पहले हम बात करते हैं आजमगढ़ की, यह समाजवाद का वो मजबूत किला है, जिसे 2014 में मुलायम सिंह यादव और 2019 में अखिलेश यादव ने मोदी लहर की चपेट में आने से बचाया। हालांकि अखिलेश के विधायक बनने के बाद 2022 में हुए उपचुनाव में भाजपा के दिनेश लाल यादव निरूहआ ने जीत हासिल की थी। अब मैदान में भोजपुरी फिल्म कलाकार निरूहआ फिर से भाजपा के टिकट पर है, जबकि उनके सामने अखिलेश के चचेरे भाई धमेन्द्र यादव चुनाव मैदान में है। मुस्लिम-यादव (एमवाई) फैक्टर वाले इस क्षेत्र में अखिलेश ने बसपा नेता रहे गुड्डू जमाली को सपा में लाकर धमेन्द्र यादव की राह आसान की है। हालांकि बसपा ने मुस्लिम उम्मीदवार मसूद साबिहा अंसारी को उम्मीदवार बनाकर सपा के लिए मुश्किल पैदा की है। इस सीट पर जहां अखिलेश ने मोर्चा संभाल रखा है, वहीं भाजपा की ओर से योगी आदित्यनाथ के अलावा मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने भी फोकस किया है।
भाजपा ने राम मंदिर निर्माण, कार सेवा के दौरान गोलीबारी, एक ही परिवार से उम्मीदवार जैसे मुद्दों से सपा पर तीखा हमला बोल रखा है। जबकि सपा का जवाब समाजवाद से दिया जा रहा है। हमने यहां की जमीनी हकीकत तलाशने के लिए ज्यूस की दुकान चलाने वाली ममता सोनगर से बातचीत की। वे कहने लगी कि महंगाई बहुत है और कमाई कम होती है। आजमगढ़ में तो अखिलेश भैया का ही जोर है। इससे आगे ऑटो चालक राजू यादव से बात करते ही कहने लगे कि महंगाई और बेरोजगारी ही सबसे बड़ा मुद्दा है। राम मंदिर का मुद्दा पूछा तो राजू ने कहा, ‘राम मंदिर बना है, अच्छी बात है। इसमें बुराई क्या है, लेकिन मंदिर के नाम पर वोट क्यों दें। मंदिर अपनी जगह है और वोट देने का आधार अपनी जगह है।’ उनकी यह बात सुनकर पास ही खड़े रमाकांत तिवारी कहने लगे कि राम मंदिर निर्माण, विकास कराने और गुंडई खत्म करने के नाम पर वोट दिया जाएगा। वो राजू से बहस करते हुए कहने लगे कि साइकिल पंचर हो गई है। भाजपा ने पूर्वांचल एक्सप्रेस जैसे कई काम करवाए। अखिलेश बस जातिवाद करते हैं। इस पर राजू ने उनकी बात काटते हुए कहा, ‘भाजपा ने भी यादव को ही टिकट दिया है, आपको यादव को ही वोट देना होगा।’
वहीं रमाकांत बोले, ‘अखिलेश अपने परिवार के बाहर के नेता को टिकट क्यों नहीं देते।’ दोनों को बहस में छोड़ मैं आगे बढ़ गया। मुझे रोडवेज बस कंडक्टर मुन्ना वाल्मीकि मिले। मुन्ना कहने लगे कि दस साल बहुत होते हैं। अब तो संविधान बदलने की बात हो रही है। यहां से मैं अखिलेश यादव की विधानसभा सीट मुबारकपुर पहुंचा। छोटा सा कस्बा होने के बावजूद यहां अच्छी सडक़ें, डिवाइडर और उन पर हेरीटेज रोड लाइट्स से विकास का सहज ही अंदाजा हो गया। किराने की दुकान चलाने वाले उमाशंकर शर्मा ने कहा कि विकास में यहां कोई कमी नहीं है। कॉलेज, स्कूल जैसे काम करवाए गए हैं। सागरी में राजू निषाद कहने लगे कि बेरोजगारी और महंगाई है, जिसकी वजह से टेंपो लेकर दौड़ा रहे हैं। पुलिस भी चालान बनाते रहते हैं। राम मंदिर बनाने से हमें भोजन नहीं मिल सकता है। पहले की सरकार में 400 रुपए का गैस सिलेंडर था। अब यह 1200 रुपए तक में हो गया था।
