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Punjab Assembly Elections 2022: चन्नी को चित करने में लगे हैं सिद्धू और जाखड़, जानें क्या है वजह

आज पंजाब विधानसभा चुनावों के लिए मतदान हो रहे हैं। ऐसे में सीएम चन्नी के सामने पंजाब में बहुमत के लिए 59 सीटें जुटाने की एक बड़ी चुनौती है। उनकी इन चुनावों के लिए जो भी रणनीति हो, परंतु उनका खेल कुछ बड़े फ़ैक्टर्स बिगाड़ सकते हैं।

Feb 20, 2022 / 08:46 am

Mahima Pandey

Factors that can make and break CM Channi Punjab election game plan

Factors that can make and break CM Channi Punjab election game plan

पंजाब विधानसभा चुनावों के लिए मतदान जारी है और सभी पार्टियां जमकर तैयारियां कर रही हैं। पंजाब में सीएम चन्नी के कंधों पर कांग्रेस की सत्ता को बनाए रखने की जिम्मेदारी है। उनके सामने पंजाब में बहुमत के लिए 59 सीटें जुटाने की एक बड़ी चुनौती है। उनकी इन चुनावों के लिए जो भी रणनीति हो, परंतु उनका खेल कुछ बड़े फ़ैक्टर्स बिगाड़ सकते हैं। इन फ़ैक्टर्स में कांग्रेस के कुछ दिग्गज नेता भी हैं जिसमें नवजोत सिंह सिद्धू के अलावा भी कई बड़े नाम शामिल हैं। तो जानते हैं वो कौन से फ़ैक्टर्स हैं जो चन्नी का खेल बिगाड़ सकते हैं।
नवजोत सिंह सिद्धू

पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू सीएम चेहरा न बनाए जाने से खुश नहीं हैं। कभी उनकी पत्नी तो कभी सिद्धू अप्रत्यक्ष तौर पर अपनी नाराजगी को दर्शाया चुके हैं। सिद्धू अमृतसर पूर्वी हल्के से मैदान में हैं जहां उनका मुकाबला SAD के नेता बिक्रम सिंह मजीठिया से है।

वहीं, भाजपा ने इस सीट से पूर्व IAS अधिकारी जगमोहन सिंह राजू और आम आदमी पार्टी ने जीवनजोत कौर को मैदान में उतारा है। यहाँ मुकाबला मुख्यतौर पर मजीठिया और सिद्धू के बीच ही माना जा रहा है।

अमृतसर पूर्वी हल्के के समर्थकों को उम्मीद थी कि सिद्धू ही सीएम चेहरा घोषित होंगे, परंतु ऐसा नहीं हुआ। इससे उनके समर्थक राज्य में अन्य सीटों पर भी कांग्रेस के प्रति अपनी नाराजगी जता सकते हैं। इसके अलावा जिस तरह से सिद्धू ने 60 विधायकों वाला बयान दिया है उससे भी उनकी मंशा पर सवाल उठते हैं। सिद्धू ने चुनाव प्रचार से भी बचने के काफी प्रयास किए। कई बड़े उम्मीदवारों के लिए सिद्धू ने कोई प्रचार भी नहीं किया है जिससे पार्टी को घाटा हो सकता है।
पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़

वर्तमान में सुनील जाखड़ पंजाब चुनाव समिति के अध्यक्ष हैं। उन्होंने पहले ही इस बात की घोषणा कर दी थी कि वो फिलहाल सक्रिय राजनीति से दूर हैं और फिलहाल वो किसी चुनाव प्रचार में भी नजर नहीं आए हैं। वो भी सीएम बनने की चाह रखे हुए थे।

उन्होंने खुद कहा था कि कांग्रेस ने जब पंजाब के विधायकों की वोटिंग कराई थी तो 78 में से 42 विधायक उन्हें सीएम बनाने के पक्ष में थे। जबकि चरणजीत चन्नी के समर्थन में केवल 2 विधायक चरणजीत चन्नी के समर्थन में थे फिर भी उन्हें सीएम बनाए जाने से वो नाराजग है।

