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नेतृत्व : व्यापकता से प्रगतिशीलता

लीडरों को परस्पर वास्तविक मुद्दे उजागर करने व विचारों को समझने की आवश्यकता होती है

Sep 13, 2021 / 10:00 am

Patrika Desk

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– प्रो. हिमांशु राय, निदेशक, आइआइएम इंदौर

विघटन के इस वर्तमान युग में प्रभावी नेतृत्व मात्र पर्यवेक्षण, विकासशील रणनीतियों और नीति निर्माण के पहलुओं तक ही सीमित नहीं है। प्रतिस्पर्धी संघर्षों का सामना करते हुए प्रासंगिक बने रहने और संगठन को समृद्धि की ओर ले जाने के लिए, एक लीडर के पास सकारात्मक परिवर्तन के प्रवर्तक बनने की क्षमता होना परम आवश्यक है।
अनुकूलन क्षमता और गतिशीलता को सुविधाजनक बनाने के लिए आवश्यक है कि एक लीडर निरंतर परिवर्तन के लिए उत्प्रेरक के रूप में कार्य करे। संगठनात्मक विकास और नेतृत्व के विद्वानों और विशेषज्ञों ने व्यावहारिक हस्तक्षेपों के महत्त्व पर बल दिया है, क्योंकि सबसे जटिल चुनौतियों और परिवर्तन की बाधाओं को मानवीय कारकों द्वारा प्रस्तुत किया जाता है, जिनमें परिवर्तन का प्रतिरोध, भय और अटकलों का प्रभुत्व शामिल है। इस प्रकार, एक लीडर को परिवर्तन के व्यावहारिक और मनोवैज्ञानिक पहलुओं की बारीकियों को समझने की जरूरत है। उन्हें अपने दृष्टिकोण को व्यापक बनाने की आवश्यकता है।
लीडर सुनिश्चित करें कि वे अपने अधीनस्थों और साथियों के बारे में पूर्वानुमान न करें, आकलन न करें, भले ही वे परिवर्तन के लिए प्रतिरोध उत्पन्न कर रहे हों। सहानुभूति के भाव से एक लीडर को दूसरों के विचारों को समझने और वास्तविक मुद्दों को उजागर करने की आवश्यकता होती है। इसे संगठनात्मक विकास के लिए एक भारतीय दृष्टिकोण के रूप में देखा जा सकता है और कर्ट लेविन के 3-स्टेप मॉडल या जॉन कोटर के 8-स्टेप मॉडल जैसे पश्चिमी शास्त्रीय दृष्टिकोणों के संयोजन के साथ सफलतापूर्वक नियोजित किया जा सकता है।
पहला यथास्थिति को स्थिर करने पर जोर देता है, जबकि दूसरा परिवर्तन के लिए एक नवीन और सामान्य दृष्टिकोण बनाने और इसे एक प्रमुख कदम के रूप में संप्रेषित करने पर जोर देता है। यह पुरस्कार व मान्यता के माध्यम से जोखिम लेने वाले और रचनात्मक कर्मचारियों के प्रोत्साहन को भी महत्त्व देता है।
पिछले सप्ताह वर्णित सर्वव्यापी सर्वशक्तिमान की ‘लीला’ की अवधारणा का विचार हस्तक्षेपों के माध्यम से मनुष्यों को रोमांचित करके परोपकार को प्रदर्शित करता है। इस प्रक्रिया में मनुष्य एक दर्शनिक बनता है, अपने दिमाग और परिप्रेक्ष्य का विस्तार कर सकता है। भारतीय दृष्टिकोण सिर्फ पश्चिमी मॉडलों के उपयोग की तुलना में अधिक प्रासंगिक लाभ प्रदान कर सकता है। इसका दर्शन न केवल एक लीडर के लिए परिवर्तन प्रबंधन के अभ्यास को मजबूत और सुगम बना सकता है, बल्कि विरोधियों को बड़ी योजना में अपनी आवश्यक भूमिका निभाने के लिए प्रेरित करता है।
इसी तरह, अन्य लोग ‘अपनापन और परवाह’ महसूस करते हैं और अंतत: पूरी तरह कार्य में शामिल भी होते हैं। इससे प्रक्रिया अराजक और परस्पर विरोधी होने के बजाए सरल, सुदृढ़ और सुमधुर हो जाती है। कार्यस्थल ‘रणभूमि’ से ‘रंगभूमि’ में बदल जाती है, जो सिद्ध करता है कि परिवर्तनों को लागू करना लाभकारी और सकारात्मक कदम है।

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