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Video : देश के साथ विदेशों में भी फैल रही नागौरी मैथी की महक

जिले में करीब 7 हजार हैक्टेयर में हुई बुआई, भावों में गिरावट आने से किसान थोड़ा मायूस

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The fragrance of Nagauri fenugreek is spreading in the country

The fragrance of Nagauri fenugreek is spreading in the country

चाहे घर की रसोई में बना खाना हो या 7 स्टार होटल की स्पेशल रेसिपी या फिर किसी इंटरनेशनल फूड चेन का फूड, नागौरी पान मैथी (कसूरी मैथी) के बिना जायका अधूरा लगता है। पान मैथी की खुशबू ही ऐसी है, जो हर सब्जी और खाने का जायका बदल देती है। यही वजह है कि नागौर में उगाई जाने वाली पान मैथी की हरी सूखी पत्तियां आज देश ही नहीं विदेशों में भी अपनी महक बिखेर रही है।
नागौर कृषि विभाग के अनुसार जिले में इस बार करीब 7 हजार हैक्टेयर में मैथी की बुआई हुई है, जिसमें कुचामन सिटी डिविजन में 1709 हैक्टेयर में तथा मेड़ता सिटी डिविजन में 5200 हैक्टेयर में मैथी की बुआई हुई है। कुचामन सिटी क्षेत्र में देसी मैथी की बुआई होती है, जबकि मेड़ता क्षेत्र में ज्यादातर पान मैथी की बुआई होती है, ऐसे में यदि देखा जाए तो इस वर्ष करीब 5 हजार हैक्टेयर में पान मैथी की बुआई की गई है, जो पिछले साल की तुलना में अधिक है। मैथी की बुआई के समय व्यापारियों ने मैथी के भाव काफी ऊंचे रखे, जिसको देखते हुए किसानों ने बड़े स्तर पर बुआई कर दी, लेकिन अब भावों में गिरावट आ गई है, ऐसे में किसान थोड़ा मायूस भी हैं।

ताऊसर से शुरू हुई थी मैथी की खेती
बुजुर्ग किसानों का कहना है कि करीब 50 वर्ष पहले 1970 के आसपास नागौर के निकवटर्ती ताऊसर गांव से नागौरी पान मैथी की खेती शुरू की गई। धीरे-धीरे मैथी का उपयोग मसालों में होने लगा तो एमडीएच मसाले के मालिक नागौर आए और किसानों को मैथी की खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया। साथ ही मैथी को अच्छे भाव पर खरीदना भी शुरू किया। इसके बाद धीरे-धीरे मैथी की खेती कुचेरा, खुडख़ुड़ा, खजवाना, जनाणा, रूण, इन्दोकली, ढाढरिया कलां, देशवाल सहित अन्य गांवों में होने लगी। मैथी का कारोबार ज्यों-ज्यों बढ़ा, मैथी की बुआई का रकबा भी बढऩे लगा और खींवसर क्षेत्र के थळी बेल्ट में भी इसकी बुआई होने लगी। वर्तमान में करीब पांच हजार हैक्टेयर में इसकी बुआई हुई है।

5 हजार मतलब 50 हजार हैक्टेयर
अन्य फसलों की खेती और मैथी की खेती में काफी अंतर है। अन्य सभी फसलों की एक बार बुआई करने के बाद एक बार ही कटाई होती है, जबकि पान मैथी एक ऐसी फसल है, जिसकी एक बार बुआई करने के बाद 8 से 10 बार कटाई होती है और वो भी एक सीजन में। यानी हर 10 से 12 दिन में मैथी की पत्तियों की कटाई होती है, जिन्हें किसान सूखाकर बाजार में बेचकर भाव अच्छे होने अच्छा मुनाफा कमा सकता है। नागौर में मैथी की बुआई का रकबा 5 हजार हैक्टेयर है, लेकिन उत्पादन के हिसाब से देखें तो अन्य फसलों के 50 हजार हैक्टेयर के बराबर फसल उत्पादन हो जाता है।

किसान को कम मिलते हैं भाव
एक शोध में सामने आया कि किसान वर्षों से नागौरी पान मैथी की खेती कर रहा है। जिसके बदले किसान को 60 से 150 रुपए प्रति किलो के हिसाब से भाव मिलते हैं। जबकि देश-दुनिया के मार्केट में यही नागौरी पान मैथी कंपनियों के लोग 1000 से 1700 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बेचकर भारी मुनाफा कमा रहे हैं। मैथी की मंडी नहीं होने से भी किसानों को नुकसान उठाना पड़ रहा है।

जीआई टैग की दरकार
नागौरी पान मैथी को जीआई टैग की दरकार है। जीआई टैग का मतलब ज्योग्राफिकल इंडिकेशन से है, जिसे भौगोलिक पहचान के नाम से जाना जाता है। इस पहचान में शामिल हैं- उत्पाद का उद्भव, उसकी गुणवत्ता, प्रतिष्ठा तथा अन्य विशेषताएं। जीआई टैग मिलने पर लोकप्रिय उत्पाद नागौरी पान मैथी का उपयोग इस भौगोलिक क्षेत्र के अलावा दूसरे लोग नहीं कर पाएंगे। इससे नागौरी पान मैथी की उपयोगिता व मांग दोनों में वृद्धि होगी।

कृषि कॉलेज कर रहा काम
नागौर कृषि कॉलेज के डीन ने डॉ. विकास पावडिय़ा की अध्यक्षता में मैथी को जीआई टैग दिलाने के लिए एक कमेटी का गठन किया है। कमेटी ने काम शुरू कर दिया है। अध्यक्ष पावडिय़ा ने बताया कि अब जल्द ही मैथी व नागौर की मिट्टी के सैम्पल लेकर उनकी जांच करवाई जाएगी। इसके बाद जीआई टैग के लिए आवेदन किया जाएगा।