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साख पर सवाल

प्रश्न पत्र खरीदकर अफसर बनने वाले क्या बुलेट ट्रेन चला पाएंगे? वैसी
स्मार्ट सिटी बना पाएंगे जैसी होनी चाहिए? लगता है विधायिका और कार्यपालिका
का इस तरफ ध्यान ही नहीं। चिंता या तो अदालतें करें या मीडिया

Jan 31, 2016 / 10:24 pm

शंकर शर्मा

Opinion news

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जब अधिकारी ही चिकने घड़े बनकर बैठ जाएं तो आखिर अदालतें भी क्या करें? फटकार लगाओ या सख्ती दिखाओ, अधिकारी अपने तरीके से ही काम करते हैं। मानो अदालतों की कही एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देते हों। हाईकोर्ट की ताजा फटकार का मामला भले राजस्थान का हो लेकिन ये पूरे देश पर लागू होता है।

राजस्थान लोक सेवा आयोग की साख पर गंभीर सवाल खड़े करते हुए हाईकोर्ट ने राजस्थान प्रशासनिक सेवा भर्ती एवं सहायक लोक अभियोजक भर्ती परीक्षा पर रोक लगाते हुए आयोग अध्यक्ष को तलब किया है। यह पहला मौका नहीं जब हाईकोर्ट ने राजस्थान आयोग को आड़े हाथों लेते हुए फटकार लगाई हो।

राजस्थान प्रशासनिक सेवा भर्ती की जिस परीक्षा पर रोक लगाई गई है वह 2013 में पूरी हो जानी चाहिए थी। सन् 2013 की ये परीक्षा कितनी बार अदालत तक पहुंची, परीक्षार्थियों को भी शायद याद नहीं होगा। कभी पेपर लीक तो कभी सवाल गलत। कभी सवाल सही तो उनके जवाब गलत। प्रशासनिक अधिकारी बनाने वाली प्रदेश की सबसे बड़ी परीक्षा चौथे साल भी अधरझूल है। आवेदक हर बार उम्मीद के साथ तैयारी करता है लेकिन परीक्षा है कि पूरी होने का नाम ही नहीं ले रही। क्या इसे योग्य परीक्षार्थियों के जीवन के साथ खिलवाड़ नहीं माना जाए?

और यदि हां, तो ऐसा करने वालों के खिलाफ कार्रवाई कब होगी? देश के अधिकांश राज्यों के भर्ती बोर्डों और अदालतों के बीच छात्र यूं ही झूल रहे हैं लेकिन उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं। न सरकारें और न भर्ती बोर्ड में बैठे अधिकारी। सरकारों को चिंता रह गई है तो बस बुलेट ट्रेन चलाने की या स्मार्ट सिटी बनाने की। लेकिन कोई ये चिंता क्यों नहीं करता कि योग्य अधिकारियों के बिना ये काम होगा कैसे?

प्रश्न पत्र खरीदकर अफसर बनने वाले क्या बुलेट ट्रेन चला पाएंगे? वैसी स्मार्ट सिटी बना पाएंगे जैसी होनी चाहिए? लगता है विधायिका और कार्यपालिका का इस तरफ ध्यान ही नहीं। चिंता या तो अदालतें करें या मीडिया। परीक्षा के बीच में पैटर्न बदलने और परिणाम घोषित करने से पहले आंसर की जारी नहीं करने की खामियों को मानवीय भूल मानकर दरकिनार नहीं किया जा सकता।

प्रशासनिक सेवा, चिकित्सक, एमबीए और इंजीनियरिंग जैसी परीक्षाएं भी अगर मजाक बनकर रह जाएं तो ऐसी परीक्षाओं या भर्ती बोर्डों का महत्व क्या रह जाएगा? सरकारें भारत को युवाओं का सबसे बड़ा देश बताने का ढिंढोरा पीटते नहीं थकती लेकिन उन्हें युवाओं के भविष्य की चिंता कतई नहीं। होती तो अदालतों को आए दिन भर्ती बोर्डों को यूं फटकार-लताड़ लगाने की जरूरत नहीं पड़ती।

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