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कैबिनेट मंत्री और राज्य मंत्री में क्या होता है अंतर, सांसद से मंत्री बनते ही कितनी बढ़ जाती है सैलरी?

Modi 3.0:

नई दिल्लीJun 10, 2024 / 04:10 pm

Prashant Tiwari

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। पीएम मोदी के साथ ही 71 सांसदों ने भी मंत्री पद की शपथ ली। मोदी 3.0 में जो मंत्रिमंडल बना है वो मोदी सरकार का अब तक सबसे बड़ा मंत्रिमंडल है। 2014 में जब मोदी ने पहली बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी, तब उनके साथ 46 सांसद मंत्री बने थे। वहीं, 2019 में 59 सांसदों ने मंत्री पद की शपथ ली थी। फिलहाल मोदी सरकार में 9 मंत्री और बन सकते हैं। क्योंकि संविधान में 81 मंत्रियों की सीमा तय है। संविधान के 91वें संशोधन के मुताबिक, लोकसभा के कुल सदस्यों में से 15% को ही मंत्रिमंडल में शामिल किया जा सकता है। लोकसभा में कुल 543 सीटें हैं, इसलिए कैबिनेट में 81 मंत्री ही हो सकते हैं।
know difference between Cabinet Minister Minister of State Independent Charge and Minister of State
आर्टिकल 75 के तहत होता है मंत्रिमंडल का गठन

भारत के संविधान के अनुच्छेद 75 के तहत, प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति मंत्रिमंडल का गठन करते हैं। मंत्रिमंडल में तीन तरह के मंत्री होते हैं, जिनमें कैबिनेट मंत्री, राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और राज्य मंत्री होता है। मंत्रिमंडल में सबसे ताकतवर कैबिनेट मंत्री होता है। उसके बाद राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और फिर राज्य मंत्री होता है। लेकिन कुछ लोग इन मंत्रियों में फर्क नहीं कर पाते और राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और राज्य मंत्री को भी कैबिनेट मंत्री समझ लेते है अगर आपको भी ये बात नहीं समझ में आती की इन तीनों में क्याल फर्क होता है तो इस आर्टिकल में आपकी परेशानी दूर हो जाएगी। इसके साथ ही आपको ये भी पता चल जाएगा कि जिन्हें भी मंत्रिमंडल में शामिल किया जाता है, उन्हें बाकी सांसदों की तुलना में हर महीने अलग से भत्ता भी मिलता है।
कैबिनेट मंत्री, राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और राज्य मंत्री में क्या होता है अंतर

कैबिनेट मंत्री: बता दें कि कैबिनेट मंत्री वो मंत्री होते है जो सीधे प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करते हैं। इन्हें जो भी मंत्रालय दिया जाता है, उसकी पूरी जिम्मेदारी उनकी ही होती है। कैबिनेट मंत्री के पास एक से ज्यादा मंत्रालय भी हो सकता हैं। मंत्रिमंडल की बैठक में कैबिनेट मंत्री का शामिल होना जरूरी होता है क्योंकि सरकार अपने सभी फैसले कैबिनेट बैठक में ही लेती है। इसी दौरान मंत्री अपने विभाग की रिपोर्ट और सुझाव प्रधानमंत्री को सौंपते हैं।
राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार): कैबिनेट मंत्री के बाद स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री होते हैं। इनकी भी सीधी रिपोर्टिंग प्रधानमंत्री के पास ही होती है। इनके पास अपना मंत्रालय होता है। इनके ऊपर कोई कैबिनेट मंत्री नहीं होता। स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री कैबिनेट की बैठक में शामिल होते है। उदाहरण के लिए जम्मू से आने वाले जीतेंद्र सिंह पिछले 10 सालों से प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) है और वह प्रधानमंत्री मोदी को रिपोर्ट करते हैं।
राज्य मंत्रीः कैबिनेट मंत्री की मदद के लिए राज्य मंत्री बनाए जाते हैं। इनकी रिपोर्टिंग कैबिनेट मंत्री को होती है। एक मंत्रालय में एक से ज्यादा भी राज्य मंत्री बनाए जा सकते हैं। कैबिनेट मंत्री की गैरमौजूदगी में मंत्रालय की सारी जिम्मेदारी राज्य मंत्री की होती है। राज्य मंत्री भी कैबिनेट बैठक में शामिल नहीं होते।
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मंत्री बनने वाले सांसदों को मिलते ही खास सुविधाएं

लोकसभा के सदस्यों को सैलरी और भत्ते सैलरी एक्ट के तहत मिलती है। इसके मुताबिक, लोकसभा के हर सदस्य को हर महीने 1 लाख रुपये की बेसिक सैलरी मिलती है। इसके साथ ही 70 हजार रुपये निर्वाचन भत्ता और 60 हजार रुपये ऑफिस खर्च के लिए अलग से मिलते हैं। इसके अलावा जब संसद का सत्र चलता है तो दो हजार रुपये का डेली अलाउंस भी मिलता है। लेकिन जो सांसद प्रधानमंत्री, कैबिनेट मंत्री या राज्य मंत्री बनते हैं, उन्हें हर महीने बाकी सांसदों की तुलना में एक अलग से भत्ता भी मिलता है।
सत्कार भत्ता

प्रधानमंत्री और मंत्रियों को हर महीने सत्कार भत्ता भी मिलता है। प्रधानमंत्री को 3 हजार रुपये, कैबिनेट मंत्री को 2 हजार, राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) को 1 हजार और राज्य मंत्री को 600 रुपये का सत्कार भत्ता हर महीने मिलता है। ये भत्ता असल में हॉस्पिटैलिटी के लिए रहता है और मंत्रियों से मिलने आने वाले लोगों की आवभगत पर खर्चा होता है।
इसे ऐसे समझिए कि एक लोकसभा सांसद को सैलरी और भत्ते मिलाकर हर महीने कुल 2.30 लाख रुपये मिलते हैं. जबकि, प्रधानमंत्री को 2.33 लाख, कैबिनेट मंत्री को 2.32 लाख, राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) को 2.31 लाख और राज्य मंत्री को 2,30,600 रुपये मिलते हैं।
सांसदों को भी देना पड़ता टैक्स

बहुत लोग सोचते हैं कि सांसदों और मंत्रियों को टैक्स नहीं देना पड़ता। लेकिन ये गलत है क्योंकि देश में चाहे सांसद हो या प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति, सभी को इनकम टैक्स देना पड़ता है। हालांकि, इन्हें सिर्फ सैलरी पर ही टैक्स देना होता है। नियमों के मुताबिक, लोकसभा-राज्यसभा के सांसद, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति सिर्फ सैलरी पर ही टैक्स भरते हैं। बाकी जो अलग से भत्ते मिलते हैं उन पर कोई टैक्स नहीं लगता। मतलब, सांसदों की हर महीने की सैलरी एक लाख रुपये है। इस हिसाब से सालाना सैलरी 12 लाख रुपये हुई. इस पर ही उन्हें टैक्स देना होता है। सांसदों, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति की सैलरी पर ‘अन्य स्रोतों से प्राप्त आय’ के अंतर्गत टैक्स लगाया जाता है।

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