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पूरे दिल से जुड़ता तो सिंहासन तक पहुंच सकता था ‘इंडिया’

इंडिया गठबंधन में तृणमूल कांग्रेस व आम आदमी पार्टी जैसे दल भी शामिल थे जो सर्वथा कांग्रेस विरोधी रहे हैं।

जयपुरJun 05, 2024 / 03:15 pm

विकास माथुर

कांग्रेस नीत गठबंधन यानी इंडिया लोकसभा चुनाव में बहुमत पाने में तो विफल रहा, लेकिन उसने भाजपा की मुश्किल बढ़ा दी। लोकसभा चुनाव परिणामोंं में इंडिया गठबंधन ने बेहतर प्रदर्शन करते हुए अपने और एनडीए की सीटों के फासले को इतना कम कर दिया है कि भाजपा अपने दम पर सामान्य बहुमत से दूर दिख रही है। दस बरस की एनडीए सरकार व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की एंटी इंकम्बेंसी का लाभ लेने में कांग्रेस की रणनीति काफी सफल रही जिसका श्रेय राहुल गांधी को ही दिया जाना चाहिए। इसी के बदौलत कांग्रेस ने पिछली बार की तुलना में शानदार जीत हासिल की।
यह कांग्रेस की बेहतरीन वापसी है। वहीं दूसरी ओर ममता बनर्जी ने विधानसभा चुनाव की तरह लोकसभा चुनाव में भी भाजपा के मंसूबों को नाकाम कर दिया। इंडिया गठबंधन की सफलता में अखिलेश-राहुल की जोड़ी ने भी कमाल कर योगी, मोदी और शाह के तिलिस्म को ध्वस्त किया। इसी तरह बिहार में तेजस्वी—राहुल की जोड़ी कामयाब हो जाती तो सियासत की नई इबारत लिखी जाती।
इस बार लोकसभा चुनाव में कांग्रेस नीत गठबंधन का स्वरूप बदला हुआ था और इस नए इंडिया गठबंधन में तृणमूल कांग्रेस व आम आदमी पार्टी जैसे दल भी शामिल थे जो सर्वथा कांग्रेस विरोधी रहे। इस गठबंधन को मजबूती देने के लिए कांग्रेस ने इतना जरूर किया कि उसने 543 लोकसभा सीटों में से 328 सीटों पर ही अपने प्रत्याशी उतारे लेकिन जिस मोर्चे पर उसे मजबूती से लडऩा था, वहां उसकी मजबूती नहीं दिखी। मध्यप्रदेश, गुजरात, दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों की लगभग 200 से अधिक लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां कांग्रेस व भाजपा का सीधा मुकाबला था। इन सीटों पर 2014 व 2019 में भाजपा की सफलता 90 प्रतिशत से अधिक रही हैं। यानी भाजपा को मिली कुल सीटों में से आधे से अधिक सीटें इसी सीधे मुकाबले वाली सीटों से हासिल हुईं।
2024 के आम चुनाव में कांग्रेस ने इन सीटों पर मेहनत करने की बजाय उन राज्यों में ज्यादा सक्रियता दिखाई जहां क्षेत्रीय दल मजबूत थे और कांग्रेस वहां सबसे छोटा पार्टनर थी। कांग्रेस इन राज्यों को क्षेत्रीय दलों के भरोसे छोड़कर अपनी पूरी ताकत भाजपा से सीधे टक्कर वाली सीटों पर लगाती तो कांग्रेस अधिक फायदे में रह सकती थी। क्षेत्रीय दलों के प्रभाव वाले राज्यों की तुलना में कांग्रेस प्रभाव वाले राज्यों में उसका जनाधार (वोट) काफी अधिक है। कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में उसी गारंटी का वादा किया जो नरेन्द्र मोदी पहले से करते आ रहे थे। कांग्रेस घोषणा पत्र का प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब अपने तरीके से विश्लेषण कर कांग्रेस को कठघरे में करने की कोशिश की तो कांग्रेेसाध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर समय मांगा ताकि उन्हें अपनी पार्टी के घोषणा पत्र का अर्थ समझा सकें। अब उन्हें कौन बताए कि घोषणा पत्र का अर्थ मोदी को नहीं देश को जनता को समझाना था। मई 2024 में लोकसभा के चुनाव होने थे।
जुलाई 2023 में विपक्षी गठबंधन बना और जब उसके आकार लेने का समय आया तब जनवरी 2024 में राहुल गांधी फिर अपनी न्याय यात्रा में निकल पड़े जो मार्च तक चलती रही। वे अपनी यात्रा निकाल कर विपक्षी गठबंधन की अगुवाई करते तो संभव है तस्वीर कुछ और बन सकती थी। यह सही है कि कांग्रेस कम सीटें जीतने के बाद भी अखिल भारतीय पार्टी है और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लगातार चुनौती देने वाले सबसे बड़े नेता राहुल गांधी ही हैं। ऐसे में यदि वे प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में चुनावी मैदान में होते तो चुनावी परिदृश्य कुछ दूसरा होता।
यह चुनाव ऐसा था जब कांग्रेस का विरोध करने वाले राजनीतिक दल भी कांग्रेस से गठबंधन करने के लिए सहर्ष तैयार थे। ऐसे में सबसे बड़े दल के नेता के नाते राहुल गांधी की प्रधानमंत्री पद की दावेदारी को स्वीकारने से किसी को गुरेज नहीं होता। इसके बावजूद यह माना जा सकता है कि इंडिया गठबंधन ने भाजपा को बड़ा झटका दिया। इसका भारतीय राजनीति पर गहरा असर होगा।
— गिरिजाशंकर

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