पहले किसान स्वयं द्वारा उत्पादित फसल में से ही बीज बचा कर खेती के समय बुवाई कर लिया करता था। धीरे-धीरे ‘ब्रांडेड हाइब्रिड’ बीज का उपयोग किया जाने लगा। इस पर भी उपज कम लगी तो ‘टर्मिनेटेड सीड’ की चर्चा होने लगी। इस बीज की उपज से दुबारा बुवाई करो तो अंकुरण नहीं होता। इनके इस्तेमाल पर कई देशों ने प्रतिबंध लगा रखा है। पहले का किसान, जो गोबर की खाद और स्वउत्पादित बीज का उपयोग कर आत्मनिर्भर था, उसको बढ़ती जनसंख्या का पेट पालने के लिए आश्रित बनाया गया और अब उसी किसान को ‘ऑर्गेनिक’ खेती के लिए प्रोत्साहन दिया जाता है। लेकिन किसान अब ‘ऑर्गेनिक’ खेती कर उत्पादन घटाने के लिए तैयार नहीं होता।
ब्रांडेड नहीं जेनेरिक सहारा, ताकि हर कोई खरीद सके दवा
किसानों को कई प्रकार का अनुदान दिया जाने लगा। देश में अनुदान की मात्रा पर विश्व व्यापार संगठन में हल्ला मचा। हल्ला उन विकसित देशों ने किया जिन देशों में हमसे अधिक अनुदान दिया जाता है। उन देशों में खेत में बुवाई नहीं करने के लिए आर्थिक अनुदान दिया जाता है, जिससे उपज के मूल्य नियंत्रण में सहायता मिल सके।
देश में हर सरकार किसानों का भला करने की बात करती है। प्रश्न है कि यह कैसे संभव हो। जिस प्रकार राजस्थान में जनस्वास्थ्य को ध्यान में रखकर जेनरिक दवाइयों की सुविधा नि:शुल्क दी जा रही है, उसी तर्ज पर कृषि कार्यों में उपयोग में आने वाले कीटनाशकों और उर्वरकों में ब्रांडेड के स्थान पर जेनरिक का प्रयोग किए जाने से किसानों की स्थिति में भारी सुधार हो सकता है। किसी भी प्रकार के उत्पादन के साथ ब्रांड के जुड़ते ही उसकी कीमतों में कई गुना इजाफा हो जाता है। इस ‘ब्रांड वेल्यू’ से किसानों को मुक्ति दिलाने के लिए सरकार को विशेष प्रयास करने चाहिए और जरूरी कदम उठाने चाहिए। पहल कीटनाशकों से करनी चाहिए और धीरे-धीरे इसे उर्वरक, खाद व बीज पर भी लागू करना चाहिए। एक ही तरह के कीटनाशक में जिन साल्ट्स का प्रयोग होता है, वे समान होते हैं। मूल्य तो ब्रांड लगते ही ही बढ़ जाता है। इन्हें ‘पेटेंट’ व ‘कॉपीराइट’ आदि की समय सीमा पार कर चुकी कृषि उपयोग की दवा आदि पर सरलता से लागू किया जा सकता है।
Deadly Fertilizer : विस्फोटक से भी ज्यादा घातक है उर्वरक, जानिए कैसे ?
सरकार के पास बुवाई के आंकड़े होते हैं। उनसे समय रहते सांख्यिकीय विश्लेषण कर कीटनाशकों, उर्वरकों, खाद और बीज की आवश्यकता का अनुमान लगाया जा सकता है। यह जेनरिक उत्पादन बहुत कम लागत का होगा तथा इनकी पूर्ति की व्यवस्था कम मूल्य पर किसानों को कृषि उपज मंडियों के माध्यम से तथा सरकारी संस्थाओं के माध्यम से की जा सकती है। सरकारें यदि यह कदम उठाएं तो किसान की आर्थिक स्थिति में स्वत: सुधार होना प्रारंभ हो जाएगा।