इसलिए कांग्रेस मुंडावर से पिछड़ी अलवर जिले की 11 विधानसभा सीटों में से 6 पर कांग्रेस ने कब्जा किया था। सबसे बड़ी लीड मुंडावर से ललित यादव को 33 हजार वोटों की मिली थी। युवा चेहरा हैं, इसलिए पार्टी ने उन पर लोकसभा चुनाव में दांव लगा दिया। ग्रामीण इलाकों में वह खूब लड़े लेकिन शहर में अनजान रहे। पार्टी के नेताओं ने भी उस चेहरे को घर-घर पहुंचाने में ढील दी। राजनीतिक पंडित कहते हैं कि ललित यादव खुद नहीं भांप पाए कि जिस जमीन पर 6 माह पहले वोटों का ढेर उन्हें मिला था, वह इस चुनाव में बिखर जाएगा। उनकी इस ढील के चलते ही मुंडावर से भाजपा 36 हजार वोटों से आगे निकल गई।
किशनगढ़बास सीट को हल्के में ले गए कांग्रेसी किशनगढ़बास सीट से कांग्रेस के विधायक दीपचंद खैरिया 11 हजार वोटों से जीते थे। बताते हैं कि उन्हें लगा कि खैरथल-तिजारा जिला कांग्रेस की देन है, ऐसे में ये फैक्टर लोकसभा चुनाव में भी काम करेगा लेकिन परिणाम आए तो भाजपा यहां से आगे निकल गई। भाजपा ने कांग्रेस से 10 हजार वोट ज्यादा पाए। जानकार कहते हैं कि कांग्रेस के दिग्गज यह अंदाजा नहीं लगा पाए कि विधानसभा चुनाव में जिन सीटों पर मजबूती मिली थी, वहीं से पार्टी हारेगी। इसको समय पर भांप लिया जाता तो परिणाम बदल सकते थे।
भाजपा ने करवाए थे सर्वे…बदल गया परिणाम चुनाव के दौरान भाजपा प्रचार-प्रसार में जुटी थी। इसी के साथ सर्वे भी जनता के बीच चल रहे थे। जनता का मूड पार्टी भांप रही थी। सर्वे रिपोर्ट आदि के अनुसार भाजपा ग्रामीण इलाकों में कमजोर पड़ रही थी। गांवों के वोटों की पूर्ति के लिए पार्टी ने अलवर शहर सीट पर ताकत झोंकी और परिणाम आए तो इस सीट ने भूपेंद्र यादव के सिर ताज रखा।