script

हिन्दी का संरक्षक कौन?

Published: Sep 13, 2021 06:44:07 am

Submitted by:

Gulab Kothari

सरकारें जनता की सेवा नहीं, व्यापार करती हैं। हर क्षेत्र में मुनाफा ढूंढती हैं। हिन्दी में मुनाफा नहीं है, अंग्रेजी में है। सरकार अंग्रेजी में चलती है तो आम व्यक्ति पकड़ भी नहीं पाता।

hindi_diwas.jpg
– गुलाब कोठारी

हिन्दी अन्य भारतीय भाषाओं की तरह ही एक भाषा है। हां, इसका क्षेत्र विशाल है। श्रेष्ठ हिन्दी आज भी संस्कृत आधारित है। उर्दू के मिश्रण ने इसे संकर भाषा का रूप दे दिया। जो हिन्दी पचास वर्ष पूर्व पाठ्यपुस्तकों, उपन्यासों, समाचार-पत्रों में थी, वह तो समय के साथ विदा हो गई। हो सकता है कि हिन्दी की पुरस्कृत रचनाओं में भी शुद्ध हिन्दी दिखाई न दे। केवल वोट प्राप्त करने की भाषा होती जा रही है। अफसर न तो हिन्दी में कार्य करने को तैयार है और न ही अपने बच्चों को हिन्दी पाठशालाओं में पढ़ाने को। न्यायपालिका हो अथवा उच्च शिक्षा, कहां हिन्दी का सम्मान दिखाई देता है? जिन्हें आज अंग्रेजी बोलने में गर्व होता है, क्या वे हिन्दी पर गर्व कर सकेंगे?
प्रश्न यही है कि हिन्दी दिवस किसके लिए? क्या शिक्षा विभाग ने संकल्प ले रखा है कि नई पीढ़ी हिन्दी में ही शिक्षित की जाएगी? हो सकता है कि जिस प्रकार की शिक्षा व्यवस्था, शिक्षा की गुणवत्ता दिखाई पड़ रही है, स्वयं हिन्दी के नए शिक्षक भी शुद्ध हिन्दी में निबन्ध नहीं लिख पाएं। देश के प्रमुख सम्प्रदाय -ईसाई, सिख, इस्लाम आदि-भी हिन्दी भाषी नहीं कहे जा सकते। पुराने ग्रन्थों को हटा दें तो कौनसे नए हिन्दी ग्रन्थ का परायण हो सकता है। स्वयं संस्कृत सरकारी बैसाखियों पर खड़ी है।
हालत यह है कि हिन्दी आधारित गतिविधियां उतार पर हैं। कोई आकर्षण नजर नहीं आता। पहले पाठशालाओं में अनेकों संवाद, प्रतियोगिताएं व निबन्ध आदि होते थे। कविताओं के दौर चलते थे। अनेकों आयोजनों में गायन परम्परा भी थी। आज तो नए कवि व कवि सम्मेलन अल्पतम रह गए। बड़े-बड़े संस्थानों ने दिखावे के लिए हिन्दी विभाग खोल दिए, हिन्दी प्रचार समितियों की कमी नहीं है। परिणाम आंकड़ों में है। मेरी तीसरी पीढ़ी सारे दिन फोन पर अंग्रेजी वीडियो देखती है। यही हिन्दी का भविष्य है। मां-बाप भी छोटे बच्चों को ए फॉर एपल ही सिखाते हैं।
हिन्दी तो भाषा है। सरकारों में तो इंसानों के प्रति ही दर्द नहीं है। सरकारें जनता की सेवा नहीं, व्यापार करती हैं। हर क्षेत्र में मुनाफा ढूंढती हैं। हिन्दी में मुनाफा नहीं है, अंग्रेजी में है। सरकार अंग्रेजी में चलती है तो आम व्यक्ति पकड़ भी नहीं पाता। अत: व्यवस्था का मुंह सरकार की ओर (जनता से विपरीत दिशा में) ही रहता है। फाइलें अंग्रेजी में चलती हैं।
