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ओपिनियन

जान जोखिम में… घातक कोरोना के साथ-साथ पैर पसार रही एक और महामारी!

– जब विशेषज्ञ कहते हैं कि 70 प्रतिशत से अधिक अमरीकी आबादी ओवरवेट या ओबेसिटी की शिकार है तो यह किसी की व्यक्तिगत समस्या नहीं हो सकती।

नई दिल्लीApr 13, 2021 / 07:42 am

विकास गुप्ता

जान जोखिम में... घातक कोरोना के साथ-साथ पैर पसार रही एक और महामारी!

जान जोखिम में… घातक कोरोना के साथ-साथ पैर पसार रही एक और महामारी!

लीना एस. वेन

मोटापे से ग्रस्त लोग यदि कोरोनावायरस संक्रमण की चपेट में आ जाते हैं तो उनके कई गंभीर स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की चपेट में आ जाने और जान गंवाने की आशंका बढ़ जाती है। एक अध्ययन के अनुसार कोरोना की वजह से जो लोग अस्पताल में भर्ती किए गए, उनमें 30 फीसदी मोटापे के शिकार थे। वर्ल्ड ओबेसिटी फेडरेशन के मुताबिक जिन देशों की ज्यादातर आबादी ओवरवेट की शिकार है, वहां कोविड से मौत का खतरा दस गुना ज्यादा है।

जब कोरोना के चलते स्वास्थ्य के प्रति हमारी चिंता में मोटापे को लेकर व्यापक साक्ष्य हैं तो सवाल उठता है कि आर्थिक और जन नीतियों में इस पर अधिक ध्यान क्यों नहीं दिया गया? इसका उत्तर बहुआयामी है। हृदयरोग विशेषज्ञ और टफ्ट्स फ्रीडमैन स्कूल ऑफ न्यूट्रीशन साइंस के डीन दारूश मोजाफेरियन कहते हैं, ‘मोटापे की धीमी महामारी कोविड-19 की जानलेवा महामारी के साथ गुंथी हुई है। लेकिन हम केवल तीव्र संकट पर ध्यान केन्द्रित कर रहे हैं, अत्यंत गंभीर रूप ले चुके संकट पर नहीं।’ जॉर्ज वाशिंगटन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर विलियम डाइट्ज, जिन्होंने मोटापे पर लैंसेट आयोग की सह-अध्यक्षता की थी, संबंधित अध्ययन का हवाला देते हैं जिसमें महामारी शुरू होने के बाद 42 प्रतिशत लोगों ने वजन बढऩे की जानकारी दी थी।

यह ऐसे समय में समझने योग्य तथ्य है कि जब अमरीकियों ने ज्यादा तनाव का अनुभव किया, उनकी शारीरिक गतिविधियां कम हो गईं थीं और स्वस्थ भोजन विकल्पों के बिना रहना पड़ा था। जैसा कि हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के चिकित्सक जैसन ब्लॉक कहते हैं कि एक बार वजन बढ़ गया तो फिर घटना मुश्किल है। मुझे आश्चर्य नहीं होगा यदि हम अगले कुछ वर्षों तक मोटापे की दर को बढ़ता हुआ देखें। वास्तव में, जब विशेषज्ञ कहते हैं कि 70 प्रतिशत से अधिक अमरीकी आबादी ओवरवेट या ओबेसिटी की शिकार है तो यह किसी की व्यक्तिगत समस्या नहीं हो सकती। यह स्व-स्पष्ट रूप से सामाजिक मुद्दा है जिस पर नीतिगत स्तर पर बड़े बदलाव की जरूरत है। मोजाफेरियन मानते हैं कि हमें स्वास्थ्य देखभाल के ढांचे को फिर से पारिभाषित करना चाहिए ताकि भोजन को दवा के रूप में देखा जाए। कुछ लोग असहमत होंगे कि क्या ऐसा करने का यह समय है? लेकिन जैसा कि ब्लॉक कहते हैं-मोटापे के कारण हमारे बच्चों की जीवन प्रत्याशा हमारी तुलना में कम रह सकती है। हमें इससे छुटकारा पाना होगा।
(लेखक जॉर्ज वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के मिल्केन इंस्टीट्यूट स्कूल ऑफ पब्लिक हैल्थ की विजिटिंग प्रोफेसर हैं)
द वॉशिंगटन पोस्ट

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