गांधीजी की 150वीं जयंती वर्ष में सरकार का ध्यान भी सफाई की ओर ज्यादा है। देखा जाए तो शहरों में गंदगी की समस्या अपेक्षाकृत ज्यादा नजर आती है। लोगों की सार्वजनिक स्थानों पर कचरा डालने की आदत में बदलाव की जरूरत है। ऐसा तब ही हो सकता है, जब जनता को यह अहसास कराया जाए कि ये सार्वजनिक स्थल उनके अपने हैं तो शहर को स्वच्छ रखने के प्रति उनका नजरिया स्वत: ही बदल जाएगा।
शहर को स्वच्छ रखने के साथ ही कचरा प्रबंधन के बेहतर उपायों की भी जरूरत महसूस की जाने लगी है। शहरी गंदगी से हमारे शहरों में कचरा बढ़ता जा रहा है। अपशिष्ट मिश्रित कचरा कई दिन तक एक ही जगह पड़ा रहता है। हमारे शहर जगह-जगह कचरे के ढेरों से अटे पड़े हैं। गंदगी के लिए जिम्मेदार हम सब हैं लेकिन शहरी निकायों को दोष देकर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाते हैं।
हम देखते हैं कि शहर में ज्यादातर घर तो साफ-सुथरे होते हैं लेकिन लोग अपने शहर को गंदा करते वक्त थोड़ा भी नहीं सोचते। झाडू लगाने का काम जो अब तक एक विशेष जाति से ही सम्बद्ध माना जाता है, उस बारे में लोगों की धारणा बदली नहीं है। स्वच्छ भारत मिशन को बॉलीवुड अभिनेताओं और हमारे नेताओं के झाडू के साथ फोटो खिंचवाने से आगे ले जाना होगा।
हमारे समक्ष दुनियाभर के उदाहरण हैं। चाहे कनाडा का कैलगरी शहर हो, ऑस्ट्रेलिया के एडिलेड या विकासशील देश रवांडा का किरगाल शहर, ये सब अपेक्षाकृत बहुत कम समय में स्वच्छ शहर बन चुके हैं। हमें कचरे के प्रबंधन के बारे में सख्त नियम-कानून बनाने होंगे। जुर्माने और सजा के डर से लोग साफ-सफाई का ध्यान रखने लगेंगे। हमारे मॉल तो साफ हैं लेकिन मोहल्ले की गलियां गंदी हैं। हमें इस मामले में ऐसे उदाहरण पेश करने होंगे कि हमारे सार्वजनिक स्थल साफ-सुथरे रहें और दिखाई दें।
अर्चना डालमिया
टिप्पणीकार
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