scriptsharir hi brahmand : body is my resource not me | शरीर : मैं नहीं, मेरा साधन | Patrika News

शरीर : मैं नहीं, मेरा साधन

locationनई दिल्लीPublished: Jul 31, 2021 08:32:03 am

Submitted by:

Gulab Kothari

शरीर कभी ज्ञाता नहीं हो सकता, वह तो क्षेत्र है, ज्ञेय है, आत्मा का भोग साधन है। ज्ञाता तो केवल जीवात्मा को ही कहा जा सकता है। 'मैं सुखी हूं, दु:खी हूं, सुनता हूं' इत्यादि अनुभव भी शरीर के नहीं केवल आत्मा के ही हैं।
जो व्यक्ति शरीर को ही आत्मा समझ बैठता है उसे काम, क्रोध, राग, द्वेष, जन्म-मृत्यु के हर्ष, शोक आदि अवश्य होते हैं। परन्तु जो व्यक्ति देह से आत्मा की भिन्नता का अनुभव कर लेता है, उसे इन बातों का अनुभव नहीं होता।

शरीर ही ब्रह्माण्ड
शरीर ही ब्रह्माण्ड

गुलाब कोठारी

(प्रधान संपादक, पत्रिका समूह)

भारतीय संस्कृति कर्म आधारित है। कर्म को ही धर्म कहा है और कर्म से ही हम अपने भाग्य विधाता बनते हैं। हर कर्म का अपना फल होता है। हमारे अध्यात्म के चार भाग - शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा है। इनमें शरीर-मन-बुद्धि को कर्म तथा आत्मा को ज्ञान कहा है। कर्म के आश्रय रूप में हमारी दृष्टि शरीर पर ही रहती है। बुद्धि व मन को हम स्थूल रूप में देख नहीं पाते। ईश्वर इस कर्म को साक्षी बनकर देखता रहता है। वही कर्म के फल का निर्धारण करता है। शरीर ही कर्म का माध्यम है। अत: 'शरीरमाद्यं खलुधर्मसाधनम्' कहा गया है। अत: मन, बुद्धि और आत्मा की अभिव्यक्ति शरीर के माध्यम से ही होती है। गीता में कृष्ण शरीर को क्षेत्र कहते हैं तथा आत्मा को क्षेत्रज्ञ कहते हैं-

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