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नई दिल्ली

अपनी मर्जी से भीख नहीं मांगता कोई, इसके पीछे कोई ना कोई मजबूरी होती है: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाई कोर्ट ने राजधानी दिल्ली में भीख मांगनें को अपराध नहीं बल्कि जीवन यापन का जरिया बताया है। इस मुद्दे पर टिप्पणी करते हुए अदालत ने कहा कि कोई भी अपनी मर्जी से भीख नहीं मांगता, भीख मांगने के पीछे कोई ना कोई मजबूरी होती है।

नई दिल्लीAug 09, 2018 / 01:44 pm

Shivani Singh

Petition in highcourt asking to change legal age for alcohol intake

delhi high court

नई दिल्ली। दिल्ली हाई कोर्ट ने भीख मांगने को अपराध की श्रेणी से बाहर करते हुए बुधवार को कहा था कि कोई भी अपनी मर्जी से भीख नहीं मांगता। भीख मांगने के पीछे कोई ना कोई मजबूरी होती है। दिल्ली उच्च न्यायाल ने कहा कि जो भी भीख मांगता है उसके लिए वह जरूरतें पूरी करने का अंतिम उपाय है। बता दें कि दिल्ली उच्च न्यायलय ने भीख मांगने को अपराध की श्रेणी से बाहर करने का फैसला सुनाया है। कोर्ट ने यह फैसला हर्ष मंदर और कर्णिका साहनी की जनहित याचिकाओं पर सुनाया। इस याचिका में राष्ट्रीय राजधानी में भिखारियों के लिए मूलभूत मानवीय और मौलिक अधिकार मुहैया कराए जाने का अनुरोध किया गया था।

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भीख मांगना अपराध की श्रेणी में रखना जायज नहीं

दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि भीख मांगने को अपराध की श्रेणी में रखना जायज नहीं है। भीख को अपराध मानना समाज के सबसे कमजोर तबके के लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन करना है। वहीं, अदालत ने जीवन के अधिकार के तहत सभी नागरिकों के जीवन की न्यूनतम जरूरतें पूरी नहीं कर पाने के लिए जिम्मेदार ठहराया है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि भीख मांगने पर किसी को सजा देने का प्रावधान असंवैधानिक हैं। यह रद्द किए जाने लायक है।

इस मुद्दे पर टिप्पणी करते हुए पीठ ने कहा कि भीख मांगने को अपराध बनाने वाले बंबई भीख रोकथाम कानून के प्रावधान में टिक नहीं सकते। दिल्ली हाईकोर्ट ने आगे कहा कि इस मामले के सामाजिक और आर्थिक पहलू पर विचार करने के बाद दिल्ली सरकार भीख के लिए मजबूर करने वाले गिरोहों के खिलाफ वैकल्पिक कानून ला सकती है।

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कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनाया फैसला

गौरतलब है कि कोर्ट ने यह फैसला हर्ष मंदर और कर्णिका साहनी की जनहित याचिकाओं पर सुनाया है। इस याचिका में राष्ट्रीय राजधानी में भिखारियों के लिए मूलभूत मानवीय और मौलिक अधिकार मुहैया कराए जाने का अनुरोध किया गया था। बता दें कि अदालत ने इस कानून की कुल 25 धाराओं को निरस्त किया। वहीं, इस मुद्दे पर केंद्र सरकार का कहना है कि वह भीख मांगने को अपराध की श्रेणी से बाहर नहीं कर सकती।

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