नतीजा यह है कि आनलाइन कक्षाएं महज दिखावा होकर रह गई है; हम सबने यह स्वीकार कर लिया है कि आने वाला समय कोरोना के साथ ही जीना होगा; उसके अनुरूप ही खुद को ढालना होगा; तो देर किस बात की । आखिर बच्चों की पढाई के मामले में हम इतना पीछे क्यों है, जिस प्रकार उद्योग धंधे अर्थव्यस्था के आधाार है उसी तरह से सबके लिए स्वास्थ्य की चिंता करना भी जरूरी है; इसलिए शिक्षण संचालन के लिए कोई ठोस नीति बनाई जानी चााहिए;
वर्तमान समय में मॉल व पार्क आदि आम आदमियों के लिए खुले हैं; लोगों के लिए मनोरंजका इसे बेहतर साधन भी नहीं था। यहां यह समझना आवश्यक है कि जिस प्रकार सेहत अच्छी बनाए रखने के लिए स्वास्थ्य सेवाओं की जरूरत है वैसे ही बेहतर शिक्षा के लिए शिक्षण संस्थाओं की भी। शिक्षण संस्थाओं के पफीस लेने पर पाबंदी को भी समझना होगा; क्या वे इसके बाद अपने स्टाफ को वेतन आदि दे पाएंगे; शिक्ष्ण संस्थाओं को निरंतर बंद रखने का विचार तो सचमुच हास्यास्पद है; माॉल बाजार मंडी आदि में क्या सोशल डिस्टेंसिंग का इस्तेमाल हो रहा है! क्या जगह को पल—पल में सेनेटाइज किया जा रहा है! आज के दौर में स्कूल कॉलेजों को खोले जाने की जरूरत है; जितनी एहतियात अन्य जगहों पर की जा रही है वैसी ही स्कूल—कॉलेजों में भी संभव है; बच्चें एकाकीपन से दूर हों इसके लिए भी यह जरूरी है!