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डूसू अध्यक्ष तुसीद पर दर्ज है कई शिकायतें
आपको बता दें कि याचिका पर सुनवाई करते कहा कि इस बात की अनदेखी नहीं की जा सकती है कि सुप्रीम कोर्ट ने लिंग्दोह कमिटी की सिफारिशों को मंजूरी दी है। लिंग्दोह कमिटी की सिफारिशों के मुताबिक यदि किसी उम्मीदवार के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की गई है तो वह विद्यार्थी चुनाव लड़ने के लिए योग्य नहीं हो सकता है। अदालत ने कहा कि इस सिफारिश का मकसद सिर्फ इतना है कि विद्यार्थियों की भलाई के लिए चुनाव लड़ने वाले व्यक्ति की छवि साफ और स्वच्छ हो। हाईकोर्ट ने आगे कहा कि बीते वर्ष 4-5 सितंबर 2017 को डीयू के कुछ विद्यार्थियों ने चुनाव आयोग के सामने तुसीद के खिलाफ शिकायतें दर्ज कराई थी। जिसमें कहा गया था कि उन्होंने एम.ए. (बुद्धिस्ट स्टडीज) के कुछ पेपर क्लियर नहीं किए। साथ ही उन्होंने कॉलेज में दोबारा ऐडमिशन लिया था। जिसके बाद विश्वविद्यालय प्रशासन ने अनुशासनात्मक कार्रवाई भी की थी। कोर्ट ने कहा कि साफ है कि डीयू के सीईओ ने शिवाजी कॉलेज के प्रिंसिपल से उन शिकायतों पर जवाब मांगा जहां याचिकाकर्ता पढ़ाई करते थे। सूचना सही पाए जाने के आधार पर कार्रवाई की गई।
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हलफनामे में दर्ज नहीं हैं पुराने रिकॉर्ड
अदालत ने सुनवाई करते हुए कहा कि चुनाव के लिए नामांकन के साथ भरे गए अपने हलफनामे में याचिकाकर्ता रॉकी तुसीद ने अपने उस कार्रवाई के बारे में कोई भी जिक्र नहीं किया था। बता दें कि तुसीद ने डीयू के चीफ इलेक्शन ऑफिसर के 6 सितंबर 2016 के संबंधित आदेश को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में यह याचिका दायर की थी। जिसको लेकर हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए यह अहम फैसला दिया है।