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नई दिल्ली

पूर्व बाल मजदूर सुरजीत लोधी को ब्रिटेन का प्रतिष्ठित डायना अवार्ड

नोबल विजेता कैलाश सत्‍यार्थी के चिल्‍ड्रेन्स फाउंडेशन की ओर से संचालित बाल मित्र ग्राम के सदस्य हैं सुरजीत

नई दिल्लीJun 29, 2021 / 09:24 pm

Vivek Shrivastava

पूर्व बाल मजदूर सुरजीत लोधी को ब्रिटेन का प्रतिष्ठित डायना अवार्ड

पूर्व बाल मजदूर सुरजीत लोधी को ब्रिटेन का प्रतिष्ठित डायना अवार्ड

कैलाश सत्‍यार्थी चिल्‍ड्रेन्स फाउंडेशन (केएससीएफ) की ओर से संचालित मध्‍य प्रदेश में विदिशा जिले के गंजबासौदा प्रखंड के शहवा बाल मित्र ग्राम (बीएमजी) के पूर्व बाल मजदूर और वर्तमान में राष्‍ट्रीय बाल पंचायत के उपाध्‍यक्ष 17 वर्षीय सुरजीत लोधी को अपने गांव को नशामुक्‍त करने और कमजोर तबकों के बच्‍चों को शिक्षित करने के लिए 2021 के प्रतिष्ठित ब्रिटेन के डायना अवार्ड से सम्‍मानित किया गया है। डायना पुरस्कार वेल्स की दिवंगत राजकुमारी डायना की स्मृति में स्थापित किया गया है।

सुरजीत दुनिया के उन 25 बच्‍चों में शामिल हैं जिन्‍हें इस गौरवशाली अवार्ड से सम्‍मानित किया गया। सुरजीत के प्रमाणपत्र में इस बात का विशेष रूप से उल्‍लेख किया गया है कि दुनिया बदलने की दिशा में उसने नई पीढ़़ी को प्रेरित और गोलबंद करने का महत्वपूर्ण प्रयास किया है। कोविड संकट की वजह से उन्हें यह अवार्ड वर्चुअल माध्यम द्वारा आयोजित एक समारोह में प्रदान किया गया। गौरतलब है कि सुरजीत केएससीएफ द्वारा संचालित बीएमजी की चुनी हुई बाल पंचायत के ऐसे तीसरे सदस्‍य हैं जिसे डायना अवार्ड से सम्‍मानित किया गया है। सुरजीत से पहले यह अवार्ड झारखंड की चम्‍पा कुमारी और नीरज मुर्मू को मिल चुका है।

सुरजीत लोधी का जन्‍म पिछड़ी जाति के एक गरीब परिवार में हुआ। सुरजीत के प्रयासों ने बच्चों और महिलाओं के जीवन में स्‍थाई परिवर्तन लाने का काम किया है। उसके गांव के अधिकांश बच्चे स्‍कूलों नहीं जाते थे और वे अपने माता-पिता के साथ काम करते थे। दूसरी ओर गांव के अधिकांश पुरुष शराब पर अपनी सारी कमाई खर्च कर डालते और नशे में पत्नी और बच्चों के साथ बुरा सलूक करते थे।

सुरजीत के प्रयासों और संघर्ष से 120 बच्चों को स्कूल में दाखिला कराया गया और उन्हें शिक्षा प्राप्त करने में सफलता मिली। सुरजीत के प्रयास से और बच्‍चों का भी स्‍कूलों में नामांकन जारी है। ग्राम पंचायत के सहयोग से सुरजीत ने बाल मित्र ग्राम के अन्य बच्चों के साथ मिलकर गांवों में शराब की अवैध रूप से चल रही 5 दुकानों को बंद करवा दिया। इस तरह से गांवों में शराब की बिक्री पर प्रतिबंध लगा और महिलाओं और बच्चों को शारीरिक और मानसिक हिंसा से मुक्ति भी मिली। 17 साल का सुरजीत जब 14 साल का था, तब गाली-गलौज और हिंसा का उसे रोजाना सामना करना पड़ता। उसके पिता अपनी सारी कमाई शराब पर खर्च कर देते। जिससे उसका परिवार आर्थिक रूप से असुरक्षित हो गया और सुरजीत को कम उम्र में स्कूल छोड़ना पड़ा और काम पर जाना पड़ा। उसके पिता अक्सर सुरजीत और उसकी मां की पिटाई कर देते थे। गौरतलब है कि सुरजीत की तरह उस इलाके के लगभग सभी बच्‍चों को अपने पिता की उपेक्षा और दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता।

अपने साथ प्रतिदिन होने वाली हिंसा से निराश सुरजीत ने अपने पिता की शराब छुड़ाने का संकल्‍प लिया। सुरजीत के दृढ़ निश्‍चय और साहस ने रंग लाया और अगले कुछ दिनों में उसके पिता ने शराब नहीं पीने की कसम खाई। इस तरह सुरजीत का हौसला बुलंद हुआ। उसने केएससीएफ के बीएमजी और बाल पंचायत के सहयोग से विभिन्न गांवों में शराब विरोधी अभियानों के तहत जन-जागरुकता अभियान चलाया। समाज के 400 से ज्‍यादा लोगों ने उसका समर्थन किया। उसकी सफलता से प्रेरित होकर भिले और शहवा बीएमजी के बच्चों और महिलाओं ने मांग की कि पुरुषों द्वारा शराब के सेवन पर खर्च किए जाने वाले पैसों को बच्चों को शिक्षित करने और घर की माली हालत को सुधारने में खर्च किया जाए। गंजबासौदा के शंकर गढ़, लमन्या, बधार, शहवा और भिले में शराब की पांच दुकानों को बंद कराने के लिए सरकार और प्रशासन को आवेदन दिए गए। दो साल के लगातार संघर्ष और कड़ी मेहनत के बाद 2019 में शराब की पांच दुकानों को बंद कर दिया गया। वर्तमान में सुरजीत बाल पंचायत सदस्यों और महिला समूहों के समर्थन से शराब विरोधी अभियान का नेतृत्व कर रहा है। अवैध शराब की दुकान चलाने वाले दो लोगों पर उसने जुर्माना भी लगाया है।

कोरोना महामारी से संबंधित व्‍याप्‍त अंधविश्‍वासों और भ्रांतियों को भी अपने इलाके में सुरजीत ने दूर किया और 100 से ज्‍यादा लोगों का टीकाकरण कराया। उसने मार्च 2020 से लॉकडाउन अवधि के दौरान गांव के युवाओं को एकजुट किया, ताकि गरीबों और वंचितों को भोजन, मास्‍क और सैनिटाइजेशन की सुविधाएं मिले और टीकाकरण अभियान को बढ़ावा दिया जा सके।

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