उपचुनाव के दौरान मुद्दे गौण हैं, मतदाता मौन हैं। जोधपुर-नागौर हाईवे पर सोयला गांव के बाद से ही खींवसर का इलाका शुरू हो जाता है। कहीं भी चुनावी हलचल नजर नहीं आती। क्षेत्र के नागड़ी गांव में हथाई पर बैठे लोग चुनावी चर्चा से दूर ही नजर आए। गांव के युवा रामदेव जाट तो उलटे पूछने लगे कि आप बताओ हवा किसकी है? ज्यादा कुरेदने पर कहने लगे कि वोट तो इस बार आधे-आधे बंटेंगे। खींवसर के पदमसर चौराहे पर मिले बालाराम सारण ने कहा कि शुरुआत में जरूर मुकाबला एकतरफा दिख रहा था लेकिन अब नहीं। कैमिस्ट रामदयाल गौड़ बोले, यहां आज तक लोगों ने पार्टी की बजाय प्रत्याशी देखकर ही वोट दिया है। बुजुर्ग हुकमाराम जाट की राय में इस बार फैसला जरा मुश्किल होगा। पांचोड़ी गांव के बस स्टैंड पर नरपतसिंह कहने लगे कि दोनों प्रत्याशियों को लेकर बुजुर्गों और युवाओं की राय जुदा है।
यहां अब तक हुए तीन विधानसभा चुनावों में कांग्रेस तो अपना अस्तित्व बचाने की लड़ाई ही लड़ती रही। साल 2008 व 2013 के चुनाव में बसपा के दुर्गसिंह ने मुकाबला त्रिकोणात्मक बना दिया। 2018 के विधानसभा चुनाव में रालोपा, कांग्रेस व भाजपा में त्रिकोणात्मक मुकाबला हुआ। इस बार रालोपा-कांग्रेस में सीधी टक्कर है।
स्थानीय भाषा में थळी-साळग नाम से पूरा क्षेत्र दो हिस्सों में बंटता है। राजनीतिक रूप से भी दोनों इलाकों की प्रतिस्पर्धा हार-जीत का अंतर तय करती रही है। खींवसर के बायीं ओर थळी, दायीं ओर का इलाका साळग है। मुद्दों से ज्यादा लोग थळी-साळग पर ज्यादा बात करते नजर आते हैं।
कांग्रेस : हरेन्द्र मिर्धा
ताकत
-राज्य में कांग्रेस की सरकार
-एकजुट मिर्धा परिवार
-राजनीति का लम्बा अनुभव कमजोरी
-जनता से जुड़ाव का अभाव
-पिछले 15 साल में जीत नहीं
-क्षेत्र में निष्क्रियता
ताकत
– बड़े भाई हनुमान विधायक
– भाजपा का वोट बैंक
– क्षेत्र के लोगों से सीधा जुड़ाव कमजोरी
-भाजपा से भीतरघात संभव
-अनुभव की कमी
-परिवारवाद को बढ़ावे का आरोप