिणमुखी हनुमान मंदिर में प्रतिवर्ष हनुमान जंयती के मौके पर भक्तों की भारी-भीड़ जमा होती है। यहां भागवत पुराण औऱ रामकथा का आयोजन भी किया जाता है।
Published on:
19 Apr 2019 10:54 am
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