सरकारी आंकड़ों के अनुसार जिले में करीब सवा 9 लाख परिवार हैं, जिनमें से करीब सवा 7 लाख परिवारों ने ही भामाशाह कार्ड बनवाए हैं। जनसंख्या की दृष्टि से देखें तो जिले की करीब 35 लाख जनसंख्या है, इसमें से अब तक 25 लाख लोग ही भामाशाह योजना से जुड़े हैं। यही स्थिति प्रदेश के अन्य जिलों की है।
चार साल से इसी पर जोर
जब से भाजपा सरकार सत्ता में आई है, तब से मुख्यमंत्री का फोटो लगा भामाशाह कार्ड बनवाने पर जोर दिया जा रहा है। चार साल बाद भी जब पूरे परिवारों के भामाशाह कार्ड नहीं बन पाए तो सरकार ने यह पैंतरा अपनाया, ताकि किसान वर्ग मजबूरीवश भामाशाह कार्ड बनवा ले।
किसानों का क्या परेशानी
गौरतलब है कि भामाशाह कार्ड में मुखिया महिला को बनाया गया है, जबकि जिले सहित प्रदेश में ज्यादातर जमीन पुरुषों के नाम है। ऐसे में गिरदावरी रिपोर्ट भी पुरुष के नाम जारी हो रही है, लेकिन जब ई-मित्र पर टोकन कटवाने जाते हैं तो भामाशाह कार्ड संख्या डालते ही महिला का नाम व खाता नम्बर आता है। यदि किसान महिला के नाम से टोकन कटवाए तो खरीद केन्द्र पर परेशानी होती है और यदि खुद के नाम टोकन कटवाना चाहता है तो उसका बैंक खाता नहीं जुड़ा होने से परेशानी होती है। ऐसे में किसान हर जगह लुट रहा है। खाता जुड़वाने या भामाशाह कार्ड के लिए एनरोलमेंट कराने पर भी ई-मित्र संचालक किसानों को लूट रहे हैं।
सरकारी खरीद के नाम पर दिखावा
समर्थन मूल्य पर सरकारी खरीद में सरकारी ने जितने अड़ंगे डाले हैं, उससे एेसा लग रहा है कि सरकार मूंग खरीद करना ही नहीं चाहती। एक हैक्टेयर की मात्र ४.७० किलो तथा एक किसान से अधिकतम २५ क्विंटल की खरीद सरकार की नीयत पर प्रश्न चिह्न लगा रही है।
– हीरालाल भाटी, मंडी व्यापारी व जिला महामंत्री, कांग्रेस, नागौर