मिली जानकारी के अनुसार मानवाधिकार कार्यकर्ता, इतिहासकार और नौकरशाह सहित अन्य प्रतिष्ठित हस्तियों ने सुप्रीम कोर्ट से बिलकिस बानो मामले में दोषियों की रिहाई को रद्द करने का आग्रह किया है। इन लोगों ने दोषियों की रिहाई के फैसले को ‘न्याय का गंभीर गर्भपात’ बताते हुए गुजरात सरकार के फैसले को रद्द करने की मांग की है।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट को पत्र भेजने वालों में आम नागरिक के साथ-साथ जमीनी स्तर के कार्यकर्ता, मानवाधिकार कार्यकर्ता, प्रख्यात लेखक, इतिहासकार, विद्वान, फिल्म निर्माता, पत्रकार और पूर्व नौकरशाह शामिल थे। सहेली महिला संसाधन केंद्र, गमना महिला समूह, बेबाक कलेक्टिव, अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला संघ सहित प्रमुख समूह भी हस्ताक्षरकर्ताओं का हिस्सा थे।
इस सभी ने साझे बयान में कहा कि यह शर्म की बात है कि जिस दिन हमें अपनी आजादी का जश्न मनाना चाहिए और अपनी आजादी पर गर्व होना चाहिए, उस दिन सामूहिक बलात्कारियों और सामूहिक हत्यारों को रिहा किया गया। मालूम हो कि 2002 के गोधरा कांड में बिलकिस बानो के साथ हुए सामूहिक बलात्कार करने और उनके परिवार के सात लोगों की निर्मम हत्या करने वाले 11 दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।
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लेकिन 15 अगस्त को गुजरात सरकार की क्षमा नीति के तहत इन सभी को जेल से रिहा कर दिया गया। दोषियों की रिहाई के बाद बिलकिस बानो ने कहा था कि यह फैसला न्याय के भरोसे को तोड़ने वाला है। उनके पति ने दोषियों की रिहाई के बाद परिवार पर जान का खतरा होने की बात कही थी। इसके अलावा राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने भी इस फैसले को लेकर सरकार की आलोचना की थी।
उल्लेखनीय हो कि 2002 के गुजरात दंगे के दौरान बिलकिस 20 साल की थी। कारसेवकों की ट्रेन को जलाने के बाद भड़की हिंसा में पांच माह की गर्भवती बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप किया गया था। साथ ही उसकी तीन साल की मासूम बेटी सहित परिवार के सात लोगों की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। इस मामले में जनवरी 2008 में, मुंबई की एक विशेष सीबीआई अदालत ने 20 में से 11 आरोपियों को उम्र कैद की सजा सुनाई थी। जिन्हें 15 अगस्त को रिहा कर दिया गया।