सूत्र बताते हैं कि पहले भामाशाह, फिर आयुष्मान भारत महात्मा गांधी राजस्थान स्वास्थ्य बीमा योजना और अब मुख्यमंत्री चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना में अलग-अलग नियम और तय रेट/फीस को लेकर निजी अस्पताल इससे जुडऩे से कतरा रहे हैं। काफी अस्पताल इस संशय में हैं कि उन्हें पुराना बकाया मिलेगा या नहीं। बकाया को डेढ़ साल से भी अधिक हो गया है। किसी अस्पताल का तीस लाख तो किसी का दस लाख बाकी हैं। बताया जाता है कि जिले के करीब तीन दर्जन अस्पताल का करीब दो करोड़ बकाया चल रहा है। भामाशाह के बाद आयुष्मान योजना का काम भी न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी को दिया गया था। इस कंपनी और निजी अस्पतालों के बीच पहले भी भुगतान की देरी को लेकर विवाद हो चुका है। इसलिए भी निजी अस्पताल योजना से बच रहे हैं।
क्यों नहीं हो पाए अस्पताल चिन्हित
सूत्रों के अनुसार सरकारी योजना का सरकारी अस्पताल तो इलाज करेंगे ही पर निजी अस्पतालों को भी इसमें जोड़ा जाना है। एक मई से आमजन को मुख्यमंत्री चिरंजीवी योजना का लाभ मिलना है, बावजूद इसके अभी एक भी निजी अस्पताल को इससे नहीं जोड़ा गया। सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या निजी अस्पताल बकाया को लेकर खुद ही इससे बच रहे हैं। इसके अलावा जिन एक-दो अस्पतालों ने इससे जुडऩे का प्रस्ताव भेजा है, उसमें भी देर-दार क्यों हो रही है।
कर्मचारियों के लिए अधिकृत अस्पताल नहीं
सूत्रों के अनुसार जिले के करीब पचास हजार सरकारी कर्मचारियों के इलाज की व्यवस्था भी राम भरोसे है। सरकार से मान्यता प्राप्त एक भी निजी अस्पताल नहीं है जहां वे चिकित्सा सुविधा ले सकें। उन्हें अपने अथवा परिवार के ट्रीटमेंट के लिए कभी जोधपुर-अजमेर तो कभी जयपुर की दौड़ लगानी पड़ रही है। विभिन्न कर्मचारी संगठन भी समय-समय पर अधिकृत अस्पताल की मांग उठा चुके हैं। इसके बाद भी सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। वहीं राज्य कर्मचारियों के विपरीत केन्द्रीय कर्मचारियों की स्थिति बिल्कुल उलट है। तकरीबन तीन साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक निर्णय में भी केन्द्रीय कर्मचारियों को बड़ी राहत देते हुए सभी निजी अस्पतालों में उपचार कराने की हरी झण्डी दी थी। आम परिवारों के लिए मुख्यमंत्री चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना का हाल हो या कर्मचारियों का, अधिकृत अस्पताल का अभी कोई ठौर-ठिकाना नहीं है। लंबे समय बाद भी सरकार की सुस्ती से कर्मचारियों में आक्रोश है, जल्द कुछ नहीं हुआ तो आंदोलन हो सकता है।
इनका कहना है कई अस्पतालों का पिछला बकाया है। फीस के साथ कई अन्य नियमों में भी उलझन हैं। मुख्यमंत्री चिरंजवी योजना हो या अन्य कोई स्वास्थ्य बीमा योजना, निजी अस्पताल सरकार का सहयोग करने को तैयार हैं पर पहले उनकी परेशानियां तो दूर हों। बकाया को लेकर निजी अस्पतालों में रोष है।
रणवीर चौधरी, सचिव आईएमए, नागौर
निजी अस्पतालों की परेशानी दूर होनी चाहिए, बकाया मिले और शर्त व नियमों में उनका पक्ष भी देखा जाए तभी सबकुछ सामान्य हो सकता है। डॉ प्रदीप गुप्ता, अध्यक्ष आईएमए, नागौर