
Second hand vehicles are also sold in Nagaur.
नागौर. शहर में सेकंड बाइक्स का बाजार अलग से तो नहीं, लेकिन इसकी मरम्मत करने वालों के यहां जरूर सजता है। वहां पर लेने या बेचने वाला आता है तो उनके वाहनों की फिटनेस की जांच कर कागजी दस्तावेजों की छानबीन होती है। इसके बाद ही खरीद-फरोख्त की प्रक्रिया पूरी हो पाती है। शहर में कुल मिलाकर चार दर्जन से अधिक बाइक्स मरम्मत की दुकानों में प्रति दुकानदार के यहां से पूरे साल में करीब ३०-४० से ज्यादा मोटरसाइकिलें बिक जाती हैं। इसमें लेटेस्ट मॉडल से लेकर १९९९ तक की गाडिय़ां शामिल रहती हैं। शहर में सेकण्ड हैंड यानी की पुरानी गाडिय़ों के बाजार में बाइक्स की बिक्री इसकी मरम्मत करने वाले दुकानदारों या व्यक्गित स्तर पर ही परस्पर खरीद किए जाने का चलन है। इसमें बाइक वर्ष १९९९ के मॉडल की है तो वह आठ से १२ हजार तक मिल जाती है। वर्ष २०१४ या १५ का हो तो २५-३५ हजार तक मिल सकती है। दुकानदारों का कहना है कि बहुत वाहनों की फिजिकल कंडीशन पर निर्भर रहता है। स्थिति बहुत अच्छी है, तभी ३५ हजार तक मिल सकते हैं, नहीं तो इससे कम में भी काम हो सकता है।
ग्राहक देखकर तय होता है सौदा
इस संबंध में शहर करीब आधा दर्जन दुकानों की खाक छानी गई। इसमें से ज्यादातर दुकानदारों का मानना है कि ग्राहक की जरूरतें भी अक्सर मूल्य निर्धारण का कार्य करती है, लेकिन मुख्य रूप से उसका मॉडल वर्ष पर दाम निर्धारित किया जाता है। मसलन वर्ष २०१७ की लेटेस्ट मॉडल के एक बाइक की कीमत अगर ६५ हजार है तो वह दुकानदार के यहां सेकण्ड हैंड के तौर पर ६० से ६१ हजार या इससे भी कम हो सकता है, मगर गाड़ी की स्थिति के आधार पर ज्यादा निर्भर रहता है। बिक्री तो होती है, लेकिन निश्चित नहींदुकानदारों का मानना है कि कई बार तो वह पूरे साल में ३०-४० गाडिय़ां बेच लेते हैं, और कई बार तो यह संख्या एक से १० तक ही सिमटकर रह जाती है। इसका कोई निर्धारण नहीं हो पाता है कि पूरे साल में कितनी गाडिय़ा बिक जाएंगी। हालांकि इस संबंध में दुकानदारों से बात होती है तो वह नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं कि गाडिय़ों की जरूरत तो सभी को रहती है, इसलिए जरूरत होने पर लोग दुकानदारों के यहां ही आते हैं। दुकानदार भी उन्हें सही सलाह देने का काम करता है। प्रत्येक गाड़ी पर उनका कमीशन भी रहता है। कमीशन का औसत भी निर्धारित नहीं रहता है।चोरी की तो नहीं, ऐसे होती है तस्दीकदुकानदारों का कहना है कि कोई अपनी बाइक बेचने आता है तो उससे पहले उसकी बाइक की आरसी व इंजन का चेसिस नंबर चेक करते हंै। अब आरसी में अंकित जानकारियां सही या गलत, इसकी भी तस्दीक वह मोबाइल्स एप या अपने परिचित अधिकारियों के मार्फत कर लेते हैं। ऐसे में वाहन संदिग्ध हुआ तो फिर वह उसकी बाइक लेते ही नहीं हैं। इसका ध्यान इसलिए भी रखना पड़ता है कि वाहन खरीदने वाले के साथ बाद में इस तरह की कोई स्थिति उत्पन्न होती है तो खरीदार इसके लिए सीधा दुकानदार को ही जिम्मेदार मानता है। इसलिए इन सब बातों का ध्यान रखना पड़ता है।
ग्राहकों को रखना चाहिए इसका ध्यान
पुरानी बाइक खरीदने के दौरान उसकी अपने जान-पहचान के मिस्ती से जांच जांच कराने के साथ ही परिवहन विभाग में भी उसकी जांच करानी चाहिए। ताकी खरीदने के बाद पछताना न पड़े
Published on:
18 Jun 2017 12:11 pm
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