आज से 15-20 वर्ष पहले तक जहां सरकारी हो या निजी, हर जगह, हर कक्षा में बालिकाओं की संख्या 10 से 20 प्रतिशत होती थी, लेकिन आज तस्वीर बदल चुकी है। आज हर कक्षा में बालिकाओं की संख्या बालकों से ज्यादा है। जिले की 3070 सरकारी स्कूलों में वर्तमान में 4 लाख, 15 हजार 589 विद्यार्थियों का नामांकन हैं, इसमें छात्रों की संख्या एक लाख 99 हजार 188 हैं, जबकि छात्राओं की संख्या 2 लाख 16 हजार 401 है। यानी छात्रों की तुलना में छात्राओं की संख्या 17,213 ज्यादा है।
सरकारी स्कूलों में बालिकाओं के नामांकन का सुखद पहलू यह है कि पहली से लेकर 12वीं तक हर कक्षा में बालिकाओं की संख्या बालकों से ज्यादा है। ये इस प्रकार है –
– कक्षा एक से 5 तक : छात्र – 87,631, छात्राएं – 94,805
– कक्षा 6 से 8 तक : छात्र – 49,681, छात्राएं – 56,030
– कक्षा 9 व 10 : छात्र – 31,030, छात्राएं – 33,657
– कक्षा 11 व 12 : छात्र – 28,869, छात्राएं – 29,125
– कुल छात्र – 1,99,188
– कुल छात्राएं – 2,16,401
मतदाता लिंगानुपात भी बढ़ा
नागौर जिले में गत 5 जनवरी को किए गए मतदाता सूचियों का अंतिम प्रकाशन में एक अच्छी तस्वीर देखने को यह मिली कि मतदाता लिंगानुपात बढ़ गया। मतदाता सूचियों के संक्षिप्त पुनरीक्षण कार्यक्रम के बाद जिले का मतदाता लिंगानुपात अब 923 से बढकऱ 929 हो गया है। अब जिले में कुल मतदाता 25 लाख 66 हजार 665 हो चुके हैं, जिनमें पुरूष मतदाता 13 लाख 3 हजार 418 तथा महिला मतदाता 12 लाख 36 हजार 247 हैं।
नागौर की बेटियां खेलों में भी अपना परचम लहरा रही हैं। कबड्डी एवं जिम्नास्टिक में नागौर की बालिकाएं हर जगह अपने आप को श्रेष्ठ साबित कर रही हैं। इंटरनेशनल खिलाड़ी मनीषा यादव के बाद आर्यना चौधरी, कल्पना सेन, पूजा सियाग, सोनू निवाद व आकांक्षा पिछले तीन-चार साल से जिले का नाम रोशन कर रही हैं। गत दिनों अजमेर में आयोजित अंतर महाविद्यालय प्रतियोगिता में नागौर मिर्धा कॉलेज की बालिका टीम ने भीलवाड़ा को 52-7 के बड़े अंतर से हराकर प्रथम स्थान प्राप्त किया है। इससे पहले गत वर्ष मार्च में जालोर के सांचौर में आयोजित हुई राज्य स्तरीय जूनियर कबड्डी प्रतियोगिता में नागौर की बालिकाओं ने स्वर्ण पदक प्राप्त किया था।
पूर्व में जहां अभिभावक बालिकाओं को स्कूल भेजने से कतराते थे, वहां आज सरकारी स्कूलों में बालिकाओं का नामांकन बालकों से ज्यादा है, यह सुखद तस्वीर है, जिसके परिणाम आने वाले दिनों में आएगा।
– बस्तीराम सांगवा, एडीपीसी, समसा, नागौर,
सरकारी सेवा से निवृत्त होने के बाद मैं गांव में रहकर बकरियां चरा रहा हूं। एक दिन शाम के समय बकरियां लेकर घर जा रहा था तो स्कूल से घर जा रही दो बच्चियों ने मुझसे पूछा कि ‘निधि बुआ जी’ कलक्टर है क्या? मैंने कहा – हां। उन्होंने फिर पूछा और विधि बुआ? मैंने कहा, वो एसपी है। फिर उन्होंने पूछा – सच्ची में है क्या? मैंने उन्हें कहा, हां, सच्ची में है। तब मुझे लगा कि अभी गांव की बच्चियों को यह भरोसा ही नहीं है कि वे पढ़-लिखकर कलक्टर और एसपी बन सकते हैं। हमें बालिकाओं को मौका देना होगा और उनके पीछे खड़ा रहना होगा। चाहे वो कोई गलती करे, फिर भी उनके साथ रहना होगा, तभी बेटियां, बेटों के बराबर खड़ी होंगी।
– सोमदत्त नेहरा, सेवानिवृत्त एईएन (सोमदत्त नेहरा की एक बेटी निधि कलक्टर है तथा दूसरी बेटी विधि एसपी है।)