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ओपिनियन

रास्ता तलाशें कैसे हों अनलॉक शिक्षा मंदिर

यह समझना आवश्यक है कि जिस प्रकार सेहत अच्छी बनाए रखने के लिए स्वास्थ्य सेवाओं की जरूरत है वैसे ही बेहतर शिक्षा के लिए शिक्षण संस्थाओं की भी। इन्हें कैसे खोला जाए इस पर विचार करना होगा ।
 

नई दिल्लीJul 26, 2020 / 03:37 pm

shailendra tiwari

Uttarakhand Secondary Education Council

Uttarakhand Secondary Education Council

डॉ. विवेक एस.अग्रवाल, सचिव , सेंटर फॉर डवलपमेंट कम्युनिकेशन

कोविड महामारी के बचाव के लिए सबसे पहले एहतियात के तौर पर शिक्षण संस्थाओं को बंद करने का फैसला किया गया। पहले जान है तो जहान है और बाद में जान भी जहान भी का तर्क देते हुए धीरे—धीरे पाबंदियों से ढील दी गई। लेकिन स्कूल—कॉलेजों को लेकर अभी भी असमंजस बरकरार है; हाल की परिवहन साधनों को लेकर भी छूट जारी की गई है; लोग भी धीरे—धीेरे इस माहौल के आदी हो गए हैं। ऐसा लगने लगा है जैसे कुछ हुआ ही न हो ? तमाम जगह हालात सामान्य करने के प्रयास हो रहे हैं लेकिन इस बारे में कोई नहीं सोच रहा कि शिक्षा के हालात दुरुस्त करने के लिए क्या प्रयास किए जा रहे हैं। कहीं पाठृयकम कम करने की बात कही जा रही है तो कहीं परीक्षा खत्म करने की; जहां पढाई के लिए आनलाइन कक्षाएं शुरू की जा रही हैं उनका भी असर नाम का ही है; सवाल ये हैं कि क्या ये आनलाइन कक्षाएं समुचित बच्चों तक पहुंच रही है!
मध्यवर्गीय शहरी समूह का इस सवाल का ांंजवाब हां में हो सकता है लेकिन बडे हिस्से को आज भी इस सिस्टम का पफायदा मिलता नहींं दिख रहा। ये कक्षाएं जहां संचालत है वहां स्मार्ट फोन की जरूरत होती है; ग्रामीण परिवारों को यह इंतजाम करना सचमुच समस्यामूलक रहता है; साथ ही बेहतर इंंटरनेट सुविधा की भी जरूरत पडती है जिसके गांव में उपलब्धता रहने की उम्मीद काफी कम है;

नतीजा यह है कि आनलाइन कक्षाएं महज दिखावा होकर रह गई है; हम सबने यह स्वीकार कर लिया है कि आने वाला समय कोरोना के साथ ही जीना होगा; उसके अनुरूप ही खुद को ढालना होगा; तो देर किस बात की । आखिर बच्चों की पढाई के मामले में हम इतना पीछे क्यों है, जिस प्रकार उद्योग धंधे अर्थव्यस्था के आधाार है उसी तरह से सबके लिए स्वास्थ्य की चिंता करना भी जरूरी है; इसलिए शिक्षण संचालन के लिए कोई ठोस नीति बनाई जानी चााहिए;

वर्तमान समय में मॉल व पार्क आदि आम आदमियों के लिए खुले हैं; लोगों के लिए मनोरंजका इसे बेहतर साधन भी नहीं था। यहां यह समझना आवश्यक है कि जिस प्रकार सेहत अच्छी बनाए रखने के लिए स्वास्थ्य सेवाओं की जरूरत है वैसे ही बेहतर शिक्षा के लिए शिक्षण संस्थाओं की भी। शिक्षण संस्थाओं के पफीस लेने पर पाबंदी को भी समझना होगा; क्या वे इसके बाद अपने स्टाफ को वेतन आदि दे पाएंगे; शिक्ष्ण संस्थाओं को निरंतर बंद रखने का विचार तो सचमुच हास्यास्पद है; माॉल बाजार मंडी आदि में क्या सोशल डिस्टेंसिंग का इस्तेमाल हो रहा है! क्या जगह को पल—पल में सेनेटाइज किया जा रहा है! आज के दौर में स्कूल कॉलेजों को खोले जाने की जरूरत है; जितनी एहतियात अन्य जगहों पर की जा रही है वैसी ही स्कूल—कॉलेजों में भी संभव है; बच्चें एकाकीपन से दूर हों इसके लिए भी यह जरूरी है!

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