जिस देश की सांस्कृतिक विरासत अंग्रेजी ने लूट ली, वहां हम हिन्दी का भविष्य ढूंढ रहे हैं! हमारे देश में तो मदर्स, फादर्स, टीचर्स, वैलेण्टाइन, फ्रेण्डशिप जैसे दिवस नई पीढ़ी के मन-मस्तिष्क पर छा गए। हमारे उत्सव तो मात्र मनोरंजन बनकर रह गए। यही स्थिति खानपान और वेशभूषा की है। हमारी सभ्यता आज अंग्रेजी के गिरवी होती जा रही है। इसके सामने खड़े रहने की क्षमता हमारी नई पीढ़ी में है ही नहीं। वह अंग्रेजी भाषा के साथ अंग्रेजी संस्कृति को अपना रही है। क्योंकि हम अंगे्रजी भाषा के साथ अंग्रेजी लिबास-खानपान का हिन्दी से अधिक सम्मान करते हैं।
भाषा ही संस्कृति है। प्रत्येक देश की अपनी विशिष्ट भाषा होती है। वही राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोकर रखती है। विदेशों में संस्कृति का वाहक होती है। देश की एकता और अखण्डता का सेतु होती है। भारत में यह सौभाग्य हिन्दी को प्राप्त है। पत्रिका के चेन्नई, बेंगलूरु, बंगाल और गुजरात संस्करण इसके उदाहरण हैं। देश की लगभग चालीस प्रतिशत जनसंख्या हिन्दी भाषी है और इतनी ही समझ सकती है। हिन्दी सिनेमा का इसमें बड़ा योगदान कहा जा सकता है। अन्य किसी भाषा का ऐसा वर्चस्व नहीं है।
हिन्दी को किसी भी सरकार ने उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा का माध्यम नहीं बनाया। कम्प्यूटर युग में भी वह पिछली सीट पर बैठी है। अंग्रेजी शब्दों का अनुवाद भी न सहज है, न ही गरिमापूर्ण। शिक्षा में वैसे भी नम्बर अच्छे लाने की आवश्यकता ही कहां है! शिक्षा और कॅरियर दोनों ही बिकाऊ वस्तुएं बनकर रह गईं। संरक्षक कौन है हिन्दी का? वार्षिक हिन्दी-दिवस? कहने को राष्ट्रभाषा है। जैसे सड़क बनाने के लिए पेड़ काटकर राष्ट्रीय पक्षी मोर के ठिकाने छीन लिए जाते हैं, वैसा ही हाल कमोबेश हिन्दी का है। आज तो हिन्दी मीडिया भी हिंगलिश होता जा रहा है।
शब्दों को हम ब्रह्म कहते हैं। नाद-अन्न ब्रह्म है। क्या हिन्दी को पढ़कर आज ब्रह्म का स्वरूप हम समझ सकते हैं? क्या हिन्दी व्याकरण मुच्र्छित अवस्था में नहीं है? शब्द ब्रह्म की विकृति ही देश की सांस्कृतिक विकृति बन जाती है। पुरातन सभ्यता, साहित्य से नाता टूट जाता है।
आज विकास के नाम पर हम जहर खा रहे हैं, प्रकृति के सम्बन्धों को दरकिनार कर बैठे हैं, जड़ रूप वैभव के पीछे हमारी चेतना भाग रही है, जीवन में अधिदैव और अध्यात्म छूटता जा रहा है, अधिभूत शासन कर रहा है, तो और प्रमाण क्या चाहिए सांस्कृतिक विध्वंस का? भाषा के अपमान का, शत्रुओं को निमंत्रित करने का? बाहर लिफाफे पर सुनहरी अक्षरों में लिखा ‘हिन्दी दिवस’ और भीतर लिफाफा खाली!

ट्रेंडिंग वीडियो