उन्होंने कहा भी था, ”पंजाब सेक्युलर राज्य है। मुझे इस बात से दर्द पहुंचा है कि दिल्ली के नेताओं ने कहा कि पंजाब में सीएम की कुर्सी किसी सिख चेहरे के पास ही रहनी चाहिए।” इस बयान से ही स्पष्ट है कि जाखड़ भी पंजाब कांग्रेस के लिए मैदान में पूरे मन से नहीं उतर रहे।

उन्होंने अबोहर सीट से चुनाव लड़ने से मना कर दिया था और अपने भतीजे संदीप जाखड़ को टिकट दिलवाई थी। शायद यही कारण है कि वो पंजाब हाई कमान के निर्णय के खिलाफ खुलकर नहीं जा रहे, परंतु प्रचार में भी वो सुस्त दिखाई दे रहे हैं। भाजपा ने तो उनपर चुनावी जंग छोड़ने के आरोप तक लगाए हैं।

जाखड़ का ये व्यवहार चरणजीत चन्नी के लिए एक चुनौती जैसा बन गया है।

बाजवा परिवार का आपसी टकराव

कांग्रेस मेनिफेस्टो कमेटी के चेयरमैन प्रताप सिंह बाजवा कह चुके हैं कि कांग्रेस को सीएम चेहरा ऐलान करने से कोई लाभ नहीं मिलेगा। उनका मानना था कि किसी भी निर्णय से पार्टी में फूट पड़ सकती है, इसलिए उन्होंने सामूहिक नेतृत्व की वकालत की थी। हुआ भी ऐसा ही। इसके अलावा बाजवा ब्रदर्स में भी कादियां सीट के लिए टकराव देखने को मिला जिस कारण प्रताप सिंह बाजवा के भाई फतेहजंग सिंह बाजवा ने भाजपा का दामन थाम लिया है।

बाजवा परिवार का कादियां सीट पर वर्चस्व रहा है। पिछले चुनावों में फतेहजंग ने ही इस सीट से जीत दर्ज की थी, इस बार उनके भाई इस सीट से मैदान में उतरेंगे। भाजपा ने कादियां से विधायक राणा गुरमीत सोढी को जगह दी है।

ऐसे में यदि फतेहजंग चुनाव प्रचार के लिए उतरे तो इससे प्रताप सिंह बाजवा के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। इसससे कादियां सीट पर कांग्रेस को कड़ी चुनौती देखने को मिल सकती है।
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बागी नेताओं को एकजुट करने की चुनौती

चरणजीत सिंह चन्नी के सामने उन नेताओं को एकजुट करने की चुनौती है जो टिकट न मिलने से नाराज हैं। या यूं कहें कि सीएम चेहरा बनाए जाने के बाद भी वो पार्टी में एकजुटता लाने में असफल दिखाई दे रहे हैं। यही नहीं, दलित सीएम बनाए जाने से कांग्रेस के समक्ष जट सिखों को साधे रखने की बड़ी चुनौती है।

क्षेत्रीय समीकरण

पंजाब की 117 सीटों में से 69 सीटें मालवा में हैं। कांग्रेस ने पिछले चुनावों में यहाँ कि 40 सीटों पर जीत दर्ज की थी, इसके पीछे अमरिंदर सिंह की लोकप्रियता को भी अहम कारण माना जाता है। इसके बाद दोआब और मांझा इलाकों की भूमिका कांग्रेस की जीत में अहम रही थी। इस बार पार्टी में बड़े बदलावों के कारण क्षेत्रीय समीकरण बनते दिखाई नहीं दे रहे हैं। सिद्धू, सुनील जाखड़, प्रताप सिंह बाजवा और मनीष तिवारी जैसे नेता भी बढ़-चढ़कर प्रचार में हिस्सा नहीं ले रहे।
ED का एक्शन

अवैध रेत खनन मामले में सीएम चन्नी के भतीजे के खिलाफ ED का एक्शन भी उनके लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है। इससे आम जनता के मन में चन्नी के शासन के प्रति भ्रष्टाचार को लेकर भावना घर कर सकती है।

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