एक साथ दो परीक्षाएं पास करने के लिए सभी राजनीतिक दलों ने दोगुनी ताकत झोंक रखी है। भाजपा के सामने पुराना प्रदर्शन दोहराने की चुनौती है तो कांग्रेस के सामने सीटों की संख्या में बढ़ाने की चुनौती है। ओडिशा में लंबे समय से से बीजू जनता दल (बीजेडी) की सरकार है। नवीन पटनायक को राजनीति विरासत में मिली है। राज्य में सत्तारूढ़ बीजेडी अपना वर्चस्व पहले की तरह कायम रखने में जुटी हुई है। इसलिए बीजेडी ने बीजेपी के साथ गठबंधन नहीं किया। कई वर्षों बाद खासकर बीजेडी व बीजेपी के बीच सीट शेयरिंग को लेकर कोशिशें हुईं। बीजेडी व बीजेपी के बीच गठबंधन होना लगभग तय था, लेकिन शर्तों पर सहमति नहीं बन पाने के कारण यह हो नहीं पाया। दोनों तरफ से सभी सीटों पर चुनाव लडऩे का ऐलान कर टिकट जारी कर दिए गए।
सत्ता के दो केन्द्र नहीं बनने दिए 1998 में नवीन पटनायक की पार्टी बीजेडी ने भाजपा के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ा था। पटनायक को वाजपेयी सरकार में मंत्री भी बनाया गया। लेकिन पटनायक ने ओडिशा में कभी सत्ता के दो केन्द्र नहीं बनने दिए। वे अपनी सरकार को सिंगल इंजन से चलाना ज्यादा बेहतर मानते रहे हैं। विरासत में राजनीति के गुर सीखने वाले पटनायक राजनीतिक समीकरण और सही समय पर सही फैसले लेने के लिए चर्चित हैं, इसलिए 24 साल से उनकी सरकार है।
34 दलों ने चुनाव लड़ा ओडिशा में पिछले लोकसभा चुनाव 2019 में कुल 34 दलों ने चुनाव लड़ा था, लेकिन इनमें से 31 राजनीतिक दलों को एक भी सीट पर जीत नहीं मिल पाई। ओडिशा में लोकसभा की 21 सीटें हैं। यहां बीजू जनता दल को 12, भाजपा को 8 व कांग्रेस को 1 सीट पर जीत मिली थी। इसके अलावा यहां किसी भी दल की दाल नहीं गल पाई।