ताऊसर से शुरू हुई थी मैथी की खेती
बुजुर्ग किसानों का कहना है कि करीब 50 वर्ष पहले 1970 के आसपास नागौर के निकवटर्ती ताऊसर गांव से नागौरी पान मैथी की खेती शुरू की गई। धीरे-धीरे मैथी का उपयोग मसालों में होने लगा तो एमडीएच मसाले के मालिक नागौर आए और किसानों को मैथी की खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया। साथ ही मैथी को अच्छे भाव पर खरीदना भी शुरू किया। इसके बाद धीरे-धीरे मैथी की खेती कुचेरा, खुडख़ुड़ा, खजवाना, जनाणा, रूण, इन्दोकली, ढाढरिया कलां, देशवाल सहित अन्य गांवों में होने लगी। मैथी का कारोबार ज्यों-ज्यों बढ़ा, मैथी की बुआई का रकबा भी बढऩे लगा और खींवसर क्षेत्र के थळी बेल्ट में भी इसकी बुआई होने लगी। वर्तमान में करीब पांच हजार हैक्टेयर में इसकी बुआई हुई है।
5 हजार मतलब 50 हजार हैक्टेयर
अन्य फसलों की खेती और मैथी की खेती में काफी अंतर है। अन्य सभी फसलों की एक बार बुआई करने के बाद एक बार ही कटाई होती है, जबकि पान मैथी एक ऐसी फसल है, जिसकी एक बार बुआई करने के बाद 8 से 10 बार कटाई होती है और वो भी एक सीजन में। यानी हर 10 से 12 दिन में मैथी की पत्तियों की कटाई होती है, जिन्हें किसान सूखाकर बाजार में बेचकर भाव अच्छे होने अच्छा मुनाफा कमा सकता है। नागौर में मैथी की बुआई का रकबा 5 हजार हैक्टेयर है, लेकिन उत्पादन के हिसाब से देखें तो अन्य फसलों के 50 हजार हैक्टेयर के बराबर फसल उत्पादन हो जाता है।
किसान को कम मिलते हैं भाव
एक शोध में सामने आया कि किसान वर्षों से नागौरी पान मैथी की खेती कर रहा है। जिसके बदले किसान को 60 से 150 रुपए प्रति किलो के हिसाब से भाव मिलते हैं। जबकि देश-दुनिया के मार्केट में यही नागौरी पान मैथी कंपनियों के लोग 1000 से 1700 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बेचकर भारी मुनाफा कमा रहे हैं। मैथी की मंडी नहीं होने से भी किसानों को नुकसान उठाना पड़ रहा है।
जीआई टैग की दरकार
नागौरी पान मैथी को जीआई टैग की दरकार है। जीआई टैग का मतलब ज्योग्राफिकल इंडिकेशन से है, जिसे भौगोलिक पहचान के नाम से जाना जाता है। इस पहचान में शामिल हैं- उत्पाद का उद्भव, उसकी गुणवत्ता, प्रतिष्ठा तथा अन्य विशेषताएं। जीआई टैग मिलने पर लोकप्रिय उत्पाद नागौरी पान मैथी का उपयोग इस भौगोलिक क्षेत्र के अलावा दूसरे लोग नहीं कर पाएंगे। इससे नागौरी पान मैथी की उपयोगिता व मांग दोनों में वृद्धि होगी।
कृषि कॉलेज कर रहा काम
नागौर कृषि कॉलेज के डीन ने डॉ. विकास पावडिय़ा की अध्यक्षता में मैथी को जीआई टैग दिलाने के लिए एक कमेटी का गठन किया है। कमेटी ने काम शुरू कर दिया है। अध्यक्ष पावडिय़ा ने बताया कि अब जल्द ही मैथी व नागौर की मिट्टी के सैम्पल लेकर उनकी जांच करवाई जाएगी। इसके बाद जीआई टैग के लिए आवेदन किया जाएगा।