दक्षिण में पैठ बनाने की कोशिश
तमिलनाडु की राजनीति में सेंध लगाने और लोकसभा चुनाव में अपनी सीटों की संख्या बढ़ाने की बेताब कोशिश कर रही भाजपा ने राज्य के सामाजिक व राजनीतिक परिवेश के साथ एक रूप होने के लिए कई तरीकों का इस्तेमाल किया है। प्रधानमंत्री मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, वित्त मंत्री, निर्मला सीतारमण और अन्य वरिष्ठ नेताओं सहित भाजपा नेता नियमित अंतराल पर तमिलनाडु आ-जा रहे हैं और राज्य के लिए नई परियोजनाओं की घोषणा कर रहे हैं।
भाजपा लोकसभा चुनाव से पहले राजनीतिक फायदा हासिल करने के लिए स्थानीय आइकनों की लोकप्रियता पर सवारी करने के लिए तमिल सांस्कृतिक पहचान को अपनाने की भी कोशिश कर रही है। यह देखना बाकी है कि क्या इन उपायों से भाजपा को आगामी लोकसभा चुनावों में अपनी सीटों की संख्या बढ़ाने में मदद मिलेगी।
2019 में रहा था बुराहाल
साल 2019 के आम चुनावों में भाजपा को कोई फायदा नहीं हुआ। वह कुल वोटों का केवल 3.66 प्रतिशत ही हासिल कर सकी। इसके गठबंधन सहयोगियों में अन्नाद्रमुक को 19.39 प्रतिशत वोट मिले, पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) को 5.36 प्रतिशत और देसिया मुरपोक्कू द्रविड़ कड़गम (डीएमडीके) को 2.16 प्रतिशत वोट शेयर मिले। दिलचस्प बात यह है कि द्रमुक को 33.52 फीसदी वोट शेयर मिला।
इससे पता चलता है कि भाजपा अपने दम पर राज्य में तब तक अपनी छाप नहीं छोड़ पाएगी जब तक कि वह नए फेरबदल और संयोजन पर काम नहीं करती। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि भाजपा का अन्नाद्रमुक के साथ राजनीतिक गठबंधन में नहीं है और अपने दम पर लोकसभा चुनाव लड़ने से पार्टी को इच्छित परिणाम हासिल करने में मदद नहीं मिलेगी।
बीजेपी के लिए राह मुश्किल
हालांकि काशी-तमिल संगमम, सौराष्ट्र-तमिल संगमम और अयोतियापट्टिनम का महत्व बढ़ाना, जहां श्री राम मंदिर स्थित है, कुछ ऐसे कदम हैं जो भाजपा को राज्य के लोगों के बीच सम्मान दिला सकते हैं। आने वाले दिनों में गंभीर चर्चाएं और विचार-विमर्श होंगे, लेकिन अगर भाजपा ने मजबूत गठबंधन नहीं बनाया तो पार्टी के लिए एक भी सीट जीतना मुश्किल होगा।