scriptएक जून से खुलेगी उत्तराखंड की फूलों वाली घाटी, यहां 500 से ज्यादा प्रजाति के फूल | Patrika News
समाचार

एक जून से खुलेगी उत्तराखंड की फूलों वाली घाटी, यहां 500 से ज्यादा प्रजाति के फूल

पर्यटकों को फूलों की घाटी का ट्रैक करने के बाद उसी दिन बेस कैंप घांघरिया वापस आना होगा। जहां उनके ठहरने की समुचित व्यवस्था है।

जयपुरMay 19, 2024 / 09:52 pm

pushpesh

चमोली. कुदरत के विविध रंगों से सजी उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित विश्व प्रसिद्ध फूलों की घाटी एक जून से पर्यटकों के लिए खोल दी जाएगी। दुर्लभ हिमालयी वनस्पतियों से समृद्ध घाटी जैव विविधता का अनुपम खजाना है। यहां 500 से अधिक प्रजाति के रंग बिरंगी फूल खिलते हैं। प्रकृति प्रेमियों के लिए फूलों की घाटी से टिपरा ग्लेशियर, रताबन चोटी, गौरी और नीलगिरी पर्वत के विहंगम नजारे भी देखने को मिलते हंै। फूलों की घाटी 30 अक्टूबर तक पर्यटकों के लिए खुली रहेगी।
नंद कानन के उप वन संरक्षक, बीबी मर्तोलिया ने बताया कि पर्यटकों का पहला दल एक जून को घांघरिया बेस कैंप से रवाना किया जाएगा। पर्यटकों को फूलों की घाटी का ट्रैक करने के बाद उसी दिन बेस कैंप घांघरिया वापस आना होगा। जहां उनके ठहरने की समुचित व्यवस्था है। उन्होंने बताया कि वैली ऑफ फ्लावर ट्रैकिंग के लिए देशी नागरिकों को 200 रुपए तथा विदेशी नागरिकों के लिए 800 रुपए ईको ट्रेक शुल्क निर्धारित किया गया है। ट्रैक को सुगम और सुविधाजनक बनाया गया है।
फूलों की कई दुर्लभ प्रजातियां
यह घाटी अल्पाइन फूलों की आकर्षक घास के मैदानों, वनस्पतियों और जीवों की समृद्धि और बर्फ से ढकी चोटियों के मनोरम दृश्यों के लिए प्रसिद्ध है। फूलों की घाटी में एनीमोन्स, जेरेनियम, मार्श मैरीगोल्ड्स, प्रिमुलस, एस्टर, ब्लू पॉपी, कोबरा लिली, ब्लूबेल, ब्रह्म कमल आदि फूलों की 500 से अधिक प्रजातियां देखी जा सकती हैं। यूरोपियन लेखक और प्रकृति के यायावर फ्रेंक स्माइथ ने ‘वेली आफ फ्लावर’ के शीर्षक से भारत के हिमालय में स्थित फूलों के अदभुत संसार पर एक पुस्तक लिखी। जिसके बाद दुनिया की नजर फूलों की पर गया।
जैव विविधता से भरपूर
फूलों की यह घाटी जैव विविधता से भरपूर है। यहां कई प्रजाति की तितलियां और परिंदो को देख सकते हैं। इसके अलावा यहा नीली भेड़, कस्तूरी मृग, काले/भूरे भालू, हिम तेंदुए और कई अन्य प्रजातियों के पशु पक्षियों को देखा जा सकता है।
2004 में विश्व धरोहर चुना गया
आमतौर पर जगह को नंदन कानन हैं, जिसका शाब्दिक अर्थ है भगवान इंद्र का बगीचा। 1980 में भारत सरकार ने इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया और बाद में 1982 में इसका नाम बदलकर नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान कर दिया गया और यह नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व के मुख्य भाग के अंतर्गत आ गया। 2004 में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल के रूप में नामित किया।
धार्मिक महत्व भी
शास्त्रों और मान्यताओं के अनुसार, यही वह प्राकृतिक सौंदर्य तथा फूलों एवं वनाषौधियों का क्षेत्र है, जिसे नन्द कानन वन कहा जाता है। बदरीनाथ के पूर्व धर्माधिकारी भुवन उनियाल बताते हैं कि इस नन्द कानन वन में देवता निवास करते हैं।

Hindi News/ News Bulletin / एक जून से खुलेगी उत्तराखंड की फूलों वाली घाटी, यहां 500 से ज्यादा प्रजाति के फूल

ट्रेंडिंग वीडियो