सपा का अभेद किला
भाजपा की प्रचंड लहर के बावजूद 2022 के विधानसभा चुनावों में भी आजमगढ़ की सभी पांचों विधानसभा सीटों पर सपा ने चुनाव जीता था। जबकि 2017 में चार सीटें जीती थी, जबकि मुबारकपुर से अखिलेश यादव बसपा के गुड्डू जमाली से महज 700 वोट से चुनाव हार थे।
अंबडेकरनगर
अगड़े-पिछड़ों की सियासी लड़ाई में बदला चुनाव अंबेडकरनगर की। इस जिले को मायावती ने ही बनाया और इस इलाके से वे वो तीन बार सांसद चुनी गई। जबकि 2009 व 2019 में यहां से बसपा ने चुनाव जीता। 2019 में बसपा के टिकट पर सांसद बने रितेश पांडे ने हाथी से उतरकर भाजपा का दामन थाम लिया है। ब्राह्मण बाहुल्य इस सीट पर समाजवादी पार्टी ने कुर्मी जाति के बड़े नेता लालजी वर्मा को चुनाव में उतारकर पिछड़ों का कार्ड चला है। लोगों से बातचीत में साफ लग रहा है कि यहां चुनाव अगड़े और पिछड़ों की सियासी लड़ाई बनकर रह गया है। हालांकि बसपा ने अपने वजूद को बचाने के लिए दलित-मुस्लिम के समीकरण साधने के लिए कमर हयात को चुनाव में उतारा है। यह अलग बात है कि हयात का जिक्र सिर्फ सपा के वोट काटने वाले के तौर पर ही हो रहा है। अकबरपुर की मुख्य सडक़ पर रोशनी से जगमग भगवान राम की प्रतिमा और उसके प्रति लोगों की आस्था से चुनाव में राम मंदिर निर्माण का महत्व भी पता चल रहा है। यहीं पर अपने पोते के साथ रामअवतार शर्मा ने कहा कि वे रोजाना यहां आते हैं। राम मंदिर बनना गौरव की बात है। यह हमारे लिए सबसे बड़ा मुद्दा है। इसके अलावा विकास दूसरा मुद्दा है। यहां बसपा का अब कोई भविष्य नहीं है। वहीं लस्सी की दुकान चलाने वाले बृजकिशोर पांचाल ने कहा कि हम पिछड़े लोग है, सरकार सुनती नहीं है। हमारे लिए राम मंदिर कोई मुद्दा नहीं है।
जौनपुर
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी से लगी हुई है जौनपुर सीट। फिलहाल इस सीट पर भाजपा, सपा और बसपा में त्रिकोणीय मुकाबला दिख रहा है। जौनपुर में बड़े ही दिलचस्प राजनीतिक घटनाक्रम हुए, जिसकी वजह से इसकी चर्चा देश में हो रही है। दरअसल, बसपा के दिग्गज नेता धनंजय सिंह इसी सीट से चुनाव लडऩा चाहते थे, लेकिन अदालत से उन्हें एक मामले में सात साल की सजा हो गई, जिसके चलते वो चुनाव नहीं लड़ सकते हैं। बसपा ने उनकी पत्नी श्रीकला रेड्डी को पहले टिकट दिया, लेकिन बाद में वर्तमान सांसद श्याम सिंह को ही उम्मीदवार घोषित कर दिया। इसके चलते धनंजय सिंह नाराज होकर भाजपा के साथ खुलकर आ गए और बसपा की राह में अवरोध खड़े कर दिए हैं। इसका असर क्षेत्र में दिख रहा है। भाजपा ने महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री कृष्ण पाल सिंह और सपा ने बाबूसिंह कुशवाह को उम्मीदवार बनाया है। सपा ने बाहरी उम्मीदवार का मुद्दा उठा रखा है।