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रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का विपक्ष को न्योता, क्या करें कि ना करें की मुश्किल में फंसे नेता, आप भी समझें पूरा गणित

रामलला की मूर्ति के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने को लेकर कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दल राजनीतिक हानि-लाभ के दोराहे पर फंसे हैं। वहीं भाजपा पूरी तरह से इस मुद्दे को भुनाने में जुटी है।

Jan 02, 2024 / 07:54 am

Shaitan Prajapat

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अयोध्या में राम मंदिर में रामलला की मूर्ति के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने को लेकर कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दल राजनीतिक हानि-लाभ के दोराहे पर फंसे हैं। कांग्रेस मंदिर विरोधी होने की बदनामी से बचना चाहती है तो दूसरी ओर वह भाजपा के राजनीतिक जाल में भी नहीं फंसना चाहती। जिन नेताओं को 22 जनवरी के समारोह का न्यौता मिला है उनमें से वामपंथी दलों के अलावा अन्य किसी भी नेता ने अभी स्पष्ट नहीं किया है कि वह अयोध्या जाएंगे या नहीं। लोकसभा चुनाव से पहले हो रहे इस समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुख्य यजमान है। भाजपा पूरी तरह से इस मुद्दे को भुनाने में जुटी है। समारोह में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, कांग्रेस नेता सोनिया गांधी समेत कई विपक्षी दलों को आमंत्रित किया गया है। वामपंथी दलों के नेताओं ने समारोह में शामिल होने से साफ इंकार कर दिया है।


-भाजपा के एजेंडे को ध्वस्त करने की चुनौती

कांग्रेस का मानना है कि प्राण प्रतिष्ठा समारोह आयोजित करना भाजपा का अपने चुनावी एजेंडे को धार देने जैसा है। इस एजेंडे को ध्वस्त करना कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती है। पार्टी के रणनीतिकारों का कहना है कि यदि कांग्रेस नेता समारोह में शामिल नहीं होते हैं तो भाजपा को कांग्रेस के हिन्दू और मंदिर विरोधी होने का प्रचार करने का मौका मिल जाएगा। वहीं समारोह में शामिल होने पर भाजपा के हाथों खेलने का आरोप भी लग सकता है और अल्पसंख्यक, खासकर मुस्लिम, समुदाय में प्रतिक्रिया हो सकती है। हालांकि पार्टी के अधिकतर नेता इस समारोह में कांग्रेस के शामिल होने पर सहमत दिख रहे हैं। कर्नाटक के सीएम एम सिद्धरामैया तो साफ कह चुके हैं कि उनकी पार्टी मंदिर की समर्थक है। यही वजह है कि पार्टी के नेता संकेत दे रहे हैं कि सोनिया गांधी और पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे समारोह में शामिल हो सकते हैं।

– मंदिर निर्माण का विरोध कभी नहीं किया

कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि कांग्रेस मंदिर निर्माण की विरोधी नहीं है, बल्कि राजीव गांधी के प्रधानमंत्री रहते मंदिर के ताले खुलवाए गए थे। भगवान राम हम सभी के आराध्य है और हम भी राम भक्त है। कांग्रेस ने कोर्ट के फैसले के सम्मान की बात कही थी और अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर मंदिर निर्माण हो रहा है तो समारोह में शामिल होकर उत्तर भारत की हिंदी पट्टी राज्यों में कांग्रेस नया सियासी संदेश भी दे सकती है।

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– शिवसेना ने उद्धव को किया आगे

राम मंदिर आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाली शिवसेना (उद्धव) खुलकर भाजपा पर हमला बोल रही है। पार्टी के प्रवक्ता संजय राउत साफ कह चुके हैं कि राम लला किसी पार्टी की संपत्ति नहीं, वह सबके हैं। किसी को भाजपा के कार्यक्रम में क्यों जाना चाहिए? यह कोई राष्ट्रीय कार्यक्रम नहीं है। भाजपा के कार्यक्रम खत्म होने के बाद उद्धव ठाकरे राम मंदिर उद्घाटन कार्यक्रम में जरूर जाएंगे। अन्य विपक्षी नेता भी समारोह में जाने का राजनीतिक हानि-लाभ देख रहे हैं